मुक्ति का मार्ग 

बात उस समय की है जब एशिया के ही सुदूर देश में लोगों ने धन के लालच में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर दी थी। वहां इनके दर्शन के लिए चढ़ावे की प्रवृतियां तेजी से फैल रही थी, उसी समय हजरत मोहम्मद साहब ने इन बंधनों से मुक्ति का मार्ग दिखलाया और एकेश्वरवाद का पाठ पढ़ाया। मोहम्मद साहब सदैव एक खजूर के पेड़ के नीचे बैठकर साधना करते थे। कुछ समय बाद जब वे वहां से दूसरे स्थान की ओर जाने लगे तो उस पेड़ को कटवा दिया। यह देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। लोगों ने इसका कारण जानना चाहा तो हजरत साहब ने बड़े प्रेम से समझाया- ‘भाई, इसलिए इस पेड़ को कटवा दिया, ताकि लोग मेरे उपदेशों की उपेक्षा कहीं इस पेड़ को ईश्वर मानकर न पूजने लगे।’

परोपकार 

एक बार किसी जिज्ञासु ने ईरान के दार्शनिक कवि शेख सादी से प्रश्न किया- ‘भगवन्! परोपकार बड़ा है या ताकतवर?’
शेख सादी ने कहा-‘पहले तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो, तभी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा। यह बताओं कि हातिम के जमाने में सबसे बड़ा पहलवान कौन था?’
जिज्ञासु ने बहुत सोचा, पर उसे उत्तर न सूझ पड़ा। अंत में उसने कहा-‘हातिम के उपकार के किस्से तो सारा संसार जानता है, लेकिन उसने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसके कारण उसे आज तक याद रखा जाता।’
तब शेख सादी ने कहा-‘तुमने सही कहा। इस कथन में ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मौजूद नहीं है।’ जिज्ञासु संतुष्ट होकर चला गया। उसने परोपकार की महत्ता को समझ लिया।
 

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