संसद में हंगामा और मोदी की नसीहत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जानते थे कि हर बार की तरह इस बार भी विपक्ष संसद में हंगामा करने वाला है, इसलिए उन्होंने संसद सत्र के पहले ही दिन विपक्ष पर हमला कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए अपने विचार प्रकट किये। पहले ही यह अंदाज़ा था कि विपक्ष एसआईआर और राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाकर संसद में हंगामा करेगा और ऐसा ही हुआ। उन्होंने विपक्ष को मर्यादित आचरण करने की सलाह देते हुए उस पर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा कि ड्रामा करने की और भी जगहें हैं। जिनको करना है, करते रहे लेकिन यहां ड्रामा नहीं, डिलीवरी होनी चाहिए। नारे लगाने के लिए पूरा देश पड़ा है, जहां पराजित होकर आए हैं, वहां बोल चुके हो। जहां पराजित होने वाले हो, वहां भी बोल दीजिए, लेकिन यहां नारे नहीं, नीतियों पर बल दीजिए। उन्होंने कहा कि संसद देश के लिए क्या सोच रही है, क्या करना चाहती है, यह सत्र इन मुद्दों पर केंद्रित होना चाहिए। उन्होंने विपक्ष को कहा कि उसे अपना दायित्व निभाना चाहिए, संसदीय कार्य पर हार की हताशा का असर नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दुनिया भारत में लोकतंत्र की मज़बूती के साथ-साथ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के भीतर अर्थतंत्र की मज़बूती को बहुत बारीकी से देख रही है। भारत ने सिद्ध कर दिया है कि डेमोक्रेसी डिलीवर कर सकती है। उन्होंने विपक्ष को नसीहत देते हुए कहा कि विपक्ष पराजय की निराशा से बाहर निकल आये। उन्होंने कहा कि एक-दो दल तो ऐसे हैं जो हार को पचा नहीं पाते हैं। उन्होंने विपक्ष पर तंज़ करते हुए कहा कि मैं सोच रहा था कि बिहार के नतीजे को इतना वक्त हो गया है तो अब थोड़ा संभल गए होंगे, लेकिन मैं उनके जो बयान सुन रहा हूँ, उससे लगता है कि पराजय ने उनको परेशान कर रखा है। उन्होंने कहा कि राजनीति में नकारात्मकता कुछ काम आती होगी, लेकिन राष्ट्र निर्माण के लिए कुछ सकारात्मक सोच भी होनी चाहिए। नकारात्मकता को अपनी मर्यादा में रख कर राष्ट्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने सभी दलों से अनुरोध किया कि शीतकालीन सत्र को पराजय की बौखलाहट का मैदान नहीं बनना चाहिए। उन्होंने राजग के सांसदों को नसीहत देते हुए कहा कि यह सत्र विजय के अहंकार में परिवर्तित नहीं होना चाहिए।
जैसे कि पहले आशंका थी कि एसआईआर के मुद्दे पर शीतकालीन सत्र में माहौल गर्म रहेगा, वैसा ही संसद सत्र के पहले दिन देखने को मिला हालांकि सरकार ने इस मुद्दे पर विपक्ष की बहस करने की मांग मान ली है, इसलिए अभी कुछ शांति दिखाई दे रही है। संसद सत्र शुरू होने से एक दिन पहले सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें विपक्ष के तीखे तेवर देखने को मिले थे। बैठक में संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि मतभेद लोकतंत्र का आधार है, लेकिन सदन की गरिमा बनाए रखना सभी दलों की साझा ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि बहस से बचने का सवाल नहीं है, लेकिन संसद चलने में बाधा नहीं आनी चाहिए। सर्वदलीय बैठक में विपक्ष की ओर से जो कुछ कहा गया, उससे ही पता चल गया था कि एसआईआर के मुद्दे को विपक्ष जोर-शोर से उठाएगा। विपक्ष को कोई भी मुद्दा उठाने का अधिकार है, लेकिन सवाल यह है कि वह एसआईआर के मुद्दे पर क्या जानना चाहता है। यह प्रक्रिया सरकार द्वारा संचालित नहीं है, बल्कि इसे चुनाव आयोग संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तरह करवा रहा है । समस्या यह नहीं है कि विपक्ष एसआईआर को लेकर सवाल उठा रहा है, बल्कि समस्या यह है कि विपक्ष चाहता है कि चुनाव आयोग अपने संवैधानिक कर्त्तव्य का पालन न करे और इस प्रक्रिया को तत्काल बंद कर दे। इसी मांग को लेकर विपक्ष सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है, लेकिन माननीय अदालत ने उसकी मांग ठुकरा दी है।
22 साल बाद मतदाता सूची में ऐसे करोड़ों लोगों के नाम दर्ज हैं, जो मर चुके हैं या अन्यत्र जा चुके हैं। इसके अलावा भी मतदाता सूची में बड़ी गड़बड़ियां हैं, जिन्हें लेकर राहुल गांधी तीन प्रैस कांफ्रैसें भी कर चुके हैं। लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके नाम मतदाता सूची में एक से ज्यादा जगहों पर दर्ज हैं। इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए एसआईआर की बहुत ज़रूरत है । अजीब बात है कि विपक्ष भाजपा पर इन गड़बड़ियों का फायदा उठाने का आरोप लगाता है और दूसरी तरफ इन गड़बड़ियों को ठीक करने की कवायद एसआईआर का विरोध भी करता है। इसका दूसरा मतलब है कि विपक्ष ही इन गड़बड़़ियों का फायदा उठाकर वोट चोरी कर रहा है, इसलिए वह नहीं चाहता कि एसआईआर द्वारा इन गड़बड़ियों को ठीक किया जाए। अगर एसआईआर के विरोध की कोई और वजह है तो विपक्ष को देश के सामने रखनी चाहिए ।
पहले विपक्ष बिहार में एसआईआर का विरोध कर चुका है और अब 12 राज्यों में भी इस प्रक्रिया का विरोध किया जा रहा है जबकि विपक्ष जानता है कि वह इस प्रक्रिया को नहीं रूकवा सकता। एसआईआर पर चर्चा करके विपक्ष क्या हासिल करना चाहता है, उसे बताना चाहिए क्योंकि सरकार इस चर्चा का जवाब नहीं दे सकती। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो सरकार के अधीन काम नहीं करती है। (अदिति)



