सड़क हादसों की बढ़ती संख्या

देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं और इनमें होने वाले हताहतों की संख्या में एकाएक हुई भारी वृद्धि ने पूरे राष्ट्र के मानवतावादी लोगों को एक बार फिर चौंकाया है। इस स्थिति का एक त्रासद पक्ष यह है कि देश में जैसे-जैसे सड़कों की लम्बाई-चौड़ाई बढ़ी है, उसी अनुपात से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि होती चली गई है। इसका एक बड़ा कारण देश में सड़क वाहनों की संख्या में हुई अथाह वृद्धि को भी माना जा सकता है। सड़क वाहनों के नये-नये आविष्कारों और इनमें उन्नत सुधारों ने भी सड़क दुर्घटनाओं को बढ़ाने में मदद की है। इसका एक बड़ा प्रमाण केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा संसद में दिए गए वक्तव्य से लिया जा सकता है। उन्होंने सदन में बताया कि विगत वर्ष 2024 में सड़क दुर्घटनाओं में 1.77 लाख लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा इससे पूर्व के वर्ष 2023 से 2.33 प्रतिशत अधिक है। इस अनुपात से प्रतिदिन 485 लोगों की सड़क-दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। इस सम्पूर्ण त्रासदी का एक थोड़ा सुकून देने वाला पक्ष यह है कि उन्होंने आगामी पांच वर्ष तक इन हादसात और इनमें होने वाले हताहतों की संख्या 50 प्रतिशत तक कम करने का भी दावा भी किया है। नि:संदेह देश और प्रदेशों की सरकारें सड़क हादसात और उनमें हताहत होने वालों की संख्या में कमी लाने हेतु यत्न करती रहती हैं, किन्तु वाहनों की बढ़ती गति के कारण समस्या का अधिक निदान नहीं हो पाता।
विश्व में मनुष्य ने जैसे-जैसे उन्नति और प्रगति का स्वाद चखा, विकास के नये-नये द्वार खुलने शुरू हो गये। भारत में भी विकास का रथ बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ा, और इसी क्रम में देश में सड़कों का एक व्यापक जाल बिछता चला गया। सड़कों के इस जाल का बिछाया जाना असल में सड़क-वाहनों के नये-नये आविष्कारों के दृष्टिगत, बसों, ट्रकों और कारों तथा दो-पहिया वाहनों की संख्या में हुए अथाह इज़ाफे के समुचित प्रबन्धन को सुव्यवस्थित करने की बड़ी आवश्यकता का परिणाम था। सड़कों के इस जाल में विस्तार होना इसलिए लाज़िमी हो गया था क्योंकि समृद्ध होते देश में सड़क-वाहनों की संख्या एकाएक अपेक्षा से अधिक बढ़ गई थी।
बहुत स्वाभाविक है कि दुर्घटनाएं होंगी, तो उसी के दृष्टिगत इनमें हताहत होने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। प्राय: सामने आया है कि हताहत होने वालों में अधिकतर ़गरीब और मध्यम-वर्गीय लोग होते हैं। अक्सर सड़क-दुर्घटनाओं के बाद वाहनों के चालक मौका-ए-वारदात से फरार हो जाते हैं जिस कारण हताहत होने वालों की पीड़ा और परेशानी और बढ़ जाती है। इसका दायित्व सीधे सरकारों पर आ जाता है। वैसे भी, लोकतांत्रिक देश की सरकारों के सिर पर कुछ ज़िम्मेदारियां स्वत: आयद हो जाती हैं। इस ज़िम्मेदारी के तहत केन्द्र तथा राज्य सरकारों की ओर से दुर्घटनाओं के पीड़ितों को इलाज-उपचार हेतु कुछ वित्तीय सहायता सभी देशों में दी जाती है। बेशक वाहनों के लिए बीमा की अलग व्यवस्था होती है, जिसका इल्म वाहन-मालिकों अथवा चालकों को होता है, किन्तु ऐसा पाया गया है कि सरकारों की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि और इस संबंधी नियम-व्यवस्था से अधिकतर लोग अनजान और ब़ेखबर होते हैं। इस व्यवस्था के अनुसार सड़क हादसे में किसी की जान चली जाने पर उसके अभिभावकों को दो लाख रुपए का और घायल होने पर 50,000 रुपये का सरकारी मुआविजा दिया जाता है। यह प्रावधान किसी सीमा तक पहले भी था, किन्तु 2022 से यह तथ्य सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश के तहत अवश्यम्भावी हो गया है। इस धरातल पर पंजाब सरकार का एक निर्णय सड़क हादसों में हताहत होने वालों के लिए अच्छा सिद्ध हो सकता है। पंजाब में वर्ष 2022 में सड़क हादसों में 4,589 लोगों की जान गई, और इतने ही लोग घायल हुए थे। इस तथ्य का एक निराशाजनक पक्ष यह पाया गया है कि पंजाब के लोग इस प्रावधान से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं। इस स्थिति का अनुमान इस एक जानकारी से भी लगाया जा सकता है कि  पंजाब में वर्ष 2022 और 2023 केवल दो ही वर्षों में हुए सड़क हादसों के बाद मुआविज़ा-दावों के 3300 केस अभी तक लम्बित पड़े हैं।
बड़ी अच्छी बात है कि एक ओर जहां नितिन गडकरी ने सड़क दुर्घटनाओं में यथा-शीघ्र कमी लाने की घोषणा की है, वहीं पंजाब की सरकार द्वारा इस संबंध में आम लोगों को जागरूक एवं जानकार करने की व्यवस्था हेतु विशेष कैम्पों का आयोजन किया जा रहा है। सरकार ने इस संबंध में पेंडिंग में पड़े सभी बकाया दावों को 2026 तक निपटा देने का कार्यक्रम भी बनाया है। इस हेतु पंजाब के सभी ज़िलों के एस.डी.एम. की ड्यूटी लगाई गई है। एक दिसम्बर से 24 दिसम्बर तक पंजाब के जालन्धर, लुधियाना, अमृतसर, गुरदासपुर और पठानकोस जैसे 23 शहरों में ऐसे कैम्प लगाये जाएंगे। हम समझते हैं कि सरकारों का इस संबंध में जागरूक होना नि:संदेह एक अच्छा और स्तुत्य प्रयास है। इससे जहां देश में सड़क हादसात में कमी लाने में सहायता मिलेगी, वहीं लोगों की इस संबंधी समस्याओं और पीड़ाओं को कम करने में मदद मिलेगी। केन्द्र और प्रदेश सरकारों को सड़क हादसात और उनमें हताहत होने वालों की संख्या को यथा-शक्ति कम करने और फिर पीड़ितों को मुआविजा जैसी राहतें शीघ्र पहुंचाने का भरसक यत्न करना चाहिए। इससे प्रभावित होने वाले लोगों की पीड़ाओं को कम करने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी।

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