इस्कान प्रेमियों का प्रमुख तीर्थ है मायापुर धाम

पश्चिम बंगाल में सियालदह के निकट स्थित मायापुर धाम इस्कॉन प्रेमियों हेतु बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है। मायापुर धाम इसलिए विशेष है क्योंकि कलियुग में प्रथम अंश के दौरान भगवान चैतन्य, महाप्रभु का आविर्भाव हुआ था। बहुत समय से मन में इच्छा थी कि वहां जाकर भव्य मंदिर के दर्शन किए जाएं। इस्कान दिल्ली द्वारा जब वहां की यात्र आयोजित की गई तो मैं वहां जाने का लोभ संवरण नहीं कर पाई। काफी प्रतीक्षा के बाद वह दिन आ गया, जब हमारी यात्रा शुरू होनी थी। हम एक घंटा पहले ही स्टेशन पर पहुंच गए थे। सहयात्रियों में कुछ नए चेहरे थे, कुछ पहले से ही परिचित थे। प्लेटफार्म पर ही मस्ती शुरू हो गई। ठंड बहुत थी। उस थोड़ी देर में ही कई तरह के पकवान खाने को मिले। एक-एक टुकड़ा लेने में ही आनंद आ गया।
गाड़ी के आते ही सबने अपना-अपना सामान जमा लिया। अब गाड़ी रवाना हुई। इसके साथ ही विदुर प्रिय प्रभु जी के द्वारा कीर्तन शुरू हो गया। काफी देर तक कीर्तन व जाप चलता रहा और कुछ लोग नींद के आगोश में आ गए। धीरे-धीरे सभी निद्रा की गोद में चले गए। गाड़ी छुक- छुक करते अपनी रफ्तार से चलती हुई आगे बढ़ती जा रही थी। सुबह पांच बजे अधिकतर लोग जाग गए और फिर कीर्तन जाप से समा बंध गया। सर्वप्रथम मंगला आरती हुई और उसके पश्चात कीर्तन का सिलसिला लगातार बना रहा।
चाय नाश्ते का सामान साथ में था। दिनभर गाड़ी में नाचते व कीर्तन करते बीत गया। दोपहर का भोजन भी हमारे साथ था। रात का भोजन बाहर से मंगवा लिया गया। रात 12:30 बजे गाड़ी सियालदह स्टेशन पर लगी। हमारी बस ठीक 2.15 रात को ही सियालदह स्टेशन से चल पड़ी। सुबह सात बजे हम मायापुर पहुंच गए। ठंड का आनंद लेते हुए हम होटल पहुंच गए। होटल बहुत सुंदर था, सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थीं। होटल चारों ओर से प्राकृतिक वातावरण से सुसज्जित था। 
ठीक नौ बजे हम नीचे सब इकट्ठे हो गए और मंदिर के दर्शन करने पहुंच गए। मंदिर के दर्शन का दृश्य शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। हमारी आंखें खुली ही रह गई। चैतन्य महाप्रभु के अर्चा विग्रह के साथ श्री अद्वैत स्वामी, श्री नित्यानंद, श्री गदाधर और श्री वास प्रभु जी के दर्शन हुए। इसके साथ ही दूसरे हाल में श्री राधा-कृष्ण विग्रह और राधा जी की सखियों की प्रतिमाएं हैं जो अद्भुत श्रृंगार के साथ सुसज्जित हैं। मन इतना प्रसन्न हो गया कि यहीं बैठे रहे और दर्शन हुए। इसी हाल में ही श्री नरसिंह भगवान का विग्रह है जो पौराणिक कथा का स्मरण कराता है। वहीं पर हमने थोड़ा नाश्ता लिया और काफी समय बिता कर मंदिर से बाहर आए।
पूरा मायापुर ही भक्ति के रंग में रंगा हुआ है। बेधड़क कहीं भी अकेले आ जा सकते हैं। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी गले में बीड बैग डाले, हाथ में माला घुमाते हुए- हरे कृष्णा, हरे कृष्णा’ के महामंत्र का जाप करते ही नज़र आए।
दूसरे दिन हम सुबह 4:15 बजे ही मंगला आरती के लिए मंदिर पहुंच गए। वह दृश्य क्या अद्भुत और भव्य था। आरती में सभी भाव विभोर थे। आरती के कुछ समय बाद श्रृंगार दर्शन आरती में भी हम सम्मिलित हुए। यही कार्यक्रम दस दिन तक रोज चलता रहा। हमने आरती का भरपूर लुत्फ उठाया और इसके साथ श्री प्रभुपाद जी को ‘फ्लावर आफरिंग’ में भी भाग लिया, फिर पंचामृत ग्रहण किया। बाहर मंदिर के आंगन में आकर खिचड़ी प्रसाद लेने की लंबी कतार में लग गए। खिचड़ी इतनी गर्म कि जैसे ठंड से मुकाबला कर रही हो। खिचड़ी का आनंद तो गूंगे के गुड़ जैसा है। इसी तरह मंदिर में हर रोज भक्तों को नाचते,गाते, अश्रु बहाते और भाव विभोर होते देखते। भक्तों का साष्टांग प्रणाम तो देखते ही बनता था। स्त्रियां, पुरूष, बच्चे नौजवान सभी पता नहीं कितनी बार साष्टांग प्रणाम करते। मैं उनकी ओर देखती रह जाती। काश मुझमें भी इतना भक्तिभाव पनपा होता।
इन दस दिनों में हमने उन मंदिराेें के दर्शन भी किए जो चैतन्य महाप्रभु से संबंधित थे। साथ-साथ जगन्नाथ जी के मंदिर के भी दर्शन किए। इसी यात्रा के दौरान हमें कई नए और विस्मयपूर्ण अनुभव हुए। हमने योगपीठ मंदिर, श्रीवास आंगन, श्री अद्वैत भवन, श्री गदाधर आंगन, श्री चैतन्य महाप्रभु समाधि स्थल, श्री चैतन्य मठ आदि प्रमुख स्थानों के दर्शन किए। योगपीठ मंदिर में ही भगवान का नाम निमाई रखा था क्योंकि उनका जन्म एक नीम के वृक्ष के नीचे हुआ था। इन्हीं के साथ ही नरसिंह और गदाधर जी के अर्चा विग्रहों के मंदिर हैं। श्री वास आंगन में नित्यानंद प्रभु आनंद विभोर होकर नृत्य करते थे। श्रीवास ठाकुर और गदाधर पण्डित राधा कृष्ण के अर्चा विग्रह पर चवंर झुला रहे हैं। 
श्री अद्वैत भवन में आचार्य ने शिष्यों को भगवद गीता और श्रीमद्भागवत पढ़ाई। चैतन्य मठ में चैतन्य महाप्रभु कीर्तन किया करते थे। उन्होंने भक्तों के साथ नाटक भी किए। जगाई- मधाई घाट भी देखने योग्य है। गौरांग प्रभु ने इनका उद्धार किया था। नगरिया घाट में चैतन्य भगवान चांद काजी को हराने के लिए अपनी संकीर्तन टोली के साथ आए थे। बाण-कोणाघाट में गंगानगर है जहां भगीरथ की घेर तपस्या को देखकर गंगा ने साक्षात दर्शन दिए। नवद्वीप धाम में माघ के मास में गंगा आकर फागुन के महीने के अंत तक रहती है। इसी तरह अन्य कई सुंदर मंदिरों के भी दर्शन किए जिनकी अद्भुत छटा देखने योग्य है।
पूरे दस दिन हमें शुद्ध खाना मिलता रहा तथा अनेक अन्य व्यंजनों का भी आनंद उठाया। वहां मंदिर के परिसर में कहीं प्याज, लहसुन का प्रयोग नहीं होता। गदा भवन में हमने कूपन लेकर प्रसाद ग्रहण किया। हजारों की संख्या में लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। इतना व्यवस्थित और सुंदर आयोजन हमने कहीं नहीं देखा, इतनी शांति से प्रसाद बंटता था कि लोग आनंद का पूरा अनुभव करते। नित्यप्रति एक बैंगन का पकौड़ा और अंत में कुछ मीठा जैसे खीर या रसगुल्ला भी अवश्य परोसा जाता।
यात्रा के दौरान कई नए और मनोरंजक अनुभव हुए बाइक के साथ जुड़े लकड़ी के पटरे पर बैठकर सवारी हमने पहली बार की जो एक आश्चर्य था। इसी तरह खुले ट्रक में भी हमने सवारी की। यह भी नया अनुभव था। यात्रा में हर कोई फोटो खींचने में तन्मय हो जाता था जो यात्रा की शोभा को और भी बढ़ा रहे थे। यात्रा के अंतिम दिन हमने थोड़ी बहुत खरीदारी भी की। कुछ बच्चों ने मृदग, ड्रम आदि खरीदे जिनको देखकर बहुत अच्छा लगा।
मायापुर का सुंदर प्राकृतिक वातावरण और मंदिर का नजारा हम कभी नहीं भूलेंगे। गौशाला तो सदैव हमारी यादों में जुड़ी रहेगी। वापसी यात्रा में हम प्लेटफार्म पर दो घंटे पहले ही पहुंच गए। अब गाड़ी रवाना हो गई। रास्ते में हम खाते-पीते, नाचते, कीर्तन करते हुए खूब मग्न थे समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला और हम नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंच गए लेकिन दिनभर पूरी तरह से हम मायापुर में ही विचरण कर रहे थे ऐसे लग रहा था कि हमारा दिल-दिमाग दोनों ही मायापुर धाम में हैं और हमारा शरीर यहां है। काश! ऐसा सुंदर मौका बार-बार मिले और हमारा जीवन धन्य हो जाए। जब मौका मिले, अवश्य लाभ उठाएं। (उर्वशी)

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