शहरी विकास का मानक बन सकता है स्वच्छता सर्वेक्षण

स्वच्छ भारत मिशन के तहत वर्ष 2016 से आरंभ किए गए स्वच्छता सर्वेक्षण के वर्ष 2025 के परिणाम आने के बाद विकास कार्यों के लिए कार्य कर रहीं एजेंसियों और विकसित भारत का सपना देख रहे विशेषज्ञों के बीच यह बात अब मुखर हो रही है कि क्या स्वच्छता सर्वेक्षण के मानक शहरी विकास के लिए कारगर सिद्ध हो सकते हैं? अभी स्वच्छ भारत मिशन को आरंभ हुए एक दशक नहीं हुआ है और पूरे भारत में इसके प्रति एक ऐसी लहर फैल गई है कि नेता, अधिकारी से लेकर हर शहरी इसमें भागीदारी करके अपने शहर को दुनिया के सामने बेहतर सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। प्रत्यक्ष तौर पर नगर निकायों या उन जैसी दूसरी एजेंसियों की इसमें मुख्य भूमिका होती है, लेकिन गांव-शहर का हर व्यक्ति इसमें अपनी भागीदारी निभा रहा है। 
इसकी सफलता का प्रतिशत देखना हो तो इससे अंदाज़ा लग सकता है कि हर शहर साल-दर-साल अपना रैंक सुधार रहा है और कुछ शहरों ने तो इन पर उसी तरह से कब्ज़ा कर रखा है। स्वच्छता सर्वेक्षण के प्रति स्थानीय सरकारों तथा शासन-प्रशासन में जागरूकता कायम रहे, इसलिए इसमें समय-समय पर बदलाव या कुछ नया किया जाता रहा है। जैसे इस बार इसमें ‘सुपर स्वच्छ लीग’ को जोड़ा गया और उसमें आने के लिए शहरों ने जी-जान लगा दिया। इंदौर, भोपाल, लखनऊ, अहमदाबाद या दूसरे शहरों को देखें या फिर जयपुर या जमशेदपुर को देखें, सभी से एक ही संदेश गया है कि इस मिशन के प्रति अब हर कोई तत्पर है। ऐसी स्थिति में जब शहर साफ रहने लगे हैं तो उनके दूसरे विकास कार्य क्यों नहीं स्वच्छता सर्वेक्षण की तर्ज पर मानक बनाकर किए जाएं, जिससे यह आम जनता के लिए सुविधाजनक बन जाएंगे तथा विकास के नाम पर जो भारी धनराशि जारी होती है उसे उचित तरीके से खर्च किया जाए। दरअसल हर शहर-गांव, महानगर या फिर राजधानियों, सभी की कुछ समस्याएं हैं, जो सदियों से जस की तस बन हुई हैं। इनमें चार समस्याएं प्रमुख हैं—सीवर, सड़क, पेयजल तथा यातायात। किसी भी जगह चले जाइये यह चारों आपके सामने तैयार मिलेंगी। अगर सीवर सही होगा तो वहां पर पानी के लिए मारामारी हो रही होगी और अगर यह दोनों सही मिलीं तो सड़क पर चलने के लिए सुरक्षित स्थान तलाशना होगा। यातायात की व्यवस्था यह है कि दिल्ली हो या फिर गांव-कस्बा, हर कोई पहले निकलने की जल्दी में यातायात नियमों को तोड़ रहा है। यह ठीक वैसे ही है जैसे स्वच्छता सर्वेक्षण से पहले कचरा यहां-वहां फैंक देने की परम्परा थी। 
आखिर क्यों नहीं बारिश में बह जाने वाली सड़क को पूरे साल सही रखने और चलने योग्य बनाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाए? क्यों नहीं सीवर जाम होने पर उसकी रखवाली करने वाली संस्था पर जुर्माना लगाकर या फिर उसको दिया जाने वाला फंड रोक कर यह संदेश दिया जाए कि सही व्यवस्था रखना आपकी ज़िम्मेदारी है? 
कुछ वर्ष पहले जब केन्द्र सरकार ने यातायात नियमों के पालन के लिए भारी-भरकम जुर्माना लगाया था, तो सभी सरकारों ने इसे ठीक से लागू ही नहीं किया। ..तो फिर क्यों नहीं उनसे इस विषय में पूछा जाता कि क्या कारण है, वे यातायात को सुधरने नहीं देना चाहते? ध्यान दीजिए, पहले सड़क पर यहां-वहां थूक देना आम बात थी, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना सामान्य बात थी, जैसे ही इस पर दंड लगा, वैसे ही इनमें कमी आ गई। लोग सचेत हो गए कि कहीं पकड़े न जाएं। जब हल्की कार्रवाई से सुधार हुआ है तो क्या कारण है कि सड़क या सीवर जैसी मूलभूत असुविधाएं खत्म नहीं हो सकतीं?
जिस तरह से सफाई व्यवस्था के लिए मिशन चला कर उसे आम जनता की ज़िन्दगी से जोड़ा गया है, उसी तरह से अब ज़रूरत है कि सभी सरकारें दूसरी समस्याओं के प्रति भी एक ऐसे ही मिशन चलाएं, जिससे बरसात के दिनों में आम जनता टूटी और जानलेवा बन चुकी सड़कों से गुजरने से बचे। ऐसा कोई कारण नहीं है कि सड़क व्यवस्था सुधर नहीं सकती। कचरा तो यहां-वहां फैंक देना आम बात थी, पर सड़क को किसी समारोह के नाम पर क्षतिग्रस्त करना, पानी की लाइन डालने के लिए तोड़ना या फिर इतना घटिया बनाना कि ज़रा से भारी वाहन के दवाब में वह धंस जाए, यह आम बात नहीं है। बेहतर व्यवस्था के लिए नगर निकायों की तरह सार्वजनिक निर्माण विभाग हो या फिर दूसरी कार्यदायी संस्थाएं, उनकी ज़िम्मेदारी तय की जाए, तो इस दिशा में भी बेहतर काम किया जा सकता है। 
सीवर की व्यवस्था पूरे देश में इतनी खराब है कि जहां पर सीवर है, वहां पर यह जाम है और जहां पर यह नहीं हैं, वहां पर गंदा पानी सड़कों पर जमा होकर उन्हें खराब कर रहा है। जिस तरह से सफाई कर्मियों को स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए प्रेरित किया गया, उसी तर्ज पर यदि उन्हें सुविधाएं दी जाएं और लाभान्वित किया जाए तो यह समस्या भी काफी हद तक सुलझ सकती है। बात जब यातायात की होती है तो यह भारत की सबसे घटिया व्यवस्था में आती है। यह बात भी सही है कि पुलिस विभाग में आबादी के अनुसार कर्मचारी नहीं हैं, लेकिन जो हैं, उनकी व्यवस्था इस तरह की हो गई है कि भारी यातायात के क्षेत्र में भी उनकी कमी साफ  परिलक्षित होती है। दरअसल इस तरफ भी एक ऐसे मिशन की ज़रूरत है, जो लोगों को जागरूक करे न कि सज़ा देने की बात हो। 
जब देश के हर शहर में जिन्होंने स्वच्छता सर्वेक्षण में जीत हासिल की है, उसी प्रकार दूसरी समस्याओं के प्रति भी एक समस्या मूलक मिशन चलाने की ज़रूरत है। एक ऐसी व्यवस्था को जन्म देना होगा, जो लोगों को शहरी विकास के प्रति जागरूक तो करे ही साथ ही ज़िम्मेदार शासन-प्रशासन भी खुद व खुद ऐसे मानक बनाए कि विकास के लिए एक स्वच्छ और सेहतमंद प्रतियोगिता का हर कोई हिस्सा बनने को उत्सुक हो।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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