बाल भिक्षा-वृत्ति की गम्भीर होती समस्या

पंजाब के सभी बड़े शहरों में प्रत्येक सड़क और चौक-चौराहों पर भीख मांगने बच्चों की बढ़ती संख्या एक बार फिर एक बड़ी समस्या बन कर उभरी है। भिखारी बच्चों की अथाह रूप से बढ़ती इस तादाद के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें बढ़ती जन-आबादी, बड़े शहरों में बढ़ती झुग्गी-झोंपड़ियों की संख्या भी हो सकती है, किन्तु जिस एक गम्भीर कारण ने सरकार, प्रशासनिक तंत्र और सामाजिक-धार्मिक तंत्र का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, वह है इनमें बड़ी संख्या में चोरी किये हुए बच्चों का शुमार होना। ऐसा संदेह इसलिए भी परिपक्व होता है कि भीख मांगने वाले लोगों के पास मौजूद बच्चे अधिकतर निद्रा अथवा अर्ध-निद्रा में होते हैं जैसे कि उन्हें नशा दिया गया हो। इससे यह आशंका भी बढ़ती है कि कहीं ये बच्चे सचमुच चोरी किये गये तो नहीं। पंजाब में ऐसी स्थिति बहुतायत में है। पंजाब के प्रत्येक बड़े शहर में बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं मिल जाती हैं जो गोद में बच्चा उठाये, अथवा बच्चे को उंगली थमाये भीख मांग रही होती है। ़गरीब और झुग्गी-झोंपड़ियों में बसते परिवारों के बच्चों का चोरी हो जाना एक बड़ी समस्या है। वहीं इन स्थानों के आपराधिक तत्व लोगों  द्वारा भी, बच्चे चोरी करना एक बड़ी गम्भीर समस्या बन कर उभरता है। देश के अन्य राज्यों में भी बच्चों का चोरी अथवा लापता होना एक आम बात है। वर्ष 2015 के एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में से 45,000 से अधिक बच्चे लापता हुए थे, अर्थात प्रत्येक आठ मिनट बाद एक बच्चा लापता अथवा चोरी हुआ। नि:संदेह इनमें से अधिकतर बच्चे आपराधिक दुनिया अथवा भीख मांगने जैसी वृत्ति की ओर धकेल दिये जाते हैं। भिक्षा-वृत्ति भी आज अपराध जगत के धरातल पर एक बड़े एवं नियोजित कारोबार का हिस्सा बन गई है। देश में पांच वर्ष पूर्व के आंकड़ों के अनुसार कुल 5 लाख भिखारी थे जिनमें से लगभग डेढ़ लाख बाल-भिखारी थे।
भिक्षा-वृत्ति में रत बच्चों के प्रति लोगों के मन में उपजती, उमड़ती दया-भावना भी इस समस्या के गम्भीर होते जाने का एक बड़ा कारण है। असल में बच्चों की चोरी और उन्हें अपराध तथा भिक्षा-वृत्ति की ओर मोड़ने वाले कथित कारोबार को संचालित करने वाले कुख्यात गुण्डा तत्व चोरी किये अथवा लापता हुए बच्चों का अंग-भंग कर देते हैं ताकि दया-भावना के तहत भिक्षा देने वाले लोगों को अधिकाधिक द्रवित किया जा सके। देश में शिक्षा के  धरातल पर बढ़ती अनपढ़ता भी भिखारी बच्चों की संख्या बढ़ाने का बड़ा कारण है। यही अनपढ़ता ़गरीब और भिखारी परिवारों में आबादी के बढ़ने का संयोग भी बनती है। बढ़ती आबादी के कारण आज देश का हर छठवां बच्चा घोर ़गरीबी में जी रहा है। यह संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की एक रिपोर्ट का दावा है। देश के अधिकतर बच्चों को जीने के लिए कठोर श्रम अथवा परिश्रम करना पड़ता है। इस कारण भी अनेक बच्चे भिक्षा-वृत्ति को अधिमान देने लगते हैं। भूख और ़गरीबी के धरातल पर देश आज भी 127 देशों में से 105वें स्थान पर आया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख से मरने वाले बच्चों की संख्या विगत वर्षों में निरन्तर बढ़ी है। नि:संदेह विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 26 करोड़ लोग विगत एक दशक में ़गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं, किन्तु देश में भिखारियों की बढ़ती तादाद के दृष्टिगत ऐसा कोई विकास-लक्ष्य अविश्वसनीय ही लगता है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह स्थिति देश और समाज के लिए बेहद चिन्ताजनक है किन्तु पंजाब सरकार द्वारा भिखारी बच्चों अथवा भिखारियों के बच्चों के प्रति ऐसी गम्भीरता का दर्शाना एक अच्छा संकेत हो सकता है। इस निर्देश के अन्तर्गत  भिखारियों  के बच्चों का डी.एन.ए. टैस्ट कराना एक बहुत अच्छा निर्णय माना जाएगा। इससे अनेक बच्चे यदि वे चोरी के हैं, तो उन्हें वापिस अपने माता-पिता के पास लौटाये जाने की बड़ी सम्भावना बन सकती है। इससे हज़ारों बच्चों की ज़िन्दगी संवर सकती है। अनेक परिवारों के लापता अथवा चोरी हुए बच्चे अपने माता-पिता तक लौटाये जाने से उनकी ज़िन्दगी में नई सम्भावनाएं लौट सकती हैं। तथापि यहां पर आवश्यक यह है कि इस कार्य को अधिकतर मानवीय आधार पर सम्पन्न किया जाए। कानून की भी अपनी मांग होती है किन्तु कानून निष्ठुर होता है। डी.एन.ए. टैस्ट करते समय यह भी ध्यान रखा जाए, कि किसी ़गरीब मां की ममता पर आघात न हो। यह भी, कि अधिक ज़ोर भिक्षा-वृत्ति को रोकने पर दिया जाए, किसी ़गरीब का अनुचित उत्पीड़न न हो। शिनाख्त-शुदा बच्चों को लौटाते समय भी, यह ध्यान अवश्य रखा जाए, कि वे फिर से भिक्षा-वृत्ति अथवा अपराध जगत की ओर न बढ़ें। सरकार उनकी शिक्षा और जीवन-व्यवस्था का ध्यान स्वयं रखे।
 

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