गेहूं के अधिक उत्पादन के लिए गुल्ली डंडा का खात्मा ज़रूरी
पंजाब में गेहूं-धान फसली चक्र प्रधान है। गेहूं की काश्त 35 लाख हेक्टेयर तथा धान की लगभग 32 लाख हेक्टेयर पर की जाती है। किसानों ने गेहूं (कुछ रकबा छोड़कर जो मटर, आलू, सब्ज़ी और गन्ने या थोड़ा-सा कपास पट्टी में है) लगभग बो दिया है। थोड़ा-सा रकबा जो अब बुवाई के बिना है, उस पर दिसम्बर के दौरान या थोड़ा-सा जनवरी के शुरू में एच.डी.-3298, पी.बी.डब्ल्यू.-771 और पी.बी.डब्ल्यू.-753 जैसी पिछेती बुवाई के लिए सिफारिश की गईं किस्मों की बुवाई की जाएगी। अब किसान गुल्ली डंडा की समस्या से जूझ रहे हैं। गुल्ली डंडा इतना जिद्दी नदीन है जो कई जगहों पर 40 प्रतिशत तक उत्पादन कम कर देता है। विगत वर्षों में नदीन नाशकों के इस्तेमाल से भी यह नदीन नहीं मरा, जिस कारण किसान घबराहट में हैं।
किसानों ने खरीफ में धान की फसल से 5500-6000 करोड़ रुपये तक का नुकसान उठा कर इस साल बड़े रकबे पर गैर-प्रमाणित किस्म के बीज बोए हैं, जो उन्होंने गेहूं के तौर पर अपने पास स्टोर किए हुए थे। इसलिए इस साल उत्पादन कम होने की संभावना है। अगर गुल्ली डंडा पर काबू नहीं पाया गया तो गेहूं का उत्पादन और कम हो जाएगा। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना ने गुल्ली डंडा को नियंत्रित करने के लिए गुडाई के अलावा काश्तकारी तरीकों, जैसे गेहूं की जगह बरसीम, आलू, राई, गोभी सरसों आदि बोने तथा अन्य तकनीकें अपनाने के अतिरिक्त कई ब्रांडों के नदीन नाशकों के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। यदि मिट्टी की परत सूखा कर गेहूं बोया जाए तो भी गुल्ली डंडा को शुरुआती अवस्था में नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन किसानों द्वारा यह तकनीक भी नहीं अपनाई जाती। वे ज़्यादातर नदीन नाशकों का इस्तेमाल करके ही नदीनों को नियंत्रिण करने की कोशिश करते हैं, जिससे उनका खर्च बढ़ जाता है। कुछ नदीन नाशक जिनमें दोस्त, स्परूस आदि शामिल हैं, बुवाईर् के समय नदीन उगने से पहले इस्तेमाल के लिए सिफारिश किए गए हैं। इन नदीन नाशकों का बुवाई के 72 घंटे के भीतर छिड़काव कर देना चाहिए। बुवाई के समय इन नदीन नाशकों के लिए मिट्टी में अधिक नमी होना ज़रूरी है। बेहतर होगा अगर इन नदीन नाशकों का बुवाई के समय छिड़काव करने के लिए लक्की सीड ड्रिल का इस्तेमाल किया जाए।
कुछ नदीन नाशकों का इस्तेमाल पहली सिंचाई (नदीन उगने के बाद) से पहले करने की भी सिफारिश की गई है। जिन खेतों में आइसोप्रोटयूरान रसायनों के इस्तेमाल से गुल्ली डंडा नहीं मरता हो, वहां इन रसायनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कुछ नदीन नाशक पहली सिंचाई के बाद (नदीन उगने के बाद) जिनमें टॉपिक आदि शामिल हैं, इस्तेमाल करने के लिए सिफारिश किए गए हैं। घास और चौड़े पत्ते वाले नदीनों की एक साथ रोकथाम के लिए ‘टोटल’ और ‘शगुन 21-11’ आदि के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। जहां प्रचलित नदीन नाशकों के साथ गुल्ली डंडा न मरता हो, वहां शगुन 21-11 का इस्तेमाल फायदेमंद होगा। हालांकि उन्नत पी.बी.डब्ल्यू.-550 किस्म और हल्की ज़मीन में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अगर नदीन नाशकों का इस्तेमाल कम करना हो तो हैप्पी सीडर से गेहूं बोने से गुल्ली डंडा की समस्या कम हो जाती है। सर्वपक्षीय नदीन प्रबंधन (हैपी सीडर, नदीन नाशक तथा नदीनों को उखाड़ना) खेत में पड़े नदीनों के बीजों को कम करने में सहायक होता है।
नदीन नाशकों और कीट नाशकों का छिड़काव हमेशा साफ मौसम में और एक समान करना चाहिए। छिड़काव करने के बाद फसल को हल्का पानी लगा देना चाहिए। विशेषज्ञों कहते हैं कि नदीनों में रोधक शक्ति पैदा होने से रोकने के लिए हर साल बदल-बदल कर नदीन नाशकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करनी चाहिए। जो नदीन नाशक पहले इस्तेमाल किया गया हो उसके नतीजे को ध्यान में रख कर ही नदीन नाशक का चयन करना चाहिए। नदीन नाशकों का इस्तेमाल करने के बाद बचे हुए नदीनों के पौधों को हाथ से उखाड़ देना चाहिए। पीएयू से सम्मानित धर्मगढ़ (अमलोह) के प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया के अनुसार जिन किसानों ने लैंड लेज़र लेवलर से खेत को समतल करके गेहूं की बुवाई की है, वहां नदीनों की कुछ हद तक अपने आप रोकथाम हो गई है। अगर गेहूं की बोवाई से पहले धान की जगह कोई अन्य फसल जैसे नरमा, मक्का, गन्ना आदि की बुवाईर् की जाए तो भी गुल्ली डंडा और अन्य नदीनों पर काबू पाया जा सकता है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. जसवंत सिंह का कहना है कि किसानों को हमेशा नदीन नाशक की मात्रा वैज्ञानिकों द्वारा बताए अनुसार इस्तेमाल करनी चाहिए। सिफारिश से कम मात्रा इस्तेमाल करने से नदीनों की रोकथाम अच्छी तरह नहीं होती और ज़्यादा मात्रा में इस्तेमाल करने से गेहूं की फसल को नुकसान हो सकता है। पीएयू विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को अपने तौर पर दो या उससे ज़्यादा नदीन नाशक मिलाकर विशेषज्ञों की सलाह कि बिना इस्तेमाल नहीं करने चाहिए। खड़ी फसल पर इस्तेमाल होने वाले नदीन नाशकों का स्प्रे करने के लिए ‘कट्ट’ वाली नोज़ल का इस्तेमाल करना चाहिए। गोल नोज़ल का इस्तेमाल करने से स्प्रे एक समान नहीं होता और नतीजे भी अच्छे नहीं मिलते। नदीनों के बड़े पौधों में नदीन नाशक को सहन करने की शक्ति बढ़ जाती है और किसानों को नतीजे पूरे नहीं मिलते। इस संबंधी किसानों को पीएयू की सिफारिशों पर कार्यन्वयन करना चाहिए और विभाग के विशेषज्ञों की सलाह से ही छिड़काव करना चाहिए। निदेशक जसवंत सिंह के अनुसार समय का सही चयन नदीन पर काबू पाने के लिए बहुत ज़रूरी है।



