बहुत उपयोगी है बांस

कहने के लिए तो बांस एक रूखा-सूखा और फल से विहीन, पतला और लम्बा वृक्ष है। बांस के वृक्ष की लम्बाई 10 से लेकर 50 मीटर तक होती है। देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के बांस पाये जाते हैं जिनकी लम्बाई भी घटती और बढ़ती रहती है। यह तो रही बांस के बारे में कुछ जानकारी। आइए, अब जरा यह देखा जाए कि बांस जैसे शुष्क, नीरस तथा फलविहीन वृक्ष का हमारे जीवन में उपयोग क्या है।
बांस की पत्तियां पशुओं को प्रसव के बाद खिलाने से पशु ’खेंड़ी’ जल्दी गिराते हैं। सामान्यतया: बांस की पत्तियां शीतकाल में चारे के रूप में पशुओं को खिलाने से शीत ठंडक से उनका बचाव होता है।
बांस की पतली टहनियां दातुन के रूप में प्रयुक्त की जाती हैं। बांस की दातुन नित्य करने से दांतों का रोग पायरिया नहीं होता तथा दांत स्वस्थ व मसूड़े मजबूत रहते हैं। बांस की दातुन के हिल्ले बहुत ही सावधानीपूर्वक तथा धीमे-धीमे करने चाहिए क्योंकि हिल्ले बेहद तीक्ष्ण होते हैं और जरा भी असावधानी होने पर ये जीभ को घायल कर सकते हैं।
बांस की मज़बूत लम्बी टहनियों से ‘खांची’ नामक एक पात्र बनाया जाता है जो खर-पतवार एवं गोबर आदि रखने के काम आता है।
बांस के तनों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर उसमें से पतले-पतले छिलके चीर कर अलग कर लेते हैं। इस पतली छिलकेदार पट्टियों से तरह-तरह के बर्तन बनाते हैं। बांस के खिलौने भी इसी प्रकार से बनाये जाते हैं।
एक प्रकार के पतले बांस से ‘बांसुरी’ भी बनायी जाती है। गर्मी के दिनों में पंखे भी बांस की छिलकेदार पट्टियों से बनते हैं जिनमें एक पतले बांस की ‘फोंकी’ लगी होती है जिसे हाथों से झलका कर हवा प्राप्त की जाती है।
बांस के डेढ़ फीट टुकड़े को एक ओर से नुकीला करके खूंटा बनाया जाता है जिसे जमीन में गाड़कर उससे पशुओं को बांधते हैं।
बांस की पतली छिलकेदार पट्टियों से ‘झपोली’ बनती है जिनमें मिठाइयां फल आदि रखकर शादी के उपहार स्वरूप दिया जाता है। देश के कुछ भागों के ग्रामीण क्षेत्रों में यह ‘झपोली’ बहुतायत से बनती है।
‘डलिया’ और ‘डोलवी’ भी बांस से बनायी जाती है जो विविध जीवों के रखने के काम आती है। 
मकान निर्माण में बांस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मंडई या कच्चा मकान (मिट्टी का) बनवाने के समय बांस के छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। कहीं-कहीं तो घरों के दरवाजे भी बांस के ही बनते हैं जिन्हें चेंचरा कहा जाता है।
पालना, पलंग, बसखटा आदि प्राय: बांस के ही बनाये जाते हैं जो लोगों के सोने के काम आते हैं। आजकल तो बांस के स्थान पर शीशम, आम आदि के भी पलंग बनते हैं मगर कुछ लोग शौक के मारे बांस के ही पलंग बनाते है।
बांस से सीढ़ी बनायी जाती है। सीढ़ी दो समानान्तर बांस में लम्बे टुकड़ों के बीच एक से लेकर डेढ़फीट के अन्तर पर डण्डे लगे होते हैं, जो पेड़ों पर या मकान के छतों पर चढ़ने के काम आती है।
लाठी, डण्डे आदि पतले बांसों से ही बनते हैं जो अंधेरे में कीड़े-मकोड़ों से हमारी रक्षा करते हैं। लाठी में गुण बहुत है, सदा रखिये संग। जहां पड़े गहरी नदी वहां बचावे अंग।
इतने पर भी बांस का उपयोग पूरा नहीं हो जाता। ईंधन के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है, यह कहने की बात नहीं है। पालने से लेकर अरथी तक बांस से ही बनती है। कुल मिलाकर एक अनुपयोगी सा दिखने वाला बांस हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी है, इसे नकारा नहीं जा सकता। (उर्वशी)

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