नहीं रीसां बाबा फौजा सिंह दिआं...
फौजा सिंह और दारा सिंह पंजाबियों के दो ऐसे हीरो हुए हैं जिन्होंने किसी भी ऐमेच्योर खेल मुकाबले में पंजाब या भारत की अध्यक्षता नहीं की और न ही किसी भी रस्मी खेल मुकाबले जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय खेलें, एशियाई या ओलम्पिक खेलों में भाग लिया परन्तु दोनों ही पंजाबी खेल जगत में ऐसे प्रसिद्ध हुए कि वह प्रशंसा के पात्र बन गये। हालांकि दोनों को कोई मान्यता प्राप्त खेल पुरस्कार जैसे अर्जुन अवार्ड या महाराजा रणजीत सिंह जैसे अवार्ड नहीं मिले, परन्तु उनकी प्रशंसा और अद्वितीय शक्ति हमेशा दारा सिंह को जैसे ताकत का प्रतीक माना जाता है, वहीं फौजा सिंह को भागने-दौड़ने का महारथी समझा गया। फौजा सिंह भागने में मिल्खा सिंह जितने प्रसिद्ध हुए।
फौजा सिंह ने गत दिनों 114 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कहा, तो हर आंख नम हुई। देश के प्रधानमंत्री से लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और यहां तक कि चलते विधानसभा सत्र में उनको श्रद्धांजलि दी गई। जिस आयु में जीने की इच्छा खत्म हो जाती है, उस आयु में दौड़ना शुरू करने वाले फौजा सिंह को 100 वर्ष से ज्यादा आयु में सबसे लम्बी दौड़ (मैराथन) में न सिर्फ हिस्सा लेने बल्कि जीतने का सम्मान प्राप्त है। खेलों में सबसे बड़ी दौड़ मैराथन होती है जिसकी लम्बाई 42.195 किलोमीटर होती है जो कि ओलम्पिक खेलों के इतिहास से दौड़ी जाती है।
फौजा सिंह की जन्म तिथि के बारे में चाहे कोई पक्का सबूत नहीं है, जिस कारण गिनीज़ बुक आ़फ रिकार्ड द्वारा 100 साल के मैराथन दौड़ाक के तौर पर फौजा सिंह को दर्ज नहीं किया गया क्योंकि वह जन्म तिथि का पक्का सर्टीफिकेट मांगते हैं। वैसे फौजा सिंह के पास्पोर्ट के अनुसार उनकी जन्म तिथि 1 अप्रैल, 1911 बनती है। पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों और पंजाबियों के दिलों में फौजा सिंह का जो नाम दर्ज है, उसकी प्रसिद्धि गिनीज़ बुक आ़फ रिकार्ड से कहीं ज्यादा है। 115वें साल में भी जिस तरह फौजा सिंह हमें छोड़ गये, उससे सब दंग रह गये। फौजा सिंह की मृत्यु की खबर आई तो पहले सभी को लगा कि उनकी कुदरती मौत हुई है परन्तु जब सड़क हादसे की सूचना मिली तो सब हैरान थे। फौजा सिंह पूरी दुनिया में अपनी दौड़ के लिए मशहूर थे और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा भी चलते हुए ही कहा, जब किसी कार ने उनको टक्कर मारी।
फौजा सिंह ने चाहे ओलम्पिक खेलों में खिलाड़ी के तौर पर हिस्सा नहीं लिया परन्तु उनको ओलम्पिक खेलों की मशाल लेकर दौड़ने का सम्मान प्राप्त है। तीन ओलम्पिक (एथन्नज़ 2004, बीजिंग 2008 और लंदन 2012) में मशाल मार्च में दौड़ने वाले फौजा सिंह जब 2012 की ओलम्पिक्स के समय लंदन की सड़कों पर मशाल लेकर दौड़े तो दुनिया भर के समाचार पत्रों की सुर्खी बने। फौजा सिंह 16 अक्तूबर 2011 को टोरांटो की मैराथन दौड़ पूरी करके 100 साल की आयु में मैराथन पूरी करने वाले पहले एथलीट बने थे। फौजा सिंह ने मैराथन दौड़ सवा आठ घंटों में पूरी की थी। उस समय ही गिनीज़ बुक आ़फ रिकार्ड वालों ने फौजा सिंह का वास्तविक जन्म सर्टीफिकेट मांगा था।
फौजा सिंह की पृष्ठभूमि की ओर देखें तो खेल प्रेमी यह सुनकर दंग रह जाते हैं कि 80 साल की आयु तक वह कहीं दौड़े भी नहीं थे। फौजा सिंह का जन्म पंजाब के ब्यास गांव में स. मेहर सिंह व माता भागो के घर हुआ। वह घर के चार सदस्यों में से सबसे छोटे थे। फौजा सिंह जो आज दौड़ने में प्रसिद्ध बने थे, वह छोटी आयु में सबके बाद चलने लगे थे। बचपन में वह पहले 5-6 वर्ष सिर्फ रेंगते ही थे। फिर कहीं जाकर वह चलने लगे। प्रसिद्ध खेल लेखक और फौजा सिंह के प्यारे मित्र प्रिंसीपल स्वर्ण सिंह कहते हैं कि 16-17 साल की आयु में फौजा सिंह कुल एक मील भी नहीं चलते थे।
फौजा सिंह का विवाह ज्ञान कौर के साथ हुआ। फौजा सिंह के घर तीन पुत्र और तीन बेटियों ने जन्म लिया। फौजा सिंह के जीवन में बड़ा बदलाव पिछली शताब्दी के 90 के दशक में तब आया जब 1992 में उनकी पत्नी और 1994 के मध्य पुत्र कुलदीप सिंह की मौत हो गई। इन घटनाओं से फौजा सिंह बुरी तरह टूट गए। फौजा सिंह 1995 में अपने बड़े पुत्र के साथ इंग्लैंड चले गये, जहां पर उनका मिलाप 10 किलोमीटर की दौड़ लगाने वाले हरमंदर सिंह के साथ हुआ। हरमंदर सिंह ने फौजा सिंह को अपना दु:ख भुलाने के लिए दौड़ने की सलाह दी और फौजा सिंह ऐसा दौड़ने लगा कि फिर उन्होंने इसको अपना आदर्श बना लिया। हरमंदर सिंह फौजा सिंह के पहले कोच और ट्रेनर थे। फौजा सिंह ने अपने जीवन से सबसे बड़ी प्रेरणा ही यही ली कि सदमे से उभरने के लिए दौड़ना चाहिए। फौजा सिंह पहली बार सुर्खियों में तब आये जब सन् 2000 में लंदन में सात घंटे से अधिक समय में मैराथन पूरी करके 80 साल से बड़ी आयु वर्ग में तेज़ मैराथन दौड़ने का रिकार्ड बनाया। साल 2003 में टोरांटो में मैराथन पौने छ: घंटे से कम समय में पूरी की। अगले ही साल 2004 में फिर टोरांटो में ह़ाफ मैराथन अढ़ाई घंटे में पूरी करते हुए नया विश्व रिकार्ड बनाया। साल 2004 में दशम पातशाह के चार साहिबजादों के 300 साला शहीदी दिवस मौके खेल विभाग पंजाब द्वारा पूर्व डायरैक्टर पद्मश्री करतार सिंह के नेतृत्व में चमकौर साहिब से फतेहगढ़ साहिब तक ऐतिहासिक मैराथन करवाई गई तो उस समय 93 साल का फौजा सिंह दौड़ते हुए पहली बार पंजाब में सुर्खियों का केंद्र बने। उसके बाद फौजा सिंह ऐसे प्रसिद्ध हुए कि वह कहीं भी दौड़ने जाते तो सुर्खियों का केंद्र बन जाते।फौजा सिंह ने जहां कई मैराथन और ह़ाफ मैराथन दौड़ें जीतीं वहीं उन्होंने वैटरन खेल मुकाबलों में फर्राटा और मध्यम दूरी की दौड़ें भी नये रिकार्ड से जीतीं। 100 साल से अधिक आयु में उन्होंने टोरांटो में एक ही दिन में आठ दौड़ें लगाईं और पांच विश्व रिकार्ड बनाए। फौजा सिंह ने 2012 में हांगकांग में 102 साल की आयु में अपनी अंतिम मैराथन दौड़ी थी। फौजा सिंह को इस मैराथन के दौरान 26,000 डालर के करीब धन राशि इकट्ठी हुई जो उन्होंने वहीं मौके पर ही दान कर दी।
फौजा सिंह को बाबा फौजा सिंह के नाम से पुकारा और जाना जाता था। उनको बुजुर्गों का रोल माडल कहा जाता था परन्तु वह सही मायनों में जवानों और बुजुर्गों सबके रोल माडल थे। उनका जीवन और संघर्ष छोटी आयु के बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत है। फौजा सिंह ने दस्तार और खुली दाढ़ी के स्वरूप में बड़ी मैराथन दौड़ें जीतीं। वह पंजाबियों खास तौर पर सिखों के बड़े ब्रांड एम्बैसेडर थे। पतले शरीर वाले फौजा सिंह 100 साल की आयु में कपड़े पहनने के बहुत शौकीन थे। वह ट्रैक सूट के अलावा रंग-बिरंगे कोट-पैंट पहनते थे। लंदन की सड़कों पर दौड़ते फौजा सिंह के प्रशंसकों में अंग्रेज बड़ी संख्या में होते थे। वह वास्तव में रौनकी व्यक्ति थे जो दौड़ते-दौड़ते ही इस दुनिया को अलविदा कह गये।
जालन्धर ज़िले के ब्यास गांव में जन्मे फौजा सिंह ने इंग्लैंड में रह कर भी देख लिया, पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी मैराथन दौड़ कर भी नाम बनाया परन्तु वह अपने अंतिम समय ब्यास गांव ही रहे और सड़क पार करते हुए एक हादसे का शिकार हो गये। वह अक्सर कहते थे कि जो आनंद अपने गांव में आता है, वह और कहीं नहीं। उनका गांव के साथ बहुत लगाव था।
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