संसद में प्रत्येक मुद्दे पर सार्थक बहस होनी चाहिए
21 जुलाई से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र को गर्माए रखने के लिए कांग्रेस समेत लगभग समूचे विपक्ष ने अपनी-अपनी तैयारी कर रखी है। गोया, यह आशंका कायम है कि विपक्षी दल संसद की कार्यवाही में बाधा डाल कर अपना ज़ाया कर सकते हैं। इस सत्र में लम्बे समय तक चलने वाला हंगामा बिहार में मतदाता सूची के गहन परीक्षण को लेकर हो सकता है। चुनाव आयोग के इस बड़े प्रयास पर समूचा विपक्ष बड़े राजनीतिक संग्राम की तैयारी कर चुका है। लोकसभा चुनाव की तरह एक बार फिर से इस मुद्दे पर ‘इंडिया’ गठबंधन के दल एकजुट होते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने विभिन्न मुद्दों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से बैठक भी की है। इस सत्र के दैरान मुख्य रूप से कांग्रेस, राजद और तृणमूल कांग्रेस कार्यस्थगन प्रस्ताव ला सकते हैं। अतएव आशंका है कि बिहार में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव को लेकर संसद में गतिरोध बनाए रखने की कोशिश होगी। सत्ता पक्ष के लिए राहत की बात यह है कि निर्वाचन आयोग के बिहार की मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक नहीं लगाई है। इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है। अतएव विपक्ष इस मुद्दे के न्यायालय में विचाराधीन होने के बहाने को सुरक्षाकवच के रूप में इस्तेमाल करेगा।
सरकार ने इस सत्र में 8 नए विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित कराने के लिए सूचीबद्ध किए हैं। इन विधेयकों में मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर संशोधन विधेयक-2025, सार्वजनिक न्यास प्रणाली (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक-2025,भारतीय प्रबंधन संस्थान संशोधन विधेयक-2025, पुरातत्व धरोहर स्थल और अवशेष (संरक्षण और देखरेख) विधेयक-2025, राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक-2025 एवं राष्ट्रीय डोपिंग (कचरा) रोधी संशोधन विधेयक-2025 शामिल हैं। इन विधेयकों पर सहमति बनाए जाने की चर्चा से पहले विपक्ष चाहेगा कि पहलगाम हमले में गुप्तचर तंत्र की नाकामी, सैन्य ऑपरेशन सिंदूर के दौरान विदेशी हस्तक्षेप, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता के दावों के बीच सेना के अभियान को अचानक क्यों रोका गया जैसे मुद्दों पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा हो। विपक्ष की मंशा मुद्दों की सच्चाई से कहीं ज्यादा सरकार को घेरना है। सत्तारुढ़ पक्ष इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे बताकर चर्चा से बचने की कोशिश कर सकता है।
कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल मतदाता सूची को लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं जबकि सत्तारुढ़ दल चुनाव आयोग की जानकारी के आधार पर विपक्ष के आरोपों का जबाव देने की तैयारी कर चुका है। इसके बावजूद तेलगु देशम पार्टी द्वारा मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण पर सवाल उठाए जाने से सरकार की चुनौतियां बढ़ी हुई हैं। इधर निर्वाचन आयोग के मुख्य आयुक्त ज्ञानेश कुमार का ऐसा बयान आया है, जिसे सरकार अपनी ढाल बनाने का काम करेगी। ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि बिहार में एसआईआर के तहत मतदाता सूची को दुरुस्त करने के प्रयास में मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी देखने में आई है।
समूचा विपक्ष इसलिए चिंतित है, क्योंकि पहली बार बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के नाम मतदाता सूचियों से हटाए जाने की आधिकारिक प्रक्रिया शुरू हुई है। इस बाबत असम के परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने ठीक ही कहा है कि असम जैसे राज्य में घुसपैठिए एक ही धर्म के लोग हैं, जो कांग्रेस समेत गैर-भाजपा दलों को वोट करते हैं।
अतएव प्रस्तावित विधेयकों की बजाय मतदाता सूची पर ज्यादा हंगामा होने के आसार हैं। यदि संसद की कार्यवाही में गतिरोध बना रहता है तो उन विधेयकों और अधिनियमों पर गम्भीरता से बहस संभव नहीं होगी, जो देश की जनता के कल्याण व नियमन के लिए कानून बनने जा रहे हैं। प्रत्येक सांसद का दायित्व बनता है कि वह विधेयकों के प्रारूप का गंभीरता से अध्ययन करे, जिससे यह समझा जा सके कि उसमें शामिल प्रस्ताव देश व जनता के हित से जुड़े हैं अथवा नहीं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि ज्यादातर सांसद अधिनियम के प्रारूप पर चर्चा करने की बजाय ऐसे मुद्दों को बेवजह बीच में घसीट लाते हैं, जिनसे उनकी क्षेत्रीय राजनीति चमकती रहे।
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