डा. भीम राव अम्बेडकर : मज़दूर नेता से राष्ट्र निर्माता तक

हमने एक महान शख्सियत और अधुनिक मानवीय समाज को दिशा-निर्धारित करने वाले प्रगतिशील उपायों के संस्थापक बाबा साहिब डा. भीम राव अम्बेडकर का 70वां महापरिनिर्वाण दिवस मनाया है। एक वकील, अर्थशास्त्री, दार्शनिक, समाज सुधारक और सबसे अधिक एक राष्ट्र निर्माता के तौर पर उनकी अथक कोशिशों ने आधुनिक भारत की नींव रखी। उन्होंने न सिर्फ भारत का संविधान का ड्राफ्ट, बल्कि एक ऐसा समावेशी और सशक्त राष्ट्र का ब्लूप्रिंट भी पेश किया, जहां प्रत्येक नागरिक के सम्मान की रक्षा हो और सभी को सम्मान के अवसर प्राप्त हों। इन आधारभूत नैतिक-मूल्यों से प्रेरित होकर मोदी सरकार ने सार्वजनिक कल्याण तथा सुशासन को उत्साहित करने वाली कई पहलकदमियां की हैं।
27 नवम्बर, 2025 को पूरी दुनिया ने भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर पेरिस में यूनेस्को मुख्यालय में बाबा साहेब की मूर्ति का अनावरण देखा। दुनिया भर के गणमान्यों के सामने यह मूर्ति न सिर्फ भारत के एक नेता के प्रति श्रद्धांजलि के तौर पर, बल्कि न्याय के एक वैश्विक प्रतीक के तौर पर भी खड़ी है। पट्टिका पर लिखा है ‘भारतीय संविधान के शिल्पकार’, फिर भी ये शब्द उस शख्स की विरासत को पूरी तरह से बयान नहीं कर पाते, जिसने न केवल भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया, बल्कि पूरे राष्ट्र को रूप देने में भी मदद की। अपने पूरे जीवन में बाबा साहेब ने मज़दूरों के अधिकारों और उनकी भलाई की वकालत करते हुए न्याय के लिए संघर्ष किया। राउंड टेबल कॉन्फ्रैंस में दलित वर्गों के प्रतिनिधि के तौर पर उन्होंने मज़दूरी, काम करने के अच्छे हालात और प्रताड़ित लोगों को प्रभावित करने वाली सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की ज़ोरदार वकालत की। उन्होंने स्वयं मज़दूरों और दलितों की तकलीफ देखी थी।
उन्होंने आम लोगों को एकजुट किया और 1936 में भूमिहीन, गरीब किराएदारों, किसानों और मज़दूरों की भलाई के लिए एक व्यापक कार्यक्रम के साथ इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। 17 सितम्बर, 1937 को बम्बई विधानसभा के पुणे सत्र के दौरान उन्होंने कोंकण में ‘खोटी’ जमीन कार्य प्रणाली को खत्म करने के लिए एक बिल पेश किया। 1938 में उन्होंने बम्बई के काउंसिल हॉल तक किसानों के मार्च का नेतृत्व किया और किसानों, मज़दूरों और भूमिहीनों के एक बड़े नेता बन गए। वह पहले भारतीय विधायक थे, जिन्होंने खेतिहर किराएदारों की बंधुआ मज़दूरी खत्म करने के लिए बिल पेश किया था। उन्होंने औद्योगिक विकास बिल 1937 का भी कड़ा विरोध किया था, क्योंकि यह मज़दूरों के हड़ताल करने के अधिकार में  कटौती करता था। 
डॉ. अम्बेडकर ने कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाले मजदूर आंदोलन का विरोध किया था। उन्होंने उत्पादन के सभी तरीकों को नियंत्रित करने के मार्क्स के तानाशाही नज़रिए को खारिज कर दिया। वह मार्क्स के इस विचार से सहमत नहीं थे कि निजी सम्पत्ति खत्म करने से गरीबी और दुख खत्म हो जाएंगे। अपने लेख ‘बुद्ध या कार्ल मार्क्स’ में वह लिखते हैं, ‘क्या कम्युनिस्ट यह कह सकते हैं कि अपने कीमती उद्देश्यों को पाने के लिए उन्होंने अन्य कीमती उद्देश्यों को खत्म नहीं किया है? उन्होंने निजी सम्पत्ति को खत्म कर दिया है। यह मानते हुए कि यह एक कीमती उद्देश्य है। अपने उद्देश्य को पाने के लिए उन्होंने कितने लोगों को मारा है। क्या इंसानी जीवन  की कोई कीमत नहीं? क्या वह मालिक की जान लिए बिना सम्मत्ति नहीं ले सकते थे?’ संविधान का खाका तैयार करते समय डॉ. अम्बेडकर ने कानून में एकरूपता और अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के हिसाब से लेबर को समकालीन सूची में रखा। उनकी दूरांदेशी सोच ने संविधान में बंधुआ मजदूरी को गैर-कानूनी बनाकर इसे खत्म कर दिया। 
हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए गए ‘सुधार, प्रदर्शन तथा बदलाव के मंत्र से प्रेरित होकर तथा डॉ.अम्बेडकर के नैतिक-मूल्यों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार ने चार बड़े लेबर कोड लागू किए हैं—वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण एवं व्यवसोन्मुख सुरक्षा, हेल्थ और काम करने की स्थितियां लागू की हैं। इन सुधारों का उद्देश्य सर्वव्यापी सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना, मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करना, उत्पादन बढ़ाना, नौकरियां पैदा करना और साल 2047 तक ‘विकसित भारत’ की दिशा में भारत की आर्थिक खुशहाली को मजबूत करना है। ‘श्रमेव जयते’ की स्थायी भावना से प्रेरित होकर हम राष्ट्र निर्माण में मज़दूरों के व्यापक योगदान का सम्मान करते हैं। पूज्य बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस हमें इस महान राष्ट्र निर्माता के दृष्टिकोण और कार्यों पर विचार करने का एक उचित अवसर देता है। उनके आदर्श हमेशा हमें राष्ट्र की विकास की यात्रा को तेज़ करने और साल 2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए हमेशा प्रेरित करेंगे।

(केंद्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
और मंत्री संसदीय मामले मंत्री भारत सरकार)

 

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