विकसित भारत : बढ़ती आबादी व आर्थिक असमानता बड़ी चुनौती

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लम्बे समय से विकसित भारत की बात कर रहे हैं। हाल के अमरीका दौरे में भी मोदी ने इस बात को दोहराया है। देश का सपना एक विकसित राष्ट्र बनने का है और इसके लिए चलाए जा रहे अभियान के पीछे भारत की आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी प्रगति को तेज़ गति देने का उद्देश्य निहित है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विकसित भारत अभियान का मुख्य उद्देश्य देश की समग्र प्रगति को सुनिश्चित करना है जिससे सभी नागरिकों को समान अवसर और सुविधाएं मिल मिलना संभव हो सके। अभियान के तहत बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि कई प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
मोदी बार-बार भारत को विकसित बनाने के अपने संकल्प को दोहराते हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या देश की जनता इस सपने को साकार करने में मन से जुड़ी हुई है? सरकार की कोशिश अपनी जगह है, परन्तु हम लोग इस सपने को साकार करने के लिए क्या योगदान दे रहे हैं? क्या सचमुच इस अभियान से हमारा उतना जुड़ाव है, जिसकी ज़रूरत महसूस की जा रही है? इन सवालों पर गहन चिंतन करने की ज़रूरत है। कोई भी काम जनता की भागीदारी के बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। हमारे लिए विकसित भारत का सपना केवल सिर्फ  आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस सपने को तभी साकार किया जा सकता है, जब इसमें जन-जन का जुड़ाव हो। विकसित भारत के लिए जन आंदोलन की आवश्यकता है। जन आंदोलन बनने पर ही इसमें हर नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित कर पाना संभव है।
अगर हम अतीत पर नज़र डालते हैं तो हमें जन भागीदारी के सफल उदाहरण दिखाई पड़ते हैं। एक समय ऐसा था, जब हमारे देश में लोगों का पेट भरने के लिए भी अनाज का उत्पादन नहीं होता था। देशवासियों का पेट भरने के लिए अनाज का आयात अपरिहार्य था मगर याद कीजिए, जब देश ने अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की ठान ली तो जन-जन की भागीदारी इसमें हुई तो वह सपना साकार होने में देर नहीं लगी।  दुग्ध क्रांति का सपना भी ऐसा ही एक उदाहरण है। अन्न व दूध उत्पादन में सफलता के पीछे व्यापक जन जुड़ाव रहा है।
सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएं बनाती है, विकास कार्यक्रम तैयार करती है, अनेक सुधारों की पैरवी करती है, अनेक कानून बनाए जाते हैं, लेकिन अकेले सरकारी प्रयासों या कानूनों के दम पर क्या सभी काम हो पाने संभव हैं? जब हर छोटे-बड़े काम के लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत पड़ती है तो भारत को विकसित बनाने का मिशन तो बहुत बड़ी सोच है। इसे जन आंदोलन बनाए बिना यथार्थ के धरातल पर कैसे उतारा जा सकता है? देश को विकसित बनाने के लिए नागरिकों को उनके कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। जब लोग अपने आस-पास की समस्याओं, जरूरतों को समझेंगे, तभी वे बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा सकेंगे। इसके लिए तमाम युवाओं, सामाजिक व राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोगों और शिक्षण संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका परिहार्य होगी। विकसित भारत सामाजिक न्याय और समानता की नींव पर ही खड़ा हो सकता है। जातिवाद, भेदभाव और असमानता के खिलाफ जन आंदोलन आवश्यक हैं। ऐसे आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी विशेष रूप से ज़रूरी होती है। इसके साथ-साथ शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में समानता सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार की दरकार है ताकि सभी वर्गों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सके। रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना भी उतना ही ज़रूरी होगा। शिक्षा प्रत्येक देश के विकास का आधार होती है लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली में अभी बहुत से सुधारों की दरकार है। हालांकि सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाकर इस दिशा में काम शुरू किया है मगर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच शिक्षा का असंतुलन, उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी और बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी समस्या है जिसका समाधान करने की ज़रूरत है। विकसित भारत की राह में आर्थिक असमानता एक बड़ी बाधा है। अमीर और गरीब के बीच की खाई तेजी से बढ़ रही है। एक ओर जहां कुछ क्षेत्रों में लोगों की आय और जीवन स्तर में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग गरीबी झेल रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता भी स्पष्ट है।  विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए देश के प्रशासनिक ढांचे में भी सुधार अपेक्षित है क्योंकि भ्रष्टाचार, नौकरशाही और निर्णय लेने में देरी से विकास परियोजनाओं में बाधाएं आती हैं। सरकार की विभिन्न नीतियों और योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन न होने से भी विकास दर पर असर पड़ता है। अगर राजनीतिक और प्रशासनिक प्रक्त्रियाओं में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाई जाए तो यह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।  हमारे देश की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर हैए इसलिए यह सुनिश्चित बनाना होगा कि किसानों की आय को बढ़ाया और उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों से लैस किया जाए। 
भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश के विकास के समक्ष एक प्रमुख चुनौती और बाधा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश के संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। वर्तमान में देश की जनसंख्या 140 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 में आबादी 167 करोड़ हो जाने का अनुमान है। (युवराज)