रेलगाड़ियों को ‘कवच’ से लैस किया जाना चाहिए

पिछले दिनों ओडिशा के बालासोर जिले में हुई भीषण रेल दुर्घटना के बाद परिचालन खामियों के बारे में सवाल उठने लगे हैं। कैसे कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस एक खड़ी मालगाड़ी से टकराने के बाद पटरी से उतर गई और दूसरी ट्रेन यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट पटरी से उतरे डिब्बों से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इतने बड़ी रेल दुर्घटना को तकनीकी खराबी या मानवीय भूल, क्या माना जाए? इस भीषण दुर्घटना में सैंकड़ों लोगों की जान चली गई और एक हज़ार से आधिक लोग  घायल हो गए। यह टक्कर इतनी ज़ोरदार थी कि पटरियों पर गिरने से पहले डिब्बे हवा में उछले थे। 
एक तरफ  केंद्र सरकार देश को बुलेट ट्रेन के सपने दिखा रहीं है वहीं दूसरी तरफ  भीषण रेल दुर्घटनाएं हो रहीं हैं। इस भीषण रेल हादसे के बाद अब एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसे हादसों के लिए कौन ज़िम्मेदार है तथा देश में वह दिन कब आयेगा जब यह सुनिश्चित होगा कि रेल यात्रा करने वाले यात्री अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचेंगे। दरअसल रेल दुर्घटना का असर बाकी किसी भी हादसे से कई गुना ज्यादा होता है। इसका सीधा कारण यात्रियों की संख्या है। भारत में अंतर्देशीय परिवहन के लिए रेल सबसे बड़ा माध्यम है। दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारत में प्रतिदिन सवा दो करोड़ से भी ज्यादा यात्री सफर करते हैं जबकि 87 लाख टन के आसपास सामान की ढुलाई हेती है, साथ ही कुल 67415 किलोमीटर  के ट्रैक पर ज़रा-सी गफलत लाखों लोगों की जान को जोखिम में डाल सकती है। प्रारंभिक जांच में हादसे के लिए खराब सिग्नल को वजह बताया गया था। रेलवे ने बताया कि रेलगाड़ियों को टकराने से रोकने वाली प्रणाली ‘कवच’ इस मार्ग पर उपलब्ध नहीं है। अगर यह कवच होता तो हादसे को रोका जा सकता था। भारतीय रेलवे के प्रवक्ता के अनुसार इस मार्ग पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस के स्लीपर क्लास के डिब्बे छुट्टियों के दौरान लोगों से खचाखच भरे रहते हैं। इन डिब्बों में जनरल डिब्बों के यात्री भी घुस जाते हैं और इस वजह से स्लीपर डिब्बे की हालत भी कई बार जनरल डिब्बे जैसी हो जाती है।
इस रेल हादसे के बाद एक बार फिर से यात्रियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हादसे की खबरों के बीच भारतीय रेलवे के उस कवच की चर्चा हो रही है, जो अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस में लगा होता तो इतना बड़ा रेल हादसा न होता।  रेलवे के कवच का उद्घाटन पिछले साल हुआ था। दरअसल रेलवे ने अपने यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कवच का निर्माण करवाया था जिसके अस्तित्व में आने के बाद यह माना जा रहा था कि भविष्य में रेल हादसों पर लगाम लग जाएगी।  कवच के सफल परीक्षण के बाद उसे रेलवे का मास्टर स्ट्रोक और बड़ी क्रांति माना जा रहा था। इससे निर्माण से रेलवे वह तकनीक विकसित कर चुका है जिसमें अगर एक ही पटरी पर दो गाड़ियां आमने-सामने भी आ जाएं तो दुर्घटना नहीं होगी। रेल मंत्रालय ने तब बताया था कि इस कवच टेक्नोलॉजी को धीरे-धीरे देश के सभी रेलवे ट्रैक और ट्रेनों पर लगा दिया जाएगा, लेकिन अब रेलवे के इन्हीं दावों पर सवाल उठ रहें हैं ।
पिछले साल मार्च 2022 में हुए कवच टेक्नोलॉजी के ट्रायल में एक ही पटरी पर दौड़ रही दो ट्रेनों में से एक गाड़ी में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सवार थे और दूसरी गाड़ी के इंजन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन खुद मौजूद थे। एक ही पटरी पर आमने-सामने आ रही गाड़ियों के इंजन कवच टेक्नोलॉजी के कारण टकराए नहीं, क्योंकि कवच ने रेल मंत्री की गाड़ी को सामने आ रहे इंजन से 380 मीटर दूर ही रोक दिया था और इस तरह परीक्षण सफल रहा था। सफल ट्रायल के बाद रेल मंत्री ने कहा था कि अगर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने-सामने हों तो कवच टेक्नोलॉजी ट्रेन की स्पीड कम कर इंजन की ब्रेक लगा देती है। इससे दोनों ट्रेनें आपस में टकराने से बच जाएंगी। 2022-23 में कवच टेक्नोलॉजी को 2000 किलोमीटर रेल नेटवर्क पर इस्तेमाल करने का लक्ष्य था। इसके बाद हर साल 4000-5000 किलोमीटर रेलवे नेटवर्क को इस तकनीक से जोड़ने का लक्ष्य था लेकिन इस काम में जिस तेज़ी की उम्मीद की गई थी शायद उस स्तर पर काम नहीं हो पाया। कवच टेक्नोलॉजी को देश के तीन वेंडर्स के साथ मिलकर आरडीएसओ (रिसर्च डिजाइन एंड स्टेंडर्ड्स ऑर्गेनाइजेशन) ने विकसित किया था ताकि पटरी पर दौड़ती ट्रेनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। आरडीएसओ ने इसके इस्तेमाल के लिए ट्रेन की स्पीड लिमिट अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटा तय की थी। इस सिस्टम में कवच  का सम्पर्क पटरियों के साथ-साथ ट्रेन के इंजन से होता है। पटरियों के साथ इसका एक रिसीवर होता है तो ट्रेन के इंजन के अंदर एक ट्रांसमीटर लगाया जाता है ताकि ट्रेन की असल लोकेशन पता चलती रहे।  
कवच की खासियत यह है कि वह उस स्थिति में एक ट्रेन को ऑटोमेटिक रूप से रोक देगा, जैसे ही उसे निर्धारित दूरी के भीतर उसी पटरी पर दूसरी ट्रेन के होने का सिग्नल मिलेगा। इसके साथ-साथ डिजिटल सिस्टम रेड सिग्नल के दौरान जंपिंग या किसी अन्य तकनीकी खराबी की सूचना मिलते ही कवच के माध्यम से ट्रेनों के अपने आप रुकने की बात कही गई थी।