आज 37वीं पुण्य-तिथि पर विशेष-जन-सेवा को समर्पित थे मनमोहन कालिया

देश की मौजूदा राजनीति बेशक अतीव स्वार्थ-परक धरातल पर निरन्तर रपटती चली जा रही है, परन्तु अतीत की राजनीति में कई बार ऐसे चेहरे स्मरण हो आते हैं, अथवा आज भी दिखाई दे जाते हैं जो देश और समाज की सेवा का व्रत लेकर मैदान में उतरे होते हैं। ऐसा ही एक व्यक्तित्व थे अपने ज़माने के समाज-सेवी राजनीतिक नेता श्री मनमोहन कालिया। श्री मनमोहन कालिया का देहावसान बेशक 56 वर्ष की उम्र में ही हो गया, परन्तु अपने अल्प राजनीतिक जीवन में उन्होंने जालन्धर के ज़रिये पंजाब की राजनीति में अपने पद-चिन्हों की ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी उनकी कार्य-प्रणाली को स्मरण किया जाता है। श्री मनमोहन कालिया राजनीति में रहते हुए भी राजनीतिक संकीर्णताओं से बहुत ऊपर थे। श्री मनमोहन कालिया का जन्म 15 जून, 1930 को एक साधारण स्कूल-शिक्षक पंडित अमीर कृष्ण कालिया के घर हुआ। पंडित अमीर कृष्ण कालिया धन-दौलत के रूप में बेशक अधिक अमीर न थे, परन्तु वह दिल के बहुत अमीर थे।  उन्होंने अपने बेटे के भीतर संस्कारों की वह भावना भरी जो आज उनकी तीसरी पीढ़ी के वारिस मनोरंजन कालिया में भी दिखाई देती है। 
श्री मनमोहन कालिया वैसे तो विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में रुचि लेने लगे थे, परन्तु 1951 में जनसंघ की स्थापना के बाद उससे ऐसे जुड़े कि एक साधारण कार्यकर्ता से उन्नति करते हुए पहले नगर पिता, फिर विधायक और फिर मंत्री भी बने। श्री मनमोहन कालिया ने राजनीति को प्रतिष्ठा का साधन नहीं, अपितु हमेशा तपस्या और लोक-हित का ध्येय माना। जनसंघ, जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी, तीनों स्तरों पर उन्होंने जन-सेवा की एक ऐसी छाप छोड़ी, कि उनके दर से कभी कोई साधारण फरियादी भी अनुसना गया हो, ऐसा स्मरण नहीं आता।  अपने घर के आंगन में एक अदद कुर्सी और बड़ा-सा मेज़ लगा कर वह सुबह-सवेरे बैठ जाते, और रात देर तक उनके दरवाज़े सभी के लिए खुले रहते। 
श्री मनमोहन कालिया की राजनीति का आलम यह था कि वह अपने विधानसभा क्षेत्र के प्राय: हर घर के हर व्यक्ति को निजी तौर पर जानते थे। वह हर व्यक्ति एवं परिवार के सुख-दुख में निजी तौर पर शामिल होते थे। उनके स्वभाव में मिलनसारिता थी।  मंत्री बन जाने पर भी, उनके चेहरे पर घमंड अथवा दम्भ की कभी कोई एक रेखा तक नहीं उभरी थी। उनका विवेक और दूरदर्शिता सदैव प्रशंसनीय रहे। 
सेवा, निष्ठा और परोपकार की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। 2 जून, 1986 को अचानक एक सड़क दुर्घटना में उनके देहावसान से जालन्धर की राजनीति से एक सज्जन पुरुष उठ गया। आज मनमोहन कालिया बेशक शरीर रूप में हमारे बीच विद्यमान नहीं, परन्तु उनके सुपुत्र श्री मनोरंजन कालिया अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए, ‘बाबानियां कहानियां पुत्त सपुत्त करेन’ की तरज पर, उन्हीं के सेवा-यज्ञ को आगे जारी रखे हुए हैं। आज उनकी 37वीं पुण्य बरसी पर हम उन्हें स्मरण करते हैं।