परिवार के प्रयासों के बिना समाप्त नहीं होगा भ्रष्टाचार 

सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जो एक दिन में तो समाप्त होने वाला नहीं। पंजाब की वर्तमान सरकार लगातार भ्रष्टाचारियों को पकड़ रही है। पिछली सरकार के मंत्री, विधायक भी भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए, जेल गये। सरकार के अपने ही विधायक को जेल जाना पड़ा। 
यह देखने के बाद भी कि रिश्वत लेने वाले पकड़े जाते हैं, जेलों में भेजे जाते और उनके सेवामुक्ति के सारे लाभ भी खत्म हो जाते हैं। फिर भी भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो रहा, लेकिन यह मानना पड़ेगा कि जब तक नैतिक मूल्यों को राजनीतिज्ञ, सरकारी तंत्र व समाज नहीं अपनाता, तब तक दंड से ही भ्रष्टाचार रोकना होगा। लड़ाई अभी बहुत लम्बी है, पर इसके लिए एक काम तो करना ही पड़ेगा, वह है परिवार का रिश्वत के पैसे को नकार देना। मैं यह विश्वास रखती थी कि अगर परिवार की महिलाएं जैसे माता, पत्नी, बेटियां अपने पुत्र, पति, पिता को यह सख्ती से समझा दें कि घर में मेहनत की कमाई आएगी, रिश्वत की नहीं, तब काफी फर्क पड़ सकता है, परन्तु अब तो महिला अधिकारी भी कथित तौर पर रिश्वत लेने में संकोच नहीं करतीं, इसलिए यह परिवार के किशोर और युवा बच्चों को निर्णय लेना होगा कि उन्हें पिता की रिश्वत की कमाई से सुख सुविधाएं चाहिए या पिता का सम्मान और मेहनत की रोटी चाहिए। जिस दिन बच्चे पिता द्वारा आमदनी से अधिक लाया धन, उपहार और अन्य सुविधाएं पूरी तरह से नकार देंगे, तब एक बहुत बड़ा परिवर्तन समाज में देखने को मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। वैसे महिलाएं भी बहुत कुछ बदल सकती हैं।
अगर देश की महिलाएं और परिवार के बच्चे यह तय कर लें कि वे सीमित साधनों में ही अपना गुजर बसर कर लेंगे तो रिश्वत की बीमारी काफी कम हो जाएगी। यह भी मानना है कि अगर विवाह शादियों पर भारी खर्च और अमीरी का प्रदर्शन बंद हो जाए, तब भी भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है।
अगर आज की महिलाएं और बच्चे यह संकल्प कर लें कि पिता, पति अथवा पुत्र द्वारा अनुचित साधनों से कमा कर घर लाया गया धन स्वीकार नहीं करेंगे, तो अधिकतर लोग रिश्वत के मोह से बचेंगे और अपने देश को दीमक की तरह खा रही भ्रष्टाचार की बीमारी नियंत्रण में आ जाएगी। वैसे भी होना यह चाहिए कि जो अधिकारी या कर्मचारी, महिला या पुरुष कोई भी हो, अनैतिक साधनों से धन कमा कर लाता है, अगर उसका परिवार इस धन सम्पत्ति को स्वीकार कर ले तो उसे भी अपराधी घोषित किया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने रिश्वत लेने के मामले में अधिकारी की पत्नी को रिश्वत लेने के आरोप में दंडित किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 379, 380 के अंतर्गत चोरी का अपराध करने वाले को सज़ा होती है, पर साथ ही जो व्यक्ति जानते हुए भी कि वह वस्तु या धन-सम्पत्ति स्वीकार कर रहा है, जो चोरी का माल है, उसे भी भारतीय दंड संहिता की धारा 411 के अंतर्गत गिरफ्तार करके सज़ा दिलवाई जाती है।
अब इसका सीधा अर्थ यह है कि जो परिवार के मुखिया द्वारा रिश्वत के रूप में लाई हुई धन सम्पत्ति को स्वीकार करता है उसे भी सलाखों के पीछे होना चाहिए। अगर इस धारा का सख्ती से पालन किया जाए तो बहुत से परिजन अपने परिवार के मुखिया को भ्रष्ट साधनों से धन कमाने से रोक सकते हैं। कोई कर्मचारी या अधिकारी पकड़ में आ गया तो यह नहीं समझ लेना चाहिए कि रिश्वतखोरों पर नकेल कसी गई। जब तक इस देश के चुनाव लड़ने वाले नेताओं के परोक्ष धन स्रोतों का पता लगा कर नकेल नहीं डाली जाएगी तब तक प्रशासनिक क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार बंद नहीं हो सकता। जब तक तबादला करवाने और मन चाहे पदों पर नियुक्त होने के लिए इस देश और समाज में चांदी के पहियों का सहारा लिया जाएगा तब तक इस बुराई को दूर नहीं किया जा सकता। जिस देश में डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए भी लोगों को प्राइवेट कॉलेजों में मोटी रकम का चढ़ावा करके प्रवेश मिलता है, वहां नैतिकता का पाठ पढ़ाने का साहस कौन करेगा? अब बहुत-से निजी स्कूलों में देश के भविष्य बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए हज़ारों रुपये देकर ही स्कूल की दहलीज के अंदर प्रवेश मिलता है। इतना ही नहीं व्यावसायिक प्रशिक्षण देने वाले बहुत-से प्राइवेट संस्थानों को मान्यता दिलवाने के लिए भी मान्यवरों को खुश पड़ता है। 
कभी भी न भूल सकने वाला दिल्ली के एक परिवार का दुखद प्रसंग प्रस्तुत कर रही हूं। एक आईएएस अधिकारी को रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उनकी पत्नी को भी जांच एजेंसियों ने अथित तौर पर अमानवीय यातनाएं दीं, ऐसा उनका आरोप था। यह साबित ही नहीं हो सका कि उन्होंने अपराध किया या नहीं, परन्तु पहले उक्त अधिकारी की पत्नी और पुत्री ने और बाद में पिता-पुत्र ने दुखी होकर आत्महत्या कर ली। परिवार के प्रयासों के बिना सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता।