गड़बड़ घोटाला

गड़बड़ शब्द सुनकर कान खड़े हो जाते हैं कि काम ठीक नहीं चल रहा है। व्यवस्था में गड़बड़ी आ गयी है। घोटाला शब्द सुनकर लोग यह सोचते हैं कि कहीं न कहीं दाल में काला है। द्वन्द्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। गड़बड़ घोटाला में कौन पद प्रधान है कौन नहीं। यह कहना तुलसी की पंक्ति ‘को बड़ छोट कहत अपराधू’ की तरह कठिन है। आज जहां जाइये वहां गड़बड़ घोटाला का आलम है। विकास के लिए योजनाएं चल रही हैं। यह छिनालों की जुबान हो गई है। जहां देखिए तहां घोटाला। कोई विभाग दूध का धोया नज़र नहीं आता है। घोटाले से एक सुख भोगने वाले हों तो कहा जाए। यहां तो सभी ‘सुखराम’ हो गये हैं।
सुदामा जी ने श्रीकृष्ण के साथ बचपन में गड़बड़ किया था। अंजाम उन्हें तुरंत मिल गया। अफसोस की बात है आज गड़बड़ घोटाला करने वालों की पांचों अंगुलियां घी में रहती हैं। वे देखते ही देखते अकूत सम्पत्ति का अंबार लगा देते हैं। पुश्त दर पुश्त के लिए उनकी व्यवस्था हो जाती है। घोटाले बाज के आगे सब धन बाइस पसेरी होता है। बिलाय सत्यनारायण भगवान को सलामी देती नहीं छोड़ती है। घोटालेबाजों ने पटना के गांधी मैदान और रेलवे स्टेशन को भी बंधक रख दिया था। बात इतनी सी हो तो छोड़ा जाए। धन्य है मेरा भारत देश महान् जहां मुर्दों के ताबूत का घोटाला होता है। ये इतने दयालु हैं कि गरीबों के चिथड़े को भी नहीं छोड़ते। देश में लूट चल रहा है। जिसको जो मिला उसे ही लूट लेता है। आपने सुना है घोटालेबाजों ने अलकतरा पिया और लोहा चबा गये। उन्हें डकार तक न हुआ। आखिर हो भी तो कैसे? सत्ता पर कुंडली मारे नाग के आगे किसका वश चला है। घोटालों की सलिला प्रवाहित हो रही है। इसे नियंत्रित करें तो कौन? गड़बड़ घोटालों की लम्बी फेहरिस्त बनती जा रही है। 
रोज गड़ा मुर्दों उखड़ रहा है। भ्रष्टों की लम्बी जमात बढ़ती चली जा रही है। सदाचारी ईमानदार बेदम हो रहे हैं। घोड़ा घास चर रहा है गदहा मारा जा रहा है। नेताजी तब तक घोटाला करते रहेंगे जब तक वे कानून की निगाह में दोषी न ठहराये जाते हैं। सोचने की बात है मेहनत और ईमानदारी से काम करने वाला जल्द ही दम तोड़ देता है। कभी उसे जीवन में सुख नहीं मिलता है। दूसरी ओर आधुनिक सामंतों का जीवन देखें। सरकारी पैसा के हेलिकाप्टर से सपरिवार यात्रा होता है। विदेश घूमना है तो देश और प्रांत के विकास का बहाना बनाया जाता है। जिसने गुंडागर्दी और बाहुबल के प्रदर्शन से कुर्सी हथिया ली है वह जनसेवक कैसे हो सकता है? यह गड़बड़ घोटाला कैसे मिटेगा? उन नेताओं से जो अपाहिज हो मुफ्त में संसद, विधानसभा का वेतन भत्ता गटक रहे हैं या संसद में जनता की समस्या को उजागर करने के बदले संसद का सत्र चलने नहीं देते हैं। आखिर जनता इस भार को वहन क्यों करे? देश इसका जवाब चाहता है।
गड़बड़ घोटाला का रोग असाध्य होता जा रहा है। यह मर्ज दवा से नहीं तेज़धार वाले चाकू के द्वारा शल्य चिकित्सा द्वारा ही ठीक होगा। गड़बड़ी करने वाले, घोटाले बाजों को सीखचों के अंदर रहने की व्यवस्था पक्की होनी चाहिए। आज देश का हर प्राणी इससे मुक्ति पाने के लिए छटपटा रहा है। (सुमन सागर)

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