कृषि में सुधार लाने की आवश्यकता

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी ज़्यादातर आबादी गांवों में रहती है। गांवों की आर्थिकता कृषि पर आधारित है जहां ज़्यादा गरीबी है। सरकार कुछ वर्गों के गरीब लोगों को मुफ्त राशन दे रही है जिसमें चावल और गेहूं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त यह अनाज कई वर्गों के लोगों को रियायती दरों पर भी उपलब्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई योजना के तहत छोटे और मध्यम किसानों को भी आर्थिक मदद दी जा रही है। गेहूं और चावल का बफर स्टॉक तय मात्रा से ज़्यादा पड़ा है। गेहूं और धान की पैदावार बढ़ रही है। इसके बावजूद आबादी का लगभग 10वां हिस्सा बहुत गरीब है, जिन्हें दो वक्त का भोजन भी नहीं मिलता। ऐसी आबादी के ज़्यादातर गरीब लोग गांवों में रहते हैं।
लगभग 49 प्रतिशत लोग कृषि करते हैं जबकि 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 70 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि में लगी हुई थी। आर्थिक रूप से अभी भी अलग-अलग राज्यों में 60-70 प्रतिशत से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं। कृषि की जो विकास दर गिरी है, वह चिंता का विषय है। आज़ादी के समय सालाना सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में कृषि का योगदान 54 प्रतिशत था। जो अब कम होकर 17-18 प्रतिशत से भी कम है। ज़्यादातर किसानों के पास छोटे खेत हैं। लगभग 80-85 प्रतिशत कृषकों के पास 5 एकड़ से कम खेत हैं, क्योंकि इन छोटे खेतों से होने वाली आय से किसानों का गुज़ारा नहीं होता, इसलिए उनमें से बड़ी संख्या में वे कज़र्दार हैं। पंजाब जैसे कृषि में विकसित राज्य में भारी संख्या में किसान कज़र्दार हो गए हैं। खर्च बढ़ गया है, उपज की कीमतें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक नहीं होने से ज़्यादातर किसानों को नुकसान हो रहा है और वे अपनी रोज़ी-रोटी और कृषि का काम चलाने के लिए कज़र् लेने को मजबूर हैं। इस साल बाढ़, बारिश और धान की फसल को आई बीमारियों की वजह से किसानों को और ज़्यादा नुकसान हुआ है। उनमें से कई तो अधिकतर किसान गेहूं की काश्त के लिए प्रमाणित किस्म के बीज भी नहीं खरीद पाए। किसानों के युवा बेटे कृषि का काम छोड़ रहे हैं। भारत में उनकी मज़र्ी की नौकरी न मिलने की वजह से वे खुशहाल बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए विदेश भाग रहे हैं। कृषि अब मज़दूरों पर ज़्यादा निर्भर होती जा रही है।
किसानों को मंडियों में अपनी फसल का पूरा दाम नहीं मिलता। जिन फसलों पर एमएसपी है, उन पर भी एमएसपी दर पर फसल बेचने पर आय नहीं होती। आलू उत्पादक भी इस साल घाटे में हैं। उन्हें पिछले साल के मुकाबले अपनी फसल का आधा दाम भी नहीं मिल रहा। पंजाब में इस साल कई धान उत्पादकों को अपनी फसल एमएसपी से कम दाम पर बेचनी पड़ी। इस तरह वे घाटे में हैं। बीमारियों, बाढ़, बारिश की वजह से उनका दवाइयों के छिड़काव, कृषि सामग्री और मज़दूरी पर अधिक खर्च आया है। बासमती उत्पादक भी मंदी से बहुत निराश हैं। पिछले साल उन्हें पूसा बासमती-1121 के लिए 4600-4800 रुपये प्रति क्ंिवटल दाम मिला था, जो इस साल कम होकर 3400-3600 रुपये रह गया। बासमती की दूसरी किस्मों का दाम भी 3200-3300 रुपये से कम होकर 2400-2600 रुपये हो गया है।
चावल विश्व की दो-तिहाई आबादी का भोजन है। कृषि के वातावरण में तपिश बढ़ने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए अनुमान के कारण भविष्य में फसल प्रभावित होने की सम्भावना है।  विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से चावल का उत्पादन 10 प्रतिशत कम हो जाएगा। भविष्य में यदि तापमान में वृद्धि हुई तो भारतीय किसानों पर भी इसका असर पड़ेगा। धान-गेहूं के फसल चक्र में बदलाव लाने की ज़रूरत है। इसके लिए अनुसंधान के माध्यम से किसानों को दूसरी फसलों का ऐसा विकल्प मिलना चाहिए जिनका मुनाफा धान-गेहूं के फसल चक्र के समान हो। इससे कम होते भू-जल स्तर की समस्या पर भी नियंत्रण होगा। बासमती एक ऐसी फसल है जिसमें धान से कम पानी की ज़रूरत होती है। इसका रकबा बढ़ाने के लिए इसका एमएसपी तय किया जाना चाहिए और इसका निर्यात बढ़ाया जाए।
पंजाब में फसली विभिन्नता संबंधी कोई विशेष सफलता नहीं मिली। अनुसंधान से पशुपालन, बागवानीव सब्ज़ियों, फलों की खेती और तिलहन वगैरह में ज़्यादा पैदावार वाली किस्में विकसित की जानी चाहिए, जिनका मुनाफा खरीफ के मौसम में कम से कम धान जितना हो। इससे पानी भी बचेगा। भविष्य में दरपेश समस्याओं को हल करने के लिए पानी की बचत पर भी विशेष ध्यान देना ज़रूरी है। किसानों द्वारा कृषि सामग्री जैसे यूरिया, डीएपी, पोटाश खादों तथा कीटनाश्कों को इस्तेमाल संबंधी पीएयू के विशेषज्ञों की सिफारिशें मनवाने के लिए अभियान चलाया जाए। इस समय किसान अपनी फसलों में बताई गई मात्रा से ज़्यादा कृषि सामग्री डाल रहे हैं। इससे ज़मीन की उपजाऊ शक्ति पर असर पड़ता है और उनका खर्च बढ़ता है। खेती का भविष्य बनाने, पूरी आबादी को दो वक्त की रोटी देने और किसानों की हालत सुधार लाने के लिए ऊपर बताए गए कदम उठाने की ज़़रूरत है।  

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