दिल्ली के लिए चेहरे की तलाश कर रही है भाजपा

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और आतिशी को टक्कर देने के लिए एक चेहरे की तलाश कर रहा है। उसे ऐसा चेहरा चाहिए जो जातीय समीकरण की कसौटी पर खरा हो और लोक लुभावन भी हो। इससे पहले भाजपा दो महिला चेहरों को आजमा चुकी है और नाकाम रही है। सबसे पहले 1998 में सुषमा स्वराज को आज़माया गया था और उस समय जो भाजपा हारी तो आज तक नहीं जीत पाई है। भाजपा ने दूसरी बार 2015 में किरण बेदी को आजमाया। उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश करके चुनाव लड़ने को मीडिया ने भाजपा का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताया था, लेकिन सिर्फ तीन सीटें ही मिली थीं। खुद किरण बेदी भी नहीं जीत सकी थीं। वह भाजपा का अभी तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। भाजपा 1993 में पहली और आखिरी बार जीतने के बाद सिर्फ 2013 में जीत के करीब पहुंची थी, जब वह डॉक्टर हर्षवर्धन के नेतृत्व में 32 सीटें जीती थी। पता नहीं क्यों भाजपा ने हर्षवर्धन को किनारे कर दिया? बहरहाल, अब कहा जा रहा है कि दिल्ली में पार्टी का चेहरा बनाने के लिए स्मृति ईरानी और बांसुरी स्वराज के नामों पर विचार किया जा रहा है। स्मृति ईरानी पंजाबी हैं और दिल्ली की ही रहने वाली हैं, जबकि बांसुरी स्वराज नई दिल्ली से सांसद हैं, सुषमा स्वराज की बेटी हैं, ऑक्सफोर्ड में पढ़ी हैं और वकील हैं। इनके अलावा मनोज तिवारी (प्रवासी), प्रवीण खंडेलवाल (वैश्य) और प्रवेश साहिब वर्मा (जाट) के नाम भी विचाराधीन हैं। 
रॉबर्ट वाड्रा की चुनौती पर मोदी क्या करेंगे?
कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी है कि वह उन पर लगाए जा रहे आरोपों को साबित करें या फिर इस तरह के आरोप लगाना बंद करें। दरअसल हरियाणा के चुनाव में कई दिनों से इंतज़ार किया जा रहा था कि कांग्रेस शासन के भ्रष्टाचार की बात करने के लिए मोदी या गृह मंत्री अमित शाह रॉबर्ट वाड्रा का नाम कब लेंगे। प्रधानमंत्री ने 25 सितम्बर को और अमित शाह ने 23 सितम्बर को लोगों की यह मंशा पूरी की। दोनों ने हरियाणा की अलग-अलग चुनावी रैलियों में कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में हरियाणा को दलालों और दामाद के हवाले कर दिया था। उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा को निशाना बनाते हुए कहा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार के समय किसानों की ज़मीन छीन कर दामाद को दे दी गई थी। सवाल है कि हरियाणा चुनाव के समय ही मोदी और शाह को रॉबर्ट वाड्रा क्यों याद आते हैं। केंद्र और हरियाणा में 10 साल से भाजपा की सरकार है तो फिर डबल इंजन की सरकार ने किसानों की ज़मीन छीन कर किसी दामाद को देने के मामले की जांच क्यों नहीं कराई और अगर कराई तो उसका नतीजा क्या रहा? जो सरकार किसी भी मामले में बगैर किसी ठोस सबूत के मुख्यमंत्रियों को पकड़ कर जेल में डाल रही हैं, उसने इतने आरोप लगाने के बावजूद रॉबर्ट वाड्रा को क्यों नहीं पकड़ा? अब तो खुद रॉबर्ट वाड्रा ने चुनौती दी है। प्रधानमंत्री को इस चुनौती का जवाब देना चाहिए।
अमरीका क्यों नहीं गए अजीत डोभाल?
सरकार का ढिंढोरची मीडिया जिस शख्स को ‘इंडिया का जेम्स बांड’ बताता है, वह इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमरीका यात्रा पर नहीं जा सका। ‘जेम्स बांड’ यानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के न जा पाने की जो आधिकारिक वजह बताई गई, वह दिलचस्प है। सरकार के एक उच्च पदस्थ सूत्र बताया कि प्रधानमंत्री के ‘जेम्स बांड’, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के कारण अमरीका नहीं गए, लेकिन सच यह है कि कनाडाई-अमरीकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू ने 17 सितम्बर को न्यूयॉर्क के दक्षिणी ज़िले के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक दीवानी मुकद्दमा दायर किया है, जिसमें भारत सरकार के कुछ अधिकारियों द्वारा उसकी हत्या के लिए कथित रूप से रची गई साज़िश के लिए हर्जाने की मांग की गई है। अदालत ने भारत सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, रॉ के पूर्व प्रमुख सामंत गोयल, विक्रम यादव (जिन्हें खुफिया एजेंसी के एजेंट के रूप में पहचाना गया है) और एक कारोबारी निखिल गुप्ता को तलब किया है। खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू ने इसे बड़ा मुद्दा बना रखा है। इस वजह से अमरीकी प्रशासन भी उसकी पीठ ठोकता रहा है। हालांकि भारत सरकार ने मुकद्दमे को ‘पूरी तरह से अनुचित और निराधार’ बताया है, लेकिन अमरीकी अदालतों का कोई भरोसा नहीं, क्योंकि वे भारत की अदालतों जैसी नहीं हैं और पूरी तरह दबाव मुक्त होकर काम करती हैं। 
नितीश का भाजपा के आगे समर्पण 
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार अब पूरी तरह भाजपा के हो गए हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति भाजपा नेताओं की तरह स्वामीभक्ति दिखाते हुए उनकी अमरीका यात्रा की तारीफ की है। उन्होंने मोदी की यात्रा को बहुत उपलब्धियों भरा बताया है। राम मंदिर निर्माण पर पत्र लिख कर मोदी को श्रेय देने और उनकी अमरीका यात्रा की तारीफ करने के बाद सवाल उठ रहा है कि यह सब नितीश कर रहे हैं या उनके सलाहकार उनसे करा रहे हैं? पटना में इस बात की चर्चा है कि नितीश के सलाहकार बने नेताओं और कुछ पूर्व अफसरों ने भाजपा और केंद्र सरकार के सामने सरेंडर किया हुआ है। इसका कारण कुछ तो राजनीतिक है और कुछ एजेंसियों का डर है। एक पूर्व अधिकारी इन दिनों नितीश कुमार के यहां सबसे ज्यादा सक्रिय हैं और सारे कामकाज वे ही देख रहे हैं। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले भाजपा में ही रह चुके हैं और अभी भी भाजपा के शीर्ष नेताओं से उनके तार जुडे हुए हैं। जनता दल (यू) और भाजपा के बीच कड़ी का काम वह ही कर रहे हैं। सो, संभव है कि जनता दल (यू) की राजनीतिक लाइन पर उनकी वजह से भाजपा का असर दिख रहा हो। केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी जिस अंदाज़ में यू टर्न लिया है और भाजपा व नरेंद्र मोदी की तारीफ शुरू की है, उससे लग रहा है कि नितीश का पूरा इकोसिस्टम ही भाजपा के हिसाब से काम कर रहा है।
शिकायत के बदले शिकायत
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमरीका में 8 से 11 सितम्बर के बीच जो कुछ कहा, उसे लेकर भारतीय जनता पार्टी ने राहुल के खिलाफ पहली शिकायत 19 सितम्बर को दर्ज कराई। सोचने वाली बात है कि करीब 10 दिन तक भाजपा के नेता किस बात का इंतज़ार कर रहे थे? अगर राहुल ने आरक्षण और सिखों को लेकर जो कहा, वह देश की एकता, अखंडता और सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने वाला था तो भाजपा नेताओं तुरंत मुकद्दमा दर्ज क्यों नहीं कराया? भाजपा नेताओं ने राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन किया था और धमकी भी दे थी, लेकिन कहीं पर भी मुकद्दमा दर्ज नहीं कराया था। इस बीच कांग्रेस नेताओं ने राहुल के लिए कहे जा रहे अपशब्दों और धमकियों को लेकर भाजपा नेता तरविंदर सिंह मारवाह और रवनीत सिंह बिट्टू व भाजपा की सहयोगी शिव सेना के एक नेता के बयानों के खिलाफ दिल्ली के तुगलक रोड थाने में मुकद्दमा दर्ज कराया। यह मुकद्दमा दर्ज होने के बाद भाजपा नेताओं की नींद खुली तो उन्होंने जवाबी कार्रवाई के तौर पर 19 सितम्बर को मुकद्दमे दर्ज कराने का सिलसिला शुरू किया। दिल्ली के साथ उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में भी राहुल के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज हुआ। हैरानी की बात है कि भाजपा नेताओं की भावना आहत हुई थी 9 या 10 सितम्बर को, लेकिन उसके खिलाफ मुकद्दमा दर्ज हुआ 19 और 20 सितम्बर को। ज़ाहिर है कि यह भावना आहत होने का मामला नहीं है, बल्कि शिकायत के बदले शिकायत करने यानी बदले की कार्रवाई है।