बढ़ते प्रदूषण की चुनौती
विगत कई वर्षों से सितम्बर के मध्य से लेकर 30 नवम्बर तक उत्तरी राज्यों में बड़ी संख्या में खेतों में पराली को आग लगाने को पर्यावरण में पैदा हुए दूषित प्रदूषण के साथ ही जोड़ा जाता रहा है। इस वर्ष इस मामले को लेकर ज्यादातर सन्तोषजनक समाचार मिले हैं। पंजाब में इस मौसम में इस बार पराली को आग लगाने की 5112 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि विगत वर्ष 2024 में मिले विवरण के अनुसार ऐसी घटनाओं की संख्या 10,909 थी। इस बार प्रदेश सरकार ने इस संबंध में अपनी पूरी ताकत लगाई। प्रत्येक पक्ष से ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पूरे यत्न किए। इसीलिए विगत वर्ष के मुकाबले इन घटनाओं में 50 प्रतिशत कमी आई। इस संबंध में 2376 किसानों पर जुर्माने लगाए गए। 1946 किसानों पर मामले दर्ज किए गए। 2000 से अधिक किसानों के रैवेन्यू रिकार्ड पर लाल एंट्री की गई और इस प्रबन्ध की देख-रेख में लापरवाही करने वाले 1512 अधिकारियों पर भी कार्रवाई की गई।
दूसरी तरफ हरियाणा में वर्ष 2025 में आग लगाने की 659 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि विगत वर्ष इनकी संख्या 1406 थी। आगामी समय में यदि संबंधित सरकारें पराली की सम्भाल संबंधी किसानों की सहायता करती हैं तो इस क्रम को पूरी तरह रोका जा सकता है, इसके बावजूद पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में इन दिनों में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है। ज्यादातर स्थानों पर तो यह ़खतरे के नम्बर को पार कर जाती है। उदाहरण के लिए विगत दिवस दिल्ली में हवा की खराबी का आंकड़ा 350 से 400 तक दर्ज किया जाता रहा है। वायु प्रदूषण के बेहद खराब होने के कारण ज्यादातर लोगों को खांसी, थकान और आंखों में जलन जैसी बीमारियां लग जाती हैं, जिससे अधिक संख्या में मानवीय शरीर जर्जर होने के किनारे पहुंच जाते हैं।
देश की सर्वोच्च अदालत में इस संबंध में दायर की गईं याचिकाओं में अदालत ने यहां तक कहा कि उसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो समस्या का तुरंत हल कर सके। इस गम्भीर समस्या के कई कारण हैं। इसका हल इस क्षेत्र के विशेषज्ञ वैज्ञानिक ही बता सकते हैं। बड़े-छोटे शहरों में लगातार होते निर्माण, प्रत्येक किस्म के वाहनों की धड़ाधड़ बिक्री और प्रतिदिन लाखों की संख्या में उनका सड़कों पर उतरना भीड़-भाड़ में तो वृद्धि करता ही है, परन्तु यह हवा में प्रदूषण फैलाने का भी बड़ा कारण बनता है। तरह-तरह की फैक्टरियों से निकलता दूषित धुआं भी हवा में घुल-मिल जाता है। नि:संदेह यह समस्या बेहद गम्भीर है, इसके हल निकाले जाने की ज़रूरत है, परन्तु ऐसे हल ढूंढे जाने ज़रूरी हैं, जो चल रहे जीवन प्रवाह में रुकावट न बनें। इसके लिए प्रत्येक क्षेत्र में एक अनुशासन बनाने की ज़रूरत होगी।
केन्द्र और राज्य सरकार के सामने इस लगातार बढ़ती समस्या के हल के लिए अभी तक प्रश्न-चिन्ह लगा दिखाई देता है, परन्तु किसी भी स्वस्थ समाज के लिए पैदा हुई ऐसी गम्भीर समस्या का हल निकाला जाना बेहद ज़रूरी है। इसमें संदेह नहीं कि यदि वायु प्रदूषण लगातार इसी तरह बढ़ता रहा तो मनुष्य के लिए अपना जीवन ही भार लगने लगेगा। यह भी कि सरकारें जिस सीमा तक भी प्रदूषण को कम करने में सहायक हो सकें, वही उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। देर या सवेर इस समस्या का हल निकालना ज़रूरी है, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

