शुभांशु शुक्ला के प्रयोगों ने जगाई इसरो के मिशनों की उम्मीद
लगभग 20 दिन और 3 घंटे अंतरिक्ष में अलग-अलग प्रयोग करने और धरती के 322 बार चक्कर लगाने के बाद भारत के अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अपने तीन अन्य साथियों के साथ धरती पर 15 जुलाई, 2025 को सुरक्षित वापिस आ गये। ये सभी अंतरिक्ष यात्री स्पेस-एक्स के अंतरिक्ष यान ड्रैगन के ज़रिये अमरीका के कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर उतरे थे। इसके साथ ही एक्सओम-4 मिशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया। यह मिशन 25 जून, 2025 को अमरीका के फ्लोरिडा में स्थित कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से लांच किया गया था और इसने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के साथ 26 तारीख को डॉक कर लिया था, अर्थात उससे जुड़ गया था। इस मिशन में उनके साथ मिशन कमांडर अमरीका के पैगी विहटसन, मिशन स्पैशलिस्ट पोलैंड के सलावोज़ विसनीवस्की और हंगरी के टिबोर कापू गये थे। 18 दिनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में रह कर मिशन के सदस्यों ने अनेक ऐसे प्रयोग किये जो धरती के इन्सानों के लिए और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए बहुत लाभदायक रहेंगे।
इस मिशन के दौरान कुल 60 प्रयोग किये गये, जिनमें से सात भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा डिज़ाइन किये गये थे। भारत का पहला प्रयोग कर्नाटक की कृषि विज्ञान यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित किया गया था। इस प्रयोग में बीजों के अंकुरित होने पर शून्यता के प्रभावों संबंधी आंकलन किया गया था। उन्होंने इस प्रयोग में देखा कि अंतरिक्ष में इनकी वृद्धि पर क्या असर पड़ता है। भारत का दूसरा प्रयोग अंतरिक्ष में सूक्ष्म-काई (रूढ्ढष्टक्त्रहृ ्नरुत्र्नश्व) से भोजन, आक्सीज़न और जैविक ईंधन तैयार करने संबंधी था। अंतरिक्ष में यात्रियों के लम्बे समय के लिए जीवित रहने के लिए इसको बेहद महत्वपूर्ण समझा जा रहा है। एक अन्य प्रयोग में मांसपेशियों पर अंतरिक्ष के प्रभावों का अध्ययन किया गया था। इससे धरती पर भी बुज़ुर्ग लोगों की मांसपेशियों के कमजोर होने की बीमारियों और आयु बढ़ने के साथ बुज़ुर्गों में मांसपेशियों की कमज़ोरी के कारण चलने-फिरने में आती परेशानियों के इलाज के लिए इनका उपयोग किया सकेगा। इन परिणामों से भविष्य के चांद और मंगल ग्रह मिशनों के लिए कई लाभ होंगे। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा मेथी और मूंग के बीजों के अंतरिक्ष के बीच गुरुता-रहित अवस्था में अंकुरित होने के प्रयोग किये गये और करूंबलों को 80 डिग्री तापमान पर रख कर कम गुरुता के होते प्रभावों का अध्ययन किया गया। शुभांशु शुक्ला ‘टारडीग्रेडस’ नामकएक छोटे जीव को अपने साथ लेकर गये थे। इस जीव की विशेषता यह है कि यह काफी मुश्किल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकता है। प्रयोग किया गया कि यह जीव गुरुता की ़गैर-मौजूदगी में कैसा व्यवहार करता है। यह प्रयोग इसलिए भी ज़रूरी था कि यह पता लगाया जा सके कि यदि भविष्य में इन्सान लम्बे समय के लिए अंतरिक्ष में रहता है तो वह कैसे अपने-आप को सुरक्षित रख सकेगा। शुभांशु अपने साथ ‘साइनोबैक्टीरिया’ नामक जीवाणु भी लेकर गये थे। वर्णनीय है कि साइनोबैक्टीरिया को धरती पर सबसे पहले आक्सीज़न पैदा करने वाला जीव माना जाता है। इसको वहां लेकर जाने का मकसद यह पता लगाना था कि क्या ये जीवाणु अंतरिक्ष में आक्सीज़न पैदा करने के लिए उपयोग किये जा सकते हैं या नहीं। इसरो द्वारा तैयार किए गये सातवें प्रयोग में शून्यता में कम्प्यूटर की स्क्रीन के उपयोग से अंतरिक्ष यात्रियों पर पड़ते असर का पता लगाना था। इस प्रयोग से अंतरिक्ष में आगामी भविष्य में उपयोग किए जाने वाले कम्प्यूटरों और दूसरी इलैक्ट्रानिक मशीनों के डिज़ाइन तैयार करने में मदद मिलेगी।
वैसे तो शुभांशु शुक्ला से पहले भी भारत की धरती के साथ जुड़े चार अंतरिक्ष यात्री अब तक इस क्षेत्र में अपने हुनर का प्रदर्शन कर चुके थे। अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले भारत के सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा थे। भारतीय सेना के इस अनुभवी लड़ाकू-पायलट ने सोवियत यूनियन के ‘इंटरकासमास’ प्रोग्राम के तहत सोयूज टी-11 मुहिम के दौरान 3 अप्रैल, 1984 को उड़ान भरी थी। पटियाला में जन्मे राकेश शर्मा रूस के दो अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ सात दिन की यात्रा के बाद 11 अप्रैल, 1984 को धरती पर वापिस लौटे थे। कल्पना चावला भारतीय मूल की पहली महिला अमरीकी अंतरिक्ष यात्री थीं। उन्होंने कोलम्बिया स्पेस शटल में पहले 1997 में और दूसरी बार फिर कोलम्बिया अंतरिक्ष यान में 16 जनवरी, 2003 को उड़ान भरी थी। इस मिशन ने 80 के करीब प्रयोग किये थे परन्तु कोलंबिया अंतरिक्ष यान वापसी के दौरान एक दुर्घटना का शिकार हो गया था, जिससे सभी यात्री हमेशा के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान विज्ञान की भेंट चढ़ गये थे। सुनीता विलियम्स का अपने पिता द्वारा भारत के साथ एक गहरा रिश्ता है। उनके पिता दीपक पांडिया मूल रूप से गुजराती हैं। सुनीता विलियम्स ने तीन बार इंटरनैशनल अंतरिक्ष स्टेशन का चक्कर लगाकर रिकार्ड कायम किया है। पहली बार वह 2006 में ‘डिस्कवरी’ अंतरिक्ष यान में गई थीं, जब वह 195 दिनों के लिए अंतरिक्ष में रही थीं और उन्होंने अंतरिक्षयान से बाहर निकल कर कुल 29 घंटों के लिए स्पेसवॉक की थी। वर्णनीय है कि स्पेसवॉक के दौरान अंतरिक्ष यात्री अपने अंतरिक्ष यान से बाहर निकल कर मशीनों की मुरम्मत आदि करते हैं। सुनीता की अंतिम अंतरिक्ष यात्रा 5 जून, 2024 को शुरू हुई थी। इस काम के लिए ‘स्टारलाइनर’ नामक अंतरिक्ष यान का उपयोग किया गया था। स्टारलाइनर बोइंग कम्पनी का दोबारा (क्त्रश्वस््नक्चरुश्व) उपयोग किये जाने वाला अंतरिक्ष यान है। इस मिशन के एक सप्ताह के लिए चलने की योजना बनाई गई थी परन्तु स्टारलाइनर में खराबी आने के कारण इस यात्रा को 18 मार्च, 2025 तक रोकना पड़ा था। अंतत: 18 मार्च, 2025 को सुनीता विलियम्स और उनके साथी बुच विलमोर 286 दिनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में ठहरने के बाद धरती पर वापिस आए थे। इस प्रकार सुनीता का अंतरिक्ष सफर कुल मिलाकर 608 दिनों का हो गया है, जोकि पैगी विटसन के 675 दिनों के अंतरिक्ष सफर के बाद दूसरे नम्बर पर आता है।
अमरीका के अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में राजा चारी नामक एक अन्य वैज्ञानिक का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। राजा चारी अमरीका की एयरफोर्स के एक बहुत अनुभवी ब्रिगेडियर जनरल हैं। उनके पिता का नाम श्रीनिवास वी. चारी है और वह मूल रूप में भारत के राज्य तेलंगाना के हैदराबाद शहर से हैं। राजा चारी अमरीकी प्राइवेट एजेंसी स्पेस-एक्स की 10 नवम्बर 2021 को लांच की गई उड़ान क्रियो-3 ड्रैगन का हिस्सा बने थे। वह और उनकी टीम के साथी 176 दिनों के लिए अंतरिक्ष में रहे थे। इस दौरान उन्होंने दो बार स्पेस वॉक भी की थी। राजा चारी अमरीका के आर्टीमिस नामक मिशन का हिस्सा हैं। यह मिशन चांद के दक्षिण ध्रुव पर मनुष्य को उतारने के लिए तैयार किया गया है।
भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के कारनामों का सबसे ताज़ा उदाहरण शुभांशु शुक्ला हैं। उनकी कामयाबी से भारत के मिशनों को बल मिलने की आशा है। वर्णनीय है कि भारत आगामी समय में गगनयान नामक अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष यान में वैज्ञानिकों को भेज कर अलग-अलग प्रयोग करने का है।
-सेवानिवृत्त लैक्चरार, चंदर नगर, बटाला।
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