2024 के लिए विपक्ष अपना सकता है पांच सूत्री दृष्टिकोण

आखिरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से लड़ने की संयुक्त रणनीति पर चर्चा के लिए विपक्षी दल 12 जून को पटना में बैठक कर रहे हैं। अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में दस महीने से भी कम समय बचा है। विपक्ष के लिए कर्नाटक में हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की प्रभावशाली जीत के बाद राजनीतिक स्थिति अनुकूल है। इसके अलावा विपक्ष ने नए संसद भवन के प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के विरोध में और दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने वाले केंद्रीय अध्यादेश के मामले में भी एकता दिखायी है।
इसलिए बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा आयोजित पटना सम्मेलन में विपक्षी नेताओं को आशावादी मूड में देखना चाहिए, क्योंकि एक लम्बे अंतराल के बाद देश में एक नया आख्यान जोर पकड़ रहा है कि मोदी के जादू के बावजूद भाजपा को हराया जा सकता है। लेकिन अगर विपक्षी नेता गठजोड़ पर चर्चा करते समय कुछ कठोर वास्तविकताओं को अनदेखा करते हैं, तो एक अनुकूल वातावरण भी बिगड़ सकता है।
कुछ सूत्रों का कहना है कि मेजबान के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री कुल 543 लोकसभा क्षेत्रों में से 475 में भाजपा और विपक्ष के बीच आमने-सामने की लड़ाई का प्रस्ताव दे रहे हैं। नितीश ने अपने अध्ययन के बाद यह प्रस्ताव किया होगा, लेकिन राजनीतिक हकीकत यह है कि गठबंधन का कोई एक समान फार्मूला पूरे देश में लागू नहीं हो सकता। यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होगा। लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए क्षेत्रीय दल किसी राष्ट्रीय पार्टी को अपना आधार नहीं देंगे। ये पार्टियां अपने भविष्य का भी ध्यान रखेंगी। ऐसे में विपक्ष के लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि राज्यों को पांच श्रेणियों में बांट दिया जाये और लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी वोट के बंटवारे को टालने की पूरी कोशिश की जाये। ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह रणनीति केवल लोकसभा चुनाव तक के लिए लागू हो।
आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां अपनी-अपनी ताकत पहचानने के लिए एक-दूसरे के तथा भाजपा के खिलाफ  भी चुनाव लड़ सकती हैं, जिसके आधार पर लोकसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत हो सकती है।
पहली श्रेणी में वे राज्य शामिल होने चाहिए जहां विपक्षी गठबंधन पहले से ही काम कर रहा है। ये हैं—बिहार, तमिलनाडु, झारखंड और महाराष्ट्र। इन चारों में से पहले तीन में विपक्ष का शासन है। चौथे राज्य महाराष्ट्र में एमवीए ठीक काम कर रहा है। यदि नेताओं को ऐसा लगता है, तो वे एमवीए को और मजबूत करने के लिए दो वामपंथी पार्टियों भाकपा और माकपा को सहयोगी बना सकते हैं।
दूसरी श्रेणी में वे राज्य शामिल हैं जहां कांग्रेस भाजपा के लिए मुख्य चुनौती है। इन राज्यों में गठबंधन के मामले में कांग्रेस निर्णायक होगी। ये राज्य हैं—मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा।
तीसरी श्रेणी में वे राज्य शामिल हैं जहां क्षेत्रीय दल कांग्रेस और भाजपा दोनों से लड़ेंगे, क्योंकि वहां क्षेत्रीय दल मज़बूत हैं। ये राज्य हैं—पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब, दिल्ली और तेलंगाना। बंगाल में आमने-सामने के फार्मूले के लिए प्रयास करना व्यर्थ होगा। तृणमूल कांग्रेस 2024 के चुनावों में कुल 42 में से अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की कोशिश करेगी। वाम मोर्चा और कांग्रेस संयुक्त रूप से चुनाव में टीएमसी और भाजपा दोनों से लड़ सकते हैं।
पंजाब और दिल्ली में ‘आप’ और कांग्रेस के लिए भाजपा के खिलाफ  कोई समझौता करना मुश्किल होगा। इस बात की पूरी संभावना है कि ‘आप’ और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ें।
केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा और कांग्रेस लोकसभा सीटों के लिए चुनाव लड़ेंगे। वाम अपनी संख्या बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, लेकिन हर हाल में कांग्रेस और वाम दोनों ही विपक्ष का हिस्सा हैं। इसलिए कुल सीटें समान रहेंगी।
तेलंगाना में भारत राष्ट्र संिमति (बीआरएस) भाजपा और कांग्रेस दोनों के खिलाफ  लड़ेगी। बीआरएस 12 जून के सम्मेलन में भाग नहीं ले रही। इसलिए ऐसा लगता है कि कांग्रेस के खिलाफ  उसकी द्वेष बरकरार है। विपक्ष के क्षेत्रीय नेताओं को लोकसभा चुनाव के बाद बीआरएस को अपने पक्ष में लाना है।
राज्यों की चौथी श्रेणी में आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल हैं। ये सत्ताधारी दल विपक्ष के साथ नहीं हैं। कांग्रेस इन राज्यों में भाजपा के अलावा दोनों संबंधित क्षेत्रीय दलों—आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी और ओडिशा में बीजू जनता दल के खिलाफ  लड़ेगी। यह क्षेत्रीय नेताओं, विशेष रूप से नितीश कुमार और ममता बनर्जी का कर्त्तव्य है कि लोकसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु लोकसभा होने पर विपक्ष को समर्थन देने के लिए उन्हें राज़ी करें।
पांचवीं श्रेणी में पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं, जिनमें 25 लोकसभा सीटें हैं, असम में 14 सहित। असम में कांग्रेस भाजपा के खिलाफ  अग्रणी पार्टी है, लेकिन उसे तृणमूल, अन्य भाजपा विरोधी स्थानीय दलों के साथ-साथ सीपीआई और सीपीआई (एम) के साथ भाजपा को चुनौती देने के लिए सार्थक विचार-विमर्श करना चाहिए। मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा एक चतुर राजनेता हैं।
त्रिपुरा में वाम दल भाजपा के खिलाफ  मुख्य ताकत है और वह भाजपा के खिलाफ  कांग्रेस के साथ गठबंधन में है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। फिर भी टिपरामोथा से बात करने और उन्हें विपक्ष में लाने की संभावना है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को टीएम प्रमुख प्रद्योत माणिक्य से बात करनी है, जिन्होंने अभी तक भाजपा के साथ गठबंधन नहीं किया है। त्रिपुरा में दो लोकसभा सीटें हैं। वामपंथियों का एक मज़बूत गठबंधन, कांग्रेस और टीएम 2024 के चुनावों में दोनों लोकसभा सीटों को आसानी से सुरक्षित कर सकते हैं। वर्तमान में दोनों सीटों पर काबिज भाजपा को हरा सकते हैं।
पूर्वोत्तर में अन्य राज्य मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम हैं। गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस को भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों से बात करनी होगी। क्षेत्रीय सत्तारूढ़ दलों की केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के साथ गठबंधन करने की आदत है। इसलिए भले ही विपक्ष उन्हें लोकसभा चुनाव से पहले प्राप्त करने में विफल रहता है, अगर भाजपा 2024 के चुनावों में बहुमत हासिल करने में विफल रहती है तो स्थिति बदल सकती है। (संवाद)