क्या आतंकवाद को लेकर बदल रहा है अमरीका व चीन का रुख ?
अमरीका ने पाकिस्तान समर्थित और भारत के पहलगाम आतंकी हमले के गुनहगार ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’(टी.आर.एफ.) को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित करके हाल ही में बेपटरी होते जा रहे अमरीका-भारत कूटनीतिक सम्बन्धों को संभालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है। इससे जहां पाकिस्तान और चीन को करारा झटका लगा है, वहीं अमरीका के इस हृदय परिवर्तन से यह स्पष्ट हो चुका है कि दुनिया के दोनों ध्रुवों को एक साथ साधते रहने की कोशिश करने वाले भारत के ताज़ा कूटनीतिक प्रयासों की जीत हुई है, लेकिन अभी भी पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना बाकी है।
बता दें कि टी.आर.एफ. पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा का ही एक चेहरा यानी प्रॉक्सी संगठन है। जब लश्कर और उसके सरगना हाफिज़ सईद पर कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बढ़ने लगा तो 2019 में उसने टी.आर.एफ. को प्रॉक्सी के तौर पर खड़ा कर दिया। यह जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ ही नहीं, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी में भी शामिल है। सरकार ने 2023 में इस पर बैन लगाया था। उल्लेखनीय है कि टी.आर.एफ. को संसाधन और समर्थन दे रहा लश्कर-ए-तैयबा पहले ही वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया जा चुका है। इसी तरह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद पर भी प्रतिबंध लगे हुए हैं। इसके बावजूद, ये दोनों आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। दिखाने के लिए हाफिज सईद को जेल में रखा गया है, लेकिन उसकी गतिविधियां पहले की तरह जारी हैं। यही वजह है कि लश्कर या जैश जैसे आतंकी संगठन अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद खत्म नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पाकिस्तान की तरफ से निरन्तर खुराफाती खुराक मिलती आई है। आलम यह है कि जब इस्लामाबाद पर अमरीकी दबाव बढ़ता है, तो वह दिखावटी कदम उठा लेता है और आतंकवाद का कोई एक नया चेहरा तैयार कर दिया जाता है। इसलिए टीआरएफ के मामले में अमरीका को पाकिस्तान के सामने यह मुद्दा उठाना चाहिए कि लश्कर पर प्रतिबंध होने के बावजूद कैसे उसने एक दूसरा फ्रंट बना लिया?
दरअसलए सीमा पार आतंकवाद को लेकर वॉशिंगटन का नज़रिया भारत से बिल्कुल अलग दिखता है। तभी तो पहलगाम आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तानी सेना प्रमुख असिम मुनीर की भी स्पष्ट भूमिका दिखाई देने के बावजूद कुछ ही दिनों बाद डॉनल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस में उनकी मेज़बानी करते दिखाई दिए। इसलिए यदि अमरीका टी.आर.एफ. पर प्रतिबंध का कोई सार्थक नतीजा देखना चाहता है, तो उसे पाकिस्तानी सेना पर दबाव बनाना चाहिए। पहलगाम आतंकी हमले और पाकिस्तान के बीच संबंध के कई सबूत सामने आए हैं। इसलिए टी.आर.एफ. पर कार्रवाई का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान की घेरेबंदी करने और वैश्विक मंच पर उसे बेनकाब करवाने में करना चाहिए।
अमरीकी विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि टी.आर.एफ. ने पहलगाम हमले की ज़िम्मेदारी ली थी। मंत्रालय ने कहा, ‘यह 2008 में लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए मुम्बई हमलों के बाद भारत में आम लोगों पर किया गया सबसे घातक हमला था। टी.आर.एफ. ने भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ कई हमलों की भी ज़िम्मेदारी ली है, जिसमें हाल में 2024 में हुआ हमला भी शामिल है।’
यही वजह है कि अमरीका के बाद चीन ने भी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया। यह भारत के लिए आतंकवाद पर दोहरी जीत है। चीन ने गत शुक्रवार को विभिन्न देशों से क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया। चूंकि अमरीकी घटनाक्रम के बाद चीन ने यह बयान दिया है, इससे इसके वैश्विक मायने स्पष्ट हैं। यह भारत के दबाव का ही नतीजा है कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने गत शुक्रवार को यहां प्रेस वार्ता में कहा, ‘चीन सभी प्रकार के आतंकवाद का दृढ़ता से विरोध करता है और 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करता है।’ यह बात उन्होंने तब कही जब उनसे अमरीकी विदेश विभाग द्वारा टी.आर.एफ. को वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित करने के बारे में पूछा गया था।
सवाल है कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गत 25 अप्रैल को एक बयान जारी कर हमले की निंदा की थी, तब पाकिस्तान और चीन की आपत्तियों के बाद ही टी.आर.एफ. और लश्कर-ए-तैयबा का उल्लेख बयान से हटा दिया गया। ऐसे में बदलते चीनी और अमरीकी रुख के मायने स्पष्ट हैं। वह यह कि भारत के साथ सम्बन्धों को खराब कर वे अपनी वैश्विक चुनौतियों को बढ़ाने के पक्षधर नहीं हैं। (अदिति)