केन्द्र पंजाब के साथ छेड़छाड़ करने से गुरेज़ करे

बेड़ियां सामराज की हैं वही,
वही दिन रात है असीरों के।
साज़िशें हैं वही िखलाफ-ए-अवाम,
मशवरे हैं वही मुशीरों के।

शायर हबीब जालिब का यह शे’अर मौजूदा विश्व के वर्तमान हालात की तज़र्मानी करता है। वास्तव में विश्व भर में इस समय साज़िशों का खेल खेला जा रहा है। कहीं चीन, कहीं अमरीका, कहीं इज़रायल, कहीं ईरान, कहीं भारत, कहीं नाटो, कहीं रूस लगभग विश्व का प्रत्येक ताकतवर देश साज़िशों के जाल बुन भी रहा है और अपने खिलाफ बुना जा रहा साज़िशों का जाल काटने की कोशिशों में भी व्यस्त है, परन्तु इस समय विश्व के सामने सबसे बड़ी बुझारत अमरीका की रणनीति बनी हुई है। एक ओर अमरीका की पहली जो बाइडन सरकार ने रूस से कहीं कमज़ोर यूक्रेन को उकसा कर रूस का मुकाबला करने के लिए तैयार कर लिया और अप्रत्यक्ष रूप से पूरे यूरोप एवं नाटो को इस युद्ध की आग में धकेल दिया, परन्तु जैसे ही अमरीका में शासन बदला और सत्ता की बागडोर डोनाल्ड ट्रम्प के हाथ में आई, अमरीका की रणनीति सीधा 180 डिग्री का मोड़ काट गई। अब अमरीका के लिए कोई मित्र नहीं, कोई दुश्मन नहीं, सिर्फ और सिर्फ पैसा और व्यापार ही उसकी प्रमुखता बन गई है। अमरीका अब अपनी मागा (एम.ए.जी.ए.) अर्थात ‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’ नीति के ‘एजेंडा 2025’ पर काम करने लग पड़ा है। अब अमरीका के लिए चीन के साथ मुकाबला करने के लिए भारत को रियायतें देने की ज़रूरत नहीं, अपितु भारत से कमाई करने की ज़रूरत है। हालांकि चुनावों के दौरान ट्रम्प ने इस मागा एजैंडे से दूरी बना ली थी।  उल्लेखनीय है कि आधुनिक विश्व ने 2 विश्व युद्ध देखे हैं और दोनों में ही अमरीका विजयी रहा, क्योंकि अमरीका हमेशा ही इन विश्व युद्धों में पहले दूर रहा और अंत में आक्रामक हुआ। पहला विश्व युद्ध 28 जुलाई 1914 को आरंभ हुआ था, परन्तु अमरीका इसमें 6 अप्रैल, 1917 को शामिल हुआ और उसने हमले की घोषणा 7 दिसम्बर, 1917 को की। फिर दूसरा विश्व युद्ध 1939 में शुरू हुआ, परन्तु अमरीका लगभग 2 वर्ष इसमें प्रत्यक्ष रूप में शामिल नहीं हुआ। हां, वह अपने हथियार अवश्य मित्र देशों को बेचता रहा और अमीर होता रहा। वह 7 दिसम्बर, 1941 को इस विश्व युद्ध में कूदा, जब जापान ने उसके पर्ल-हार्बर पर तबाही मचाई। 
इस तरह प्रतीत होता है कि अब भी अमरीका ऐसी ही सोच पर चल रहा है कि या तो वह सम्भावित तीसरे विश्व युद्ध में शामिल ही न हो या जब उसके विरोधी थक जाएंगे तो वह सिर्फ जीत की गारंटी पर ही इसमें शामिल होगा।
इस समय अमरीका एक तरफ रूस के साथ मित्रता की बातें कर रहा है और दूसरी ओर यूक्रेन को अब तक की गई मदद के भुगतान के लिए उसके अमूल्य खनिज पदार्थों पर कब्ज़ा करने की सफल रणनीति अपना रहा है। रूस के साथ मित्रता उसके 2 मामले हल करती है। पहले तो अमरीका की यहूदी लॉबी के दबाव में इज़रायल के माध्यम से ईरान को निशाना बना कर खत्म करना या बेहद कमज़ोर करना है। इस प्रकार रूस तथा चीन को ईरान की प्रत्यक्ष मदद करने से रोका जा सकेगा और दूसरा इससे अमरीकी डॉलर के लिए सम्भावित खतरा बनने वाले ब्रिक्स समझौते को खत्म या कमज़ोर किया जा सकेगा। इस मामले में भारत तो पहले ही अमरीका के दबाव में आया दिखाई दे रहा है। इसके बाद वह चीन के साथ व्यापारिक युद्ध भी लड़ेगा। इस संबंधी अमरीकी रणनीति पर चीनी जवाब की कई तरह की कन्सोयां सुनी जा रही हैं। भारत के लिए अमरीकी खेल बहुत खतरनाक है। एक तो इनसे भारत का वैश्विक राजनीति में प्रभाव कम हो रहा है। दूसरा भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव दिखाई देगा। तीसरा, भारत अमरीकी दबाव के तहत रूस से दूर होकर अमरीका पर निर्भर हो जाएगा। भारत के लिए यह स्थिति बहुत खतरनाक है। जो भारत के स्वाभिमान पर चोट कर रही है और उसकी रणनीतिक, आर्थिक एवं विदेश नीति के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए भारतीय नेताओं को इस संबंध में गम्भीर विचार-विमर्श करके नई रणनीति बनाने की ओर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
केन्द्र पंजाब से खेल रहा है साज़िशी खेल 
यह साज़िशी खेल सिर्फ विश्व स्तर पर नहीं खेले जा रहे, अपितु प्रत्येक ताकतवर कमज़ोर के साथ खेल खेलने में व्यस्त दिखाई दे रहा है। हमारी केन्द्र सरकार भी देश के अलग-अलग राज्यों से यही खेल खेलती दिखाई देती है, परन्तु हम बात सिर्फ पंजाब की करेंगे। आए दिन केन्द्र सरकार पंजाब तथा सिखों को कोई न कोई चिकोटी काट कर देखती है कि पंजाबी तथा सिख सो रहे हैं या जाग रहे हैं। कभी वह लम्बे संघर्ष के कारण वापिस लिए कृषि कानूनों को फिर लागू करने के लिए नया कृषि मंडीकरण प्रारूप जारी कर देती है। कभी चंडीगढ़ में आयुक्त नियुक्त करती है। कभी चंडीगढ़ के कर्मचारियों को यू.टी. केडर में शामिल करती है। कभी हरियाणा को नई विधानसभा बनाने के लिए चंडीगढ़ में ज़मीन अलॉट करती है। कभी पंजाब यूनिवर्सिटी पर पंजाब का अधिकार समाप्त करने की कोशिश करती है। देश में कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे विवाद में हैं। कोई सुनवाई नहीं। कभी देश भर में सिखों के कृपाण पहनने की आज़ादी के बावजूद एयर लाइन्स कर्मचारियों, हवाई अड्डों पर काम करते सिखों के लिए कृपाण पहनने पर पाबंदी के आदेश जारी होते हैं। कभी भाखड़ा मैनेजमैंट बोर्ड में से पंजाब को बाहर करने के यत्न दिखाई देते हैं। कभी सिख सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी तथा धनाढ्य सिख दर्शन सिंह रखड़ा को हवाई अड्डे पर रोका जाता है, परन्तु बाद में शायद इस दबाव में ही वही रखड़ा साहिब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा के बहुत करीबी हो जाते हैं। जहां अंतर्राष्ट्रीय साज़िशों के प्रति हम अपने देश के नेताओं को सुचेत रहने के लिए कह रहे हैं, वहीं पंजाबियों व सिखों को सुचेत रहने की भी विनती करते हुए भारत सरकार को भी कहने पर मजबूर हैं कि वह अपने ही देश के एक सीमांत राज्य तथा एक देशभक्त अल्पसंख्यक समुदाय के जज़्बातों के साथ कोई साज़िशी खेल न खेले, इसके परिणाम अच्छे नहीं निकलेंगे।
किसी भी जुल्म से मिटते नहीं हैं मज़हब-ओ-मिल्लत,
लहू का रंग जोश-ए-नस्ल को रंगीन करता है।
किसी भी कौम का मुनहसर जीना ज़ुबां पर भी,
सुखन मिटना जवां कौमों को भी मिसकीन करता है।
—लाल फिरोज़पुरी
मातृ भाषा पंजाबी के खिलाफ साज़िश
शायर बदर मोहंमदी का एक शे’अर है:
सिखाए वो उसे जन्नत है जिस के कदमों में,
ज़बान-ए-मादरी हर एक ज़ुबां से बेहतर है।

अर्थात मातृ भाषा वह मां सिखाती है, जिसके कदमों में स्वर्ग होता है और मातृ भाषा हर दूसरी ज़ुबान से बेहतर होती है, परन्तु अफसोस कि आज़ाद भारत में पंजाब तथा पंजाबी के खिलाफ साज़िशों का दौर शुरू से जारी है। देश भर में भाषाओं के आधार पर राज्य बनाने का सिद्धांत मान लिए जाने के बावजूद पंजाबी आधारित राज्य बनाने से इन्कार कर दिया गया। जब हज़ारों कुर्बानियों के बाद पंजाबी सूबा बनाया भी गया तो चंडीगढ़ सहित बहुत-से पंजाबी भाषी क्षेत्र बाहर रख लिए गए। एक साज़िश के तहत भाषा को धर्म के आधार पर बांट कर पंजाब के हिंदुओं को अपनी मातृ भाषा हिन्दी लिखवाने के लिए प्रेरित किया गया। फिर पंजाब पुनर्गठन एक्ट में अलोकार धाराएं 78-79-80 जोड़ी गईं और पंजाब की श्वास नली केन्द्र के अंगूठे के नीचे दब गई। ताज़ा उदाहरण हमारे सामने है सी.बी.एस.ई. ने पंजाबी तथा अन्य कई जीवित भारतीय भाषाओं को अपनी 10वीं के परीक्षा वर्ष में दो बार लेने की योजना में शामिल करने से इन्कार कर दिया, परन्तु जब जागरूक पंजाबियों ने इसका विरोध किया तो इसे सांकेतक कह कर वापिस ले लिया गया। हम इस अवसर पर पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस के स्टैंड की प्रशंसा करते हैं कि वह खुल कर सामने आए। अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल, डा. दलजीत सिंह चीमा, कांग्रेस अध्यक्ष अमरिन्द्र सिंह राजा वड़िंग तथा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा तथा अन्य अनेक पंजाबी नेताओं एवं संस्थाओं ने इसका तीव्र विरोध किया। जिसके लिए वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं।
हरजोत सिंह बैंस के ध्यानार्थ    
जहां हम इस मामले पर पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस के समय पर सी.बी.एस.ई. के फैसले का विरोध करने के लिए धन्यवादी हैं वहीं उनकी इस घोषणा की ताफीफ भी करते हैं कि उन्होंने पंजाब की अपनी शिक्षा नीति बनाने का फैसला लिया है और तुरंत नोटिफिकेशन जारी करवा कर घोषणा करवा दी है कि पंजाब के सभी स्कूलों, चाहे वे किसी भी बोर्ड के अधीन क्यों न हों, में पंजाबी अनिवार्य एवं मुख्य विषय के रूप में पढ़ाई जाएगी। एक बड़े निजी स्कूल को 50 हज़ार रुपये जुर्माना भी किया गया है, परन्तु हरजोत सिंह बैंस को यह कहना ज़रूरी समझते हैं कि वह भी पहली सरकारों की भांति पंजाबी के पक्ष में घोषणा करके ही चुप न हो जाएं, अपितु एक-दो माह के निश्चित समय में पंजाब की नई शिक्षा नीति बनवा कर इसे विधानसभा में पारित करवाने का यत्न करें। नई नीति में इस कानून एवं नीति को लागू करने के लिए 50 हज़ार जर्माना ही न हो, अपितु उल्लघंन करने वाले स्कूल के प्रिंसीपल एवं मालिकों या प्रबंधक कमेटियों के अधिकारियों के लिए कैद की सज़ा का प्रावधान एवं जुर्माना भी आज के हिसाब से लाखों रुपये में हो। यदि कोई स्कूल जानबूझ कर बार-बार यह अपराध करता है तो स्कूल की मान्यता रद्द करने का प्रावधान भी इसमें किया जाए।

-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
-मो. 92168-60000

#केन्द्र पंजाब के साथ छेड़छाड़ करने से गुरेज़ करे