महाकुम्भ सम्पन्न : सांस्कृतिक शक्ति के रूप में उभरा भारत
सम्पन्न हुए बहु-प्रतीक्षित, बहुचर्चित महाकुम्भ 2025 में भारत की सांस्कृतिक शक्ति का एक नया आयाम देखने को मिला है। अपनी भव्यता और समग्रता में कुम्भ अब केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सभ्यता संबंधी पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित करने का माध्यम बन चुका है। इस बार का महाकुम्भ कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, चाहे वह डिजिटल इनोवेशन हो, अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता रही होए या फिर भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संदेश।
इस बार कई देशों के आध्यात्मिक नेता, शोधकर्ता और सांस्कृतिक संगठनों ने भाग लिया। महाकुम्भ 2025 में 73 देशों के श्रद्धालुओं ने भाग लिया जिनमें नेपाल, अमरीका, फ्रांस, इज़राइल, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मॉरीशस, फिजी, भूटान, चीन, रूस, यूक्रेन, ताइवान और अन्य शामिल हैं। इस आयोजन में कई वैश्विक विशिष्ट व्यक्तियों ने भी हिस्सा लिया। भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक ने त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान किया। देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी त्रिवेणी संगम में पवित्र डुबकी लगाई और प्रार्थना की। नॉर्वे के पूर्व पर्यावरण मंत्री एरिक सोलहाइम ने महाकुम्भ में शामिल होकर इसे ‘जीवन में एक बार का अनुभव’ बताया। इसके अलावाए 1 फरवरी 2025 को 77 देशों के 118 राजनयिकों का एक प्रतिनिधिमंडल भी महाकुम्भ में शामिल हुआ, जिसमें मिशन प्रमुख, उनके साथी और अन्य राजनयिक शामिल थे। नि:संदेह महाकुम्भ 2025 ने वैश्विक स्तर पर एकता और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक बनते हुए, विभिन्न देशों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महाकुम्भ 2025 में भारत के योग, वेदांत और सनातन परम्पराओं में गहरी वैश्विक रुचि दिखी। पहली बार कुम्भ में इस स्तर का डिजिटल और टेक्नोलॉजिकल एंगेज़मेंट दिखा। तीर्थयात्रियों को डिजिटल दर्शन, एआई आधारित मार्गदर्शन और ऑनलाइन प्रवचनों ने आयोजन को चुस्त दुरुस्त बनाने के साथ भव्य बना दिया। इस सबके कारण यह एक हाई-टेक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बन गया। इस बार का महाकुम्भ कई लोगों की सख्त बयानी और कुछ एक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बावजूद आध्यात्मिक पर्यटन की नई लहर बनकर उभरा। कुम्भ के दौरान संपन्न होने वाली गंगा आरती और अन्य अनुष्ठानों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली, इनमें दुनियाभर से आये श्रद्धालु शामिल हुए। योग, ध्यान और भारतीय संगीत की कार्यशालाओं में अपार भीड़ उमड़ी। कुम्भ की पूरी दुनिया की मीडिया ने भव्य और विस्मित कर देने वाले आयोजन के रूप में रिपोर्टिंग की। कुम्भ ने भारत के सांस्कृतिक दूतावास की भरपूर भूमिका निभाई।
महाकुंभ 2025 में सनातन परम्परा को सिर्फ परम्परागत नहीं, बल्कि समकालीन समस्याओं का समाधान देने वाली जीवनशैली के रूप में प्रस्तुत किया गया। भारतीय ग्रंथों पर आधारित मैनेजमेंट, साइकोलॉजी और मेडिकल रिसर्च को भी मंच मिला। जिस वजह से भारत सांस्कृतिक रूप से एक महाशक्ति के रूप में उभरा जो कि केवल पहचान से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव कई स्तरों पर पड़ते हैं। अगर भारत इस सांस्कृतिक उभार को सही दिशा देता है—शिक्षा व्यवस्था में भारतीय ज्ञान परम्परा को मज़बूत बनाता है, साथ ही सांस्कृतिक ब्रांडिंग को और प्रभावी बनाता है, जिससे डिजिटल माध्यमों को यह अधिकतम सुलभ रहे तो भारत का यह सांस्कृतिक बदलाव स्थायी हो सकता है। सिर्फ स्थायी ही नहीं, यह एक बदलाव एक स्थायी सांस्कृतिक पुनर्जागरण का रूप भी ले सकता है। इस तरह कुल मिलाकर देखें तो महाकुंभ 2025 ने साबित कर दिया कि भारत अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए भी आधुनिक विश्व में सांस्कृतिक महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो अगले कुछ दशकों में भारत एक नई विश्व संस्कृति का केंद्र बन सकता है।
किसी देश के लिए सांस्कृतिक महाशक्ति होना केवल पहचान का प्रश्न नहीं है बल्कि यह एक वैश्विक प्रभाव और रणनीतिक शक्ति का संकेत होता है, क्योंकि सांस्कृतिक सुपर संरचना राजनीतिक और आर्थिक ताकत से अलग एक सॉफ्ट पावर होती है, जो दुनिया को आकर्षित करने, प्रभावित करने और एक गहरी छवि स्थापित करने में मदद करती है, क्योंकि सांस्कृतिक महाशक्ति वही देश होता है, जिसकी कला, साहित्य, परम्पराएं, आध्यात्मिकता, संगीत, सिनेमा और खानपान दुनिया में लोकप्रिय हों। उनके प्रति लोगों में सम्मान हो। कुम्भ के दौरान देश के ऐतिहासिक स्थलों, सांस्कृतिक कर्मकांडों, योग रिट्रीट्स आदि से अर्थव्यवस्था को बड़ा लाभ हुआ है। दुनिया भर के लोग भारतीय दर्शन, साहित्य, वेद, योग और आयुर्वेद सीखने यूं भी भारत आते हैं, लेकिन भव्य कुम्भ ने इसे और आकर्षक बना दिया है। ऐसे आयोजनों से ही किसी संस्कृति का वैचारिक प्रभुत्व स्थापित होता है। महाकुम्भ 2025 ने भारत के आध्यात्मिक विचार, जैसे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार है), वैश्विक शांति और संतुलन को बढ़ावा दिया है।
महाकुम्भ 2025 के भव्य आयोजन ने भारतीयों को बहुत गहरे तक आत्मगौरव और आत्मसम्मान से ओतप्रोत किया है। जब किसी देश की संस्कृति दुनिया में सम्मान पाती है, तो वहां के नागरिकों को स्वाभाविक रूप से गर्व महसूस होता है। यह राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता की भावना को भी बढ़ाता है। महाकुम्भ 2025 जैसे आयोजन, योग और आयुर्वेद की वैश्विक लोकप्रियता, बॉलीवुड और भारतीय कला का प्रभाव, भारतीय भोजन की पूरी दुनिया में बढ़ती पहचान आदि, ये सब ऐसे कारक हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि भारत अपनी सांस्कृतिक ताकत को और मज़बूत कर रहा है।
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