विपक्षी एकता में एक नहीं, अनेक रोड़े

विपक्षी एकता परवान चढ़ने से पहले ही धराशाही हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की विपक्षी एकता वाली फिल्म तो शुरू होने से पहले फ्लॉप हो गई। पटना में मोदी विरोधियों को एक मंच पर खड़ा करने के लिए नितीश ने खूब पसीना बहाया, लेकिन उनकी मेहनत पर कांग्रेस ने पानी फेर दिया। नितीश कुमार पिछले कई महीनों से दौड़ धूप कर रहे थे। वे एक-एक नेता से मिलने उनके प्रदेश जा रहे थे। नितीश ने इस अवधि में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता भुवनेश्वर, लखनऊ और चेन्नई आदि राज्यों की यात्रा की। जहां उन्होंने सभी बड़े नेताओं यथा कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे, केजरीवाल, ममता, स्टालिन, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश, जयंत चौधरी, केसीआर, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, हरियाणा के ओ.पी. चौटाला आदि से मुलाकात कर बड़े-बड़े दावे किये। इनमें नवीन पटनायक ने ऐसी किसी मुहीम से जुड़ने से साफ इंकार कर दिया था। शेष ने अपनी सहमति जाहिर कर दी थी। मगर इस बार कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस ने नितीश के एकता प्रयासों की हवा निकाल दी। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है विपक्षी एकता के सूत्रधार एक क्षेत्रीय बने ये उन्हें स्वीकार नहीं है। कांग्रेस नितीश की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रही है। नितीश ने 12 जून को पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक आहूत की थी। यह बैठक एक बार नहीं टली है, पहले यह बैठक 19 मई को होनी थी लेकिन तब कांग्रेस नेतृत्व कर्नाटक चुनाव में व्यस्त था। अब एक बार फिर से बैठक टालने का कारण कांग्रेस ही बनी। बताया जाता है इस एकता की मुहीम के फ्लॉप होने के पीछे नेताओं की अति महत्वकांक्षा भी बाधक बन रही है। नितीश, तेजस्वी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार और स्टालिन जैसे नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का संभावित चेहरा स्वीकार करने को सहमत है। मगर ममता, केसीआर जैसे नेता इससे सहमत नहीं है। अखिलेश चाहते है कांग्रेस उनके राज्य में कोई हस्तक्षेप नहीं करे इसी शर्त पर वे राहुल का नेतृत्व स्वीकार करने के पक्षधर है। 
बहरहाल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत ने पार्टी को संजीवनी प्रदान कर दी है। कर्नाटक में कांग्रेस की बड़ी जीत से न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि विपक्ष की बाकी पार्टियों में भी ये संदेश गया है कि 2024 में भाजपा को हराया जा सकता है। इसके साथ ही राहुल गांधी को भी राजनीतिक प्राण वायु मिल गई है। बिहार के मुख्यमंत्री और विपक्ष की धुरी बने नितीश कुमार ने विपक्ष के लगभग सभी नेताओं से संपर्क साध लिया है और यह ऐलान भी कर दिया है कि भाजपा के सामने वन टू वन मोर्चा लगाया जायेगा। मोदी का जादू खत्म होने का दावा भी किया जाने लगा है। मगर असली परीक्षा इस साल होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में होंगी। इन प्रदेशों में यदि दो प्रदेशों में भी भाजपा जीत जाती है तो मोदी का करिश्मा कोई भी नहीं तोड़ पायेगा।  
दूसरी तरफ अपने अमरीका दौरे पर राहुल गांधी ने दावा करते हुए कहा कि मुझे लगता है कि कांग्रेस पार्टी अगले चुनाव में बहुत अच्छा करेगी। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि यह लोगों को आश्चर्यचकित करेगा, आप गणित लगा लीजिए। संयुक्त विपक्ष भाजपा को अपने दम पर हराएगा। राहुल के दावों के विपरीत जमीनी सच्चाई यह है कि नितीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल सहित शीर्ष विपक्षी नेताओं द्वारा गहन प्रचार के बावजूद विपक्षी एकता की कमी साफ दिखाई देती है। कुछ क्षेत्रीय पार्टियों जिनमें बीजेडी, वाईएसआरसीपी, बीआरएस और बीएसपी शामिल हैं ने विपक्षी गठजोड़ में शामिल होने से साफ रूप से मना कर दिया है। इसके अलावा आप और कांग्रेस और टीएमसी के बीच कड़ी प्रतिद्वंद्विता है। जो समय-समय पर दिखाई दे जाती है। बहरहाल 2024 के आने तक विपक्षी एकता के मनसूबे यूं ही बनते बगड़ते रहेंगे।