अमरीकी सांसद जिन्होंने भगवद् गीता हाथ में लेकर शपथ ली
3 जनवरी 2013 को अमरीकी संसद यानी कांग्रेस में एक ऐसी घटना घटी, जो तब तक के इतिहास में पहले कभी नहीं घटी थी। अमरीका में हवाई से प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव) में चुनी गईं तुलसी गबार्ड, शपथ लेने के लिए खड़ी हुईं। उन्होंने अपने हाथ में भगवद् गीता लिया और कहा, ‘मैं तुलसी गबार्ड सत्यनिष्ठा से शपथ लेती हूं कि मैं सभी विदेशी और घरेलू शत्रुओं के विरूद्ध संयुक्त राज्य अमरीका के संविधान का समर्थन और बचाव करूंगी; कि मैं इसके प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखूंगी; कि मैं इस दायित्व को बिना किसी मानसिक पूर्वाग्रह या टाल-मटोल के स्वतंत्र रूप से स्वीकार करती हूं; और कि मैं जिस पद पर आसीन होने वाली हूं, उसके कर्तव्यों का निर्वाहन भली भांति और ईमानदारी से करूंगी: अत: ईश्वर मेरी सहायता करें।’
अमरीका के इतिहास में पहले कभी किसी सांसद ने हिंदू धार्मिक ग्रंथ को अपने शपथ ग्रहण के लिए नहीं चुना था। अत: तुलसी गबार्ड के ऐसा करने पर सब लोगों ने आश्चर्य और उत्सुकता से उनकी तरफ देखा। कुछ सांसदों ने इसे एक प्रगतिशील कदम माना और तुलसी की हिंदू धर्म में आस्था का सम्मान किया। शायद किसी और देश की संसद में ऐसा हुआ होता, तो इस घटना पर हंगामा खड़ा हो जाता, लेकिन अमरीकी कांग्रेस में ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि अमरीका की बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक परंपरा के लिए इसे एक प्रतीकात्मक जीत समझा गया। तुलसी गबार्ड के इस कदम से अमरीका में रह रहे भारतीय मूल के लोग गर्व और सम्मान से भर गये, उन्होंने तुलसी के इस कदम को भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बढ़ाने वाला बताया।
हालांकि बाद में कुछ लोगों ने इसकी यह कहते हुए आलोचना की कि यह कदम अमरीकी मूल्यों से अलग है, क्योंकि परंपरागत रूप से अमरीका में शपथ बाइबल पर ली जाती है। लेकिन तुलसी ने इन आलोचनाओं पर स्पष्ट किया कि उनके लिए भगवद् गीता का महत्व व्यक्तिगत व आध्यात्मिक है और यह उनके लिए प्रेरणा का स्रोत है। अत: यह कदम उनकी धार्मिक स्वंत्रता के अधिकार का पालन था। अमरीकी मीडिया और सामाजिक चर्चाओं में भी इसे व्यापक रूप से धार्मिक विविधता और स्वतंत्रता का मुद्दा मानकर ही चर्चा हुई और तुलसी के इस कदम को धर्मनिरपेक्षता व व्यक्तिगत अधिकारों का पालन बताया गया। लब्बोलुआब यह कि इस कदम का अमरीका में कोई विरोध नहीं हुआ, न यह विवादस्पद बना। क्योंकि अमरीकी संविधान व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता को महत्व देता है। तुलसी गबार्ड ने भी शपथ ग्रहण के बाद कई जगहों पर कहा था, ‘भगवद् गीता ने मेरे जीवन में हमेशा एक मार्गदर्शक की भूमिका निभायी है। यह ग्रंथ मुझे सिखाता है कि कैसे एक नेता और सेवक बनकर नि:स्वार्थ काम करना चाहिए।’
बहरहाल तुलसी गबार्ड द्वारा 2013 में भगवद् गीता के साथ ली गई यह शपथ और हिंदू धर्म से बार-बार प्रदर्शित किया गया उनका लगाव इन दिनों इसलिए चर्चा में है, क्योंकि 12 अप्रैल, 1981 को अमरीकी द्वीप समूह समोआ में पैदा हुईं और हवाई में पली बढ़ीं तुलसी को नवनिर्वाचित डोनल्ड ट्रंप कैबिनेट में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद दिया गया है। वह राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी की निदेशक के रूप में नियुक्त हुई हैं। साल 2013 में अमरीकी प्रतिनिधि सभा में प्रवेश करने वाली तुलसी 2021 तक हवाई की दूसरी कांग्रेसनल डिस्ट्रिक का प्रतिनिधित्व किया है। वह धार्मिक दृष्टि से वैष्णव हिंदू हैं, उनकी आस्था और भगवद् गीता के प्रति लगाव उन्हें विशेष रूप से एक हिंदू पहचान देता है। लेकिन तुलसी गबार्ड न तो जन्म से हिंदू हैं और न ही भारतीय मूल की हैं। यही नहीं 2022 तक वह डेमोक्रेटिक पार्टी में हुआ करती थीं, उन्होंने 2019 में डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की प्राथमिक बहस में कमला हैरिस को शिकस्त भी दी थी। लेकिन साल 2022 में वह डेमोक्रेटिव पार्टी छोड़कर रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गईं।
तुलसी अमरीकी सेना की नेशनल गार्ड में मेजर भी रह चुकी हैं और ईराक युद्ध में अपनी सेवाएं भी दे चुकी हैं। उनकी सैन्य पृष्ठभूमि उनकी राजनीतिक छवि को बेहद मजबूत बनाती है। तुलसी का रूख वैसे अकसर पार्टी लाइन से अलग रहा है, जिस कारण उन्हें स्वतंत्र विचारधारा वाली राजनेता के रूप में भी जाना जाता है। वह 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार भी रहीं। ट्रंप द्वारा अपनी कैबिनेट के लिए चुने जाने पर एक बार फिर से पश्चिमी मीडिया में तुलसी सुर्खियों में हैं; क्योंकि तुलसी विवेक रामास्वामी के बाद दूसरी ऐसी हिंदू नेता हैं, जिन्हें ट्रंप के कैबिनेट में जगह मिली है। नेशनल इंटेलीजेंस डायरेक्टर के रूप में तुलसी एवरिल हेंस की जगह लेंगी। 21 साल की उम्र में अपना राजनीतिक सफर शुरु करने वाली तुलसी 4 बार डेमोक्रेटिक पार्टी से सांसद रह चुकी हैं। वह पहली ऐसी गैर अमरीकी हैं, जिन्हें नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी का निदेशक नियुक्त किया गया है।
हिंदू धर्म की परंपराओं और रीति रिवाजों में गहरी आस्था रखने वाली गबार्ड जन्म और विरासत से हिंदू नहीं हैं। हिंदू हितों की खुलकर और बढ़ चढ़कर बातें करने वाली तुलसी गबार्ड जन्म से समोअन अमरीकी हैं। उनके पिता माइक गबार्ड और उनकी मां कैरोल पोर्टर ने 1970 में हिंदू धर्म अपनाया था। हिंदू धर्म में उनकी आस्था गौड़ीय वैष्णव परंपरा में है, जिससे इस्कॉन भी जुड़ा हुआ है। तुलसी के पिता माइक गबार्ड भी हवाई में एक प्रभावशाली राजनेता हैं, वह हवाई की सीनेट में डेमोक्रेटिव पार्टी के सदस्य हैं। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर रिपब्लिकन पार्टी से शुरु किया था। बाद में वह डेमोक्रेट बनें। माइक गबार्ड का जन्म 16 जनवरी 1948 को अमरीका के समोआ क्षेत्र में हुआ था। उनका परिवार यूरोपीय समोअन और अन्य पृष्ठभूमियों का मिश्रण है। जबकि तुलसी की मां कैरोली पोर्टर गबार्ड मूलरूप से कैथोलिक ईसाई हैं। उनका शुरु से ही हिंदू धर्म पर झुकाव था अत: उन्होंने अपने बच्चों के नाम हिंदू रखें।
हालांकि किशोरावस्था तक तुलसी गबार्ड पूरी तरह से हिंदू नहीं थीं, लेकिन मां-बाप की इच्छा और अपनी आस्था के चलते अंतत: किशोरावस्था में आकर तुलसी गबार्ड ने हिंदू धर्म को पूरी तरह से अंगीकार कर लिया। आज वह अमरीका की संसद या राजनीति में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हिंदू धर्म की सबसे बड़ी और मुखर पैरोकारों में से एक हैं। गबार्ड ने हमेशा से भारत के साथ संबंधों पर खास तरजीह दी है। जब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाये जाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पेश किया गया था, तो यह गबार्ड ही थीं, जिन्होंने सबसे पहला समर्थन इस प्रस्ताव को दिया था, बाद में उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान उनसे मुलाकात भी की थी और उन्हें गीता भी भेंट की। अमरीका में जब जब हिंदू धर्मस्थलों पर हमला हुआ है, तो इसका सबसे मुखर विरोध उन्होंने ही किया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर