दवा नहीं, ज़हर खा रहे हम

देश में चिकित्सा सुविधा कितनी बेहतर है। यह किसी से छिपा नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति आज भी दयनीय है। इसे बाद मानवीय अवश्यकता के लिए यह स्थिति कोढ़ में खाज से बढ़ कर है। अधोमानक दवाओं का बाज़ार गर्म है। सैकड़ों प्रतिबंधित या प्रतिबंध योग्य दवाएं बेरोकटोक बाज़ार से लेकर परचून तक की दूकानों में भरी पड़ी है। केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन कई बार नकली दवाओं की शिकायत या किसी प्रतिद्वंदी दवा कम्पनी की गोपनीय शिकायत के आधार पर जब कभी कार्रवाई होती है तो एक संख्या बताकर फौरी कार्रवाई तो कर लेता है, लेकिन दवा माफिया के सामने चंद दिनों में मामला ठप्प हो जाता है। आज से ठीक 9 वर्ष पहले स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 344 दवाइयों को प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन बाद में मामला ठण्डे बस्ते में चला गया था। अभी एक माह पूर्व सरकार ने 156 फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। ये आम तौर पर बुखार और सर्दी के अलावा पेन किलर, मल्टी-विटामिन और एंटीबायोटिक्स के रूप में इस्तेमाल की जा रही थीं। दो दिन पूर्व केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन ने पैरासिटामोल समेत जिन दवाओं को प्रतिबंधित श्रेणी में शामिल किया है। कारोबारियों ने कुछ घंटों में करोड़ों की दवाओं को फुटकर बाज़ार में खपा दिया। अब जब तक निर्माता कम्पनियों की तरफ  से इनकी बाज़ार से वापिसी का फैसला होगा, तब तक इसे आम लोग ले भी चुके होंगे। सवाल यह भी कि देश में आज भी बहुत-सी आबादी या तो अशिक्षित या फिर उसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है। बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न अंग्रेज़ी दवाओं पर एक्सपायरी तारीख से लेकर अन्य जानकारी अंग्रेज़ी में अंकित होती है। ऐसे में बीमारी या दर्द से छुटकारा पाने के लिए जिन दवाओं का सेवन उनके द्वारा किया जा रहा है, उनमें अवधि पूरी कर चकी दवाएं ज़हर साबित हो रही हैं। उक्त दवाएं उन्हें बीमारी या दर्द से मुक्त करने की जगह कोई बड़ी बीमारी दे रही है। 
नकली और अधोमानक दवाओं की बिक्री की जानकारी होने पर केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने देश भर से विभिन्न दवाओं के नमूने मंगवा कर जांच कराई। इसकी रिपोर्ट चार दिन पहले सार्वजनिक हुई। इस जांच में पता लगा कि बुखार की सबसे अधिक बिकने वाली दवा पैरासिटामोल समेत 53 दवाएं अधोमानक हैं। मतलब यह कि इनमें मौजूद साल्ट मानक से कम हैं। सीडीएससीओ ने इन दवाओं के बैच नंबर को प्रतिबंधित सूची में डालते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन जब तक इस रिपोर्ट पर अमल होगा, कारोबारियों ने पूरा स्टॉक बाज़ार में खपा दिया। बाज़ार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि केवल 10 से 12 प्रतिशत स्टाक थोक स्टाकिस्टों ने होल्ड कर रखा है, जिसे कम्पनी की तरफ  से वापिसी का आधिकारिक पत्र आने पर वापिस कर कागज़ की कोरमपूर्ति की जाएगी। इसमें भी अधिकांश ऐसा स्टाक है, जिसकी एक्सपायरी तारीख नज़दीक है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मानव शरीर पर बुरा प्रभाव डालने वाली दवाइयों की लिस्ट जारी कर उन्हें प्रतिबंधित के आदेश जारी किए गए थे। इनमें से कुछ कफ सिरप भी थी, जिनका उपयोग नशे के लिए किया जाता है। उनके भी वितरण और बिक्री पर रोक लगा दी गई। औषधि नियंत्रक विभाग की ओर से ज़िले के मेडिकल व्यवसायियों को इन दवाइयों की सूची जारी कर उन्हें कम्पनी प्रतिनिधियों को फिर से लौटाने के आदेश दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पेन किल्लर में पेरासिटामोल और निमुस्लाइड कॉम्बिनेशन होने के साथ इनकी मात्रा भी काफी अधिक होती है। एंटी कोल्ड में भी पेरासिटामोल के साथ कैफीन की मात्रा ज्यादा होने से यह शरीर पर बुरा प्रभाव डालती है। यह कफ सिरप नशे के रूप में अधिकांश काम में ली जाती है। यही नहीं आज से नौ साल पहले औषधि नियंत्रक अधिकारियों के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिन 344 फिक्स कॉम्बिनेशन डोज पर प्रतिबंध लगाया है उनमें से 200 तो एंटी कोल्ड, पेन किलर और कफ सिरप ही है। 
आमूनन मरीज़ों का पहला भरोसा अपने चिकित्सक और उसकी लिखी दवाइयों पर होता है। सामान्य सर्दी जुकाम, बुखार और सिर दर्द, पेट दर्द, में कई दफा वे डाक्टर से बिना परामर्श किए दवाएं खरीद लेते हैं। ये दवाइयां आम चलन में होती हैं। मगर केंद्रीय औषधि नियंत्रण संगठन के हालिया गुणवत्ता परीक्षण में जिस तरह पचास से ज्यादा दवाइयों के नाकाम होने की जानकारी सामने आई है, उससे साफ  है कि इन दवाओं का सेवन जोखिम भरा है। जांच में आम इस्तेमाल में आने वाली पैरासिटामोल, पैन डी, कैल्शियम और विटामिन डी की गोलियों के अलावा मधुमेह  रोधी समेत पचास से अधिक दवाओं में कई कमियां पाई गईं। 
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो दवाएं परीक्षण में नाकाम बताई गई हैं, अब तक उनका सेवन कितने लोग कर चुके होंगे और क्या उनसे उनकी सेहत पर कितना प्रतिकूल असर पड़ा होगा?  मगर चिंता की बात यह है कि गुणवत्ता की कसौटी पर किसी दवा के फेल होने या घोषित रूप से उसकी बिक्री प्रतिबंधित कर दिए जाने के बावजूद वे दवाएं बाज़ार में कैसे उपलब्ध होती हैं? सच यह है कि दुकानों पर इनकी बिक्री को लेकर ज़मीनी स्तर पर शायद ही कोई रोकटोक होती होगी। समय-समय पर नकली दवाओं के खतरनाक असर को लेकर अध्ययन सामने आते रहे हैं। ऐसे में सिर्फ  यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि घटिया दवाइयों के दुष्प्रभावों से कितने लोग प्रभावित हो रहे होंगे।