पुराने ट्वीट मिटाने में लगे हुए हैं ‘आप’ नेता

 

आम आदमी पार्टी के नेताओं खासकर सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल को विपक्षी नेताओं से मिलते हुए आजकल बेहद शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि देश का कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जिस पर उन्होंने भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया हो या कोई अनाप-शनाप ट्विट नहीं किया हो। आते ही देश की राजनीति पर छा जाने की अपनी सोच और अति महत्वाकांक्षा में उन्होंने कांग्रेस और भाजपा सहित सभी पार्टियों निशाना बनाया था। ‘भ्रष्ट’ नेताओं की एक सूची जारी की थी, जिसमें देश के 28 बड़े नेताओं के नाम थे। जैसे-जैसे उन्हें राजनीतिक असलियत का ज्ञान और अपनी हैसियत का अंदाजा हुआ, तो यू टर्न लेने लगे। अब वह भाग-भाग कर सभी विपक्षी नेताओं से मिल रहे हैं। अपने पुराने बयानों और आरोपों के लिए वह देश के कई नेताओं से लिखित और मौखिक माफी मांग चुके हैं। उनकी पार्टी के नेता अब पुराने ट्विट डिलीट करने में लगे हैं, क्योंकि केजरीवाल को जिस विपक्षी नेता से मिलने जाना होता है, उसके बारे में किए गए उनके पुराने ट्विट तुरंत सोशल मीडिया में घूमने लगते हैं। आप नेताओं की मुश्किल यह है कि जितने भी ट्रोल्स हैं, उन्होंने केजरीवाल के ट्विटर हैंडल की टाइमलाइन से उनके पुराने ट्विट उठा कर उनके स्क्रीनशॉट सेव करके रखे हैं। हर पार्टी के आईटी सेल ने भी इन्हें संभाल कर रखा है। इसलिए टाइमलाइन डिलीट करने के बावजूद पुराने ट्विट सामने आ रहे हैं।
भाजपा बनाम शिंदे
महाराष्ट्र में मिल कर सरकार चला रही भाजपा और एकनाथ शिंदे की शिव सेना के बीच खटपट शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री शिंदे भले ही खुल कर कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी के सांसद और विधायक अब खुल कर नाराज़गी जाहिर करने लगे हैं। उनकी पहली नाराज़गी इस बात को लेकर है कि एक साल होने के बाद भी पाला बदलने वाले ज्यादातर विधायकों को न तो मंत्री बनाया गया है, और न कोई दूसरा सरकारी पद मिला है। सांसदों की नाराज़गी है कि उन्हें केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया। 
शिंदे गुट के सांसद अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि अभी तक दिल्ली में उन्हें केन्द्र सरकार के सहयोगी के तौर पर स्वीकार ही नहीं किया गया है। उनका कोई भी काम नहीं होता है। काम नहीं होने की यही शिकायत महाराष्ट्र में शिंदे गुट के विधायकों की भी है। शिंदे भले ही मुख्यमंत्री हैं लेकिन सरकार भाजपा की मानी जा रही है। ऊपर से 15 विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटकी है। हालांकि स्पीकर का फैसला उनके पक्ष में आएगा लेकिन उन्हें यह भी पता है कि ठाकरे गुट उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा और कोर्ट का क्या रुख है, यह सबने देखा है। बृहन्नमुंबई महानगर निगम सहित कई शहरों में नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म हो गया है। सो, वहां भी सारे काम अधिकारी ही कर रहे हैं।
पहलवानों के आंदोलन से भाजपा बेफिक्र
केन्द्र सरकार और भाजपा पहलवानों के आंदोलन से उसी तरह बेफिक्र हैं, जैसे वे किसान आंदोलन को लेकर लम्बे समय तक बेफिक्र रहे थे। भाजपा ने एक साल तक किसान आंदोलन की कोई परवाह नहीं की थी। एक साल के बाद हालांकि प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए थे लेकिन इसके इलावा किसानों से किया गया कोई वादा पूरा नहीं किया गया। भाजपा के नेता मानते हैं कि किसान आंदोलन का कोई राजनीतिक नुकसान उनको नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों जगह भाजपा बड़े बहुमत से जीती। पंजाब में भाजपा जहां थी, वहीं रही लेकिन कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। यहां तक कहा जा रहा था कि पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार और हरियाणा के कांग्रेस नेताओं ने आंदोलन को मदद पहुंचाई थी। 
उसी तरह अब कहा जा रहा है कि पहलवानों के आंदोलन के पीछे हरियाणा के कांग्रेस नेता हैं। पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह लगातार इस आंदोलन को एक परिवार और एक खाप का आंदोलन और कांग्रेस पार्टी की साज़िश साबित करने में लगे हैं। इस वजह से भाजपा बेपरवाह है। उसे लग रहा है कि आम अवाम पर इसका कोई असर नहीं होगा। वैसे भी भाजपा ने हरियाणा में गैर-जाट मुख्यमंत्री बना कर अपना राजनीतिक इरादा साफ कर दिया है। इसलिए उसे अपने नुकसान की चिंता नहीं है। हां, उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी के नेता ज्यादा परेशान हैं।