पंजाबी की पहरेदारी

25 फरवरी को केन्द्रीय सैकेंडरी शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई.) ने दसवीं कक्षा की परीक्षा वर्ष में दो बार करवाने के लिए एक नीति मसौदा जारी किया था। इस नीति मसौदे के अनुसार जिन क्षेत्रीय और विदेशी भाषाओं की परीक्षाएं ली जानी निर्धारित की गई थीं, उनमें पंजाबी भाषा शामिल नहीं थी। इस मसौदा-नीति संबंधी संबंधित पक्षों से सी.बी.एस.ई. ने 9 मार्च तक सुझाव भी मांगे थे। क्षेत्रीय और विदेशी भाषाओं, जिनकी बोर्ड द्वारा वर्ष में दो बार परीक्षा ली जानी निर्धारित की गई थी, उनमें पंजाबी भाषा शामिल नहीं थी। इस कारण पंजाब भर में इसका तीव्र विरोध हुआ।
पंजाब के अकादमिक भाईचारे के अतिरिक्त आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं की ओर से भी सी.बी.एस.ई. की इस नीति के विरुद्ध कड़ा रोष व्यक्त करते हुए इसे पंजाब के साथ एक और धक्का करार दिया गया। इस संबंधी प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले सभी पक्षों द्वारा ज़ोरदार शब्दों में मांग की गई कि सी.बी.एस.ई. ने 2025-26 के अकादमिक वर्ष में 10वीं कक्षा की वर्ष में दो बार परीक्षा लेने की जो नीति बनाई है, उसमें पंजाबी को एक अनिवार्य  विषय के रूप में शामिल किया जाए। यह अच्छी बात है कि सी.बी.एस.ई. ने तुरंत स्पष्टीकरण देते हुए यह कहा कि 10वीं कक्षा की वर्ष में दो बार परीक्षा लेने संबंधी बनाई गई नीति में अन्य भाषाओं के साथ पंजाबी भाषा भी शामिल होगी। सी.बी.एस.ई. के अधिकारियों ने यह भी कहा कि पहले जिन क्षेत्रीय और विदेशी भाषाओं की परीक्षा लेने संबंधी प्रस्तावित नीति-मसौदे में जो जानकारी दी गई थी, वह सांकेतिक थी, जबकि पंजाबी भाषा की परीक्षा लेने की योजना उसके नीति मसौदे में पहले ही शामिल थी। इस संबंध में पंजाब के अकादमिक और राजनीतिक गलियारों का कहना है कि सी.बी.एस.ई. द्वारा नीति मसौदे में से पंजाबी भाषा को जानबूझ कर बाहर रखा गया था परन्तु पंजाब में तीव्र प्रतिक्रिया स्वरूप सी.बी.एस.ई. अपने  लिए गए पहले फैसले से पीछे हट गई। सी.बी.एस.ई. के रवैये संबंधी पंजाब के लोगों में इस कारण अविश्वास पाया जा रहा है क्योंकि पिछले समय में केन्द्र सरकार की ओर से पंजाबी भाषा के साथ कई तरह के अन्याय किए जा चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में पंजाबी राज्य की पांच भाषाओं में शामिल थी परन्तु राज्य के दो केन्द्र शासित क्षेत्र बना कर उसका पुनर्गठन करते समय पंजाबी भाषा को जम्मू-कश्मीर की भाषाओं में से शून्य कर दिया गया। इसी तरह हिमाचल में भी पंजाबी को दूसरी भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी, उसके तहत उसकी पढ़़ाई लगभग ठप्प कर दी गई, प्रशासनिक कामकाज में भी अब पंजाबी का कोई स्थान नहीं रहा। हरियाणा में भी पंजाबी को दूसरी भाषा का स्थान अब क्रियात्मक रूप से प्राप्त नहीं है। कोई प्रशासनिक कामकाज पंजाबी में नहीं होता। पंजाबी साहित्य अकादमी को भी खत्म कर दिया गया।  पंजाब के लोगों में यह भी एहसास पाया जा रहा है कि देश में एक भाषा, एक धर्म तथा एक तरह की राजनीति को स्थापित करने का जो रुझान चल रहा है, उसके परिणामस्वरूप ही सी.बी.एस.ई. द्वारा अपने नीति मसौदे में से पंजाबी को शून्य किया गया था।
इसी सन्दर्भ में हमारा यह स्पष्ट विचार है कि यदि सी.बी.एस.ई. ने पंजाबी विषय की परीक्षा लेने संबंधी जाने-अनजाने में हुई गलती को सुधार लिया है तो अच्छी बात है। अब इस विवाद को खत्म हुआ समझना चाहिए परन्तु इसके साथ ही हम यह भी कहना चाहते हैं कि सी.बी.एस.ई. को अपने से संबंधित सभी स्कूलों में भिन्न-भिन्न राज्यों की मान्यता प्राप्त राज्य भाषाओं को 10वीं तक ज़रूरी विषय के तौर पर पढ़ाने और उनकी परीक्षा लेने संबंधी स्पष्ट रूप में फैसला लेना चाहिए। क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई को विदेशी भाषाओं के ग्रुप में भी नहीं रखा जाना चाहिए। उसे अपने से संबंधित सभी सरकारी, ़गैर-सरकारी स्कूलों को यह भी निर्देश देने चाहिएं कि किसी भी स्कूल में विद्यार्थियों पर स्कूल के भीतर मातृ-भाषा में बात करने पर प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए। जो भी स्कूल ऐसा प्रतिबन्ध लगाता है, बोर्ड द्वारा उसके विरुद्ध उचित कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही हम पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस की भी प्रशंसा करते हैं, जिन्होंने राज्य के सभी स्कूलों में पहली से दसवीं कक्षा तक पंजाबी को एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने हेतु ‘पंजाबी और अन्य भाषाओं की पढ़ाई संबंधी एक्ट 2008’ के संदर्भ में पुन: निर्देश जारी किए हैं। यह भी सन्तोषजनक बात है कि शिक्षा मंत्री ने पंजाब की अपनी शिक्षा नीति जल्द बनाने का वायदा किया है। इस संबंध में हम शिक्षा मंत्री को यह सुझाव भी देना चाहते हैं कि पंजाब के  स्कूलों में पंजाबी को प्रथम से लेकर 10वीं कक्षा तक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने हेतु उन्हें और उनकी सरकार को पूरी प्रतिबद्धता से काम करना चाहिए, ताकि पंजाबी के साथ भविष्य में किसी भी तरह का भेदभाव न हो।

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