बिहार की राजनीति

विगत दिवस प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में विशाल रैली की, जिसमें मुख्यमंत्री नितीश कुमार सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) की अन्य सहयोगी पार्टियों के नेता भी शामिल हुए। श्री नरेन्द्र मोदी ने इस रैली में बिहार के लिए बड़ी सौगातों की घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने पटना में 4 नई वंदे भारत रेलगाड़ियों को हरी झंडी भी दिखाई। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि आगामी समय में बिहार के लोगों के विकास के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) सरकार को पुन: वापिस लाना है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 10 वर्षों में केन्द्र सरकार ने बिहार को अलग-अलग योजनाओं के लिए 9 लाख करोड़ रुपए की सहायता दी है, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार के 10 वर्षों में बिहार को केन्द्र द्वारा योजना के लिए सिर्फ दो लाख करोड़ ही मिले थे।
उन्होंने एक बार फिर मुख्यमंत्री नितीश कुमार के नेतृत्व में विश्वास प्रकट किया। इस वर्ष नवम्बर में बिहार के विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी लगातार ऐसी योजनाओं की घोषणा की है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले विपक्षी पार्टियों द्वारा रेवड़ियां बांटने की कवायद कहते  थे। नितीश कुमार ने भी राज्य के 1.67 करोड़ परिवारों के लिए 125 यूनिट बिजली आगामी महीने से मुफ्त देने की घोषणा की है और बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों को पैंशन की राशि 400 से 1100 रुपए प्रति महीना करने की घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने एक लाख नई नौकरियां देने की बात भी की है। बिहार में अलग-अलग विपक्षी पार्टियों ने आगामी चुनावों के लिए ऐसी घोषणाएं की हुई हैं। नवम्बर, 2024 में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने अपनी सरकार बनने पर उपभोक्ताओं को 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की घोषणा की थी और पैंशन की राशि बढ़ाने की बात भी की थी। इसके साथ ही तेजस्वी ने ‘माई-बहन सम्मान योजना’ के तहत महिलाओं को 2500 रुपए महीना आर्थिक सहायता देने की घोषणा की थी।
बिहार देश का बड़ा राज्य है। इसमें 243 विधानसभा सीटें हैं, परन्तु विगत लम्बी अवधि से यहां आम लोग कमज़ोर आर्थिकता की चक्की में पिसते आ रहे हैं। अन्य प्रदेशों के मुकाबले यह प्रदेश ज्यादा ़गरीबी का शिकार और बहुत पीछे रह चुका है। इसकी इस हालत के लिए इसकी सरकारें और राजनीतिज्ञ ज़िम्मेदार रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव के लम्बे शासन के दौरान बिहार अमन-कानून की बिगड़ती हालत का शिकार रहा है। राजनीतिज्ञों की सोच बड़ी सीमा तक प्रदेश के विकास की बजाये अपने और अपने साथियों की जेबें भरने तक सीमित रह गई थी। इसीलिए आज लालू प्रसाद यादव और उनके साथी तरह-तरह के घोटालों के मामलों में फंसे हुए हैं। नितीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और बिहार के अन्य बहुत-से युवा नेता 1974 में जय प्रकाश नारायण के शुरू किए अभियान जोकि उस समय एक आन्दोलन का रूप धारण कर गया था, के समय उभरे थे। इसलिए इनसे बड़ी उम्मीदें रखी जाती थीं, परन्तु राजनीति की जटिलताओं ने एक तरह से ज्यादातर के व्यक्तित्व को बदल दिया। नितीश कुमार को ईमानदार नेता माना जाता है परन्तु उन्होंने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कुर्सी पर बने रहने को प्राथमिकता दी और समय-समय पर वह अपना राजनीतिक रंग भी बदलते रहे। अपने 18 वर्षों के शासन में उन्होंने 5 बार अलग-अलग राजनीतिक गठबंधन बदले। इसलिए वह 18 वर्ष मुख्यमंत्री बने रहे। इस समय में उनका 9वीं बार मुख्यमंत्री बनना एक रिकार्ड माना जा सकता है।
इस समय जहां राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस एवं अन्य पार्टियां मिल कर महागठबंधन को नया रूप दे रही हैं, वहीं नितीश का जनता दल (यू) भाजपा के साथ मिल कर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है। बिहार की राजनीति में आज भी जाति-बिरादरियों का बोलबाला है, जिस कारण प्रत्येक जाति-बिरादरी अपना अस्तित्व दिखाने के लिए तत्पर दिखाई देती है। ऐसे हालात में सही अर्थ में लोकतंत्र की भावना को किस तरह परिभाषित किया जाएगा, यह एक अवरोध ही बना दिखाई देता है। ऐसे भंवर में फंसा यह प्रदेश किस तरह स्वस्थ और मज़बूत सरकार दे पाएगा, इसके संबंध में विश्वास के साथ अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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