सशक्त भारत चाहिए तो तोड़नी होगी भ्रष्टाचार की कमर

इसमें दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार किसी भी राष्ट्र की प्रगति में एक ऐसा बड़ा अवरोध है जो न केवल विकास गति को धीमा करता है, अपितु सामाजिक असमानता भी बढ़ाता है और शासन एवं शासकों के प्रति जनविश्वास को भी कमज़ोर करता है।  विश्व गुरु होने का दावा करने वाले भारत के बारे में आलोचक हल्के-फुल्के ढंग से एक बात कहते अक्सर देखे जाते हैं, ‘सौ में से अस्सी बेईमान, फिर भी मेरा देश महान’ जो आज के परिप्रेक्ष्य में गलत भी नहीं कहा जा सकता। 
यदि निष्पक्ष रूप से विचार किया जाए तो इस देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन यथार्थ के धरातल पर कार्य बहुत कम ही होता हुआ दिखाई देता है। 2014 में ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ की शपथ लेकर सत्ता में आने वाले नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भी भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से नकेल नहीं कसी जा सकी।  कह सकते हैं कि जैसा विकास अन्य क्षेत्रों में हुआ है, वैसा ही भ्रष्टाचार में भी होता प्रतीत होता है। प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाले भ्रष्टाचार-विरोधी दिवस का उद्देश्य केवल भ्रष्टाचार-विरोधी कागज़ी औपचारिक संकल्प दोहराना नहीं होना चाहिए, बल्कि यथार्थ के धरातल पर भी  व्यवस्था के भ्रष्टाचार के लिए ज़िम्मेदार पहलुओं को समझना, भ्रष्टाचार रोकने के लिए समुचित कदम उठाना एवं उसकी राह में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने की समुचित व्यवस्था करना होना चाहिए, जहां सुधार आवश्यक है। यदि पिछले 10 वर्ष के सीपीआई यानी अंतर्राष्ट्रीय क्रप्शन परसेप्शन इंडेक्स पर दृष्टिपात करें तो भारत की स्थिति लगभग जैसी की तैसी है और अभी भी भारत इस इंडेक्स में 41 अंकों के साथ विश्व के देशों में 93वें स्थान पर है। 2014 से पहले के कुछ वर्षों में उसके 38 अंक थे यानी कहा जा सकता है कि राजनीतिक जुमलेबाज़ी अलग बात है, मगर धरातल पर भ्रष्टाचार को हटाना एक अलग बात सिद्ध हो रही है। कितना अच्छा हो कि ‘संकल्प से सिद्धि’ के ध्येय वाक्य को लेकर चलने वाली सरकार कुछ ऐसा करे कि देश से भ्रष्टाचार का पौधा धीरे-धीरे जड़ से खत्म हो जाए।
नि:संदेह आज भारत विश्व की उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं में शुमार है, परंतु भ्रष्टाचार का दंश भी गहरा दिखाई देता है। सरकारी सेवाओं में देरी, सार्वजनिक योजनाओं में लीकेज, ठेकों में अनियमितता तथा स्थानीय स्तर पर रिश्वत, राजनीतिक पक्षपात, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग, पक्षपात पूर्ण प्रताड़ना या छूट जैसे मामलों से जनता प्रतिदिन दो-चार होती है। भ्रष्टाचार की समस्या केवल प्रशासनिक मात्र नहीं, सामाज और मानसिकता से जुड़ी भी है। जब तक शासकीय संस्थाओं के साथ-साथ समाज का कोई वर्ग अनुशासन, ईमानदारी और जवाबदेही को अपनी मूल प्रवृत्ति नहीं बनाएगा, तब तक व्यापक सुधार संभव नहीं। मगर आज तो आम आदमी भी नियमों के अनुसार काम करवाने के बजाय कुछ ले-देकर तुरंत काम करवाने की प्रवृत्ति पर आगे बढ़ रहा है। ऐसा करना उसकी मज़बूरी भी है और नियति भी।  भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों का यदि विवेचन किया जाए तो कई प्रमुख कारण उभर कर सामने आते हैं जिनमें जवाबदेही की कमी, मुख्य सरकारी विभागों में कार्यों की निगरानी और ज़िम्मेदारी स्पष्ट नहीं होने के कारण गड़बड़ियां बढ़ती हैं। लंबी एवं जटिल प्रक्रिया और धीमी प्रशासनिक व्यवस्था भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। कोढ़ में खाज का काम करता है राजनीतिक संरक्षण। राजनीतिक दबाव और संरक्षण भ्रष्टाचार को अंदर-बाहर से ताकत प्रदान करते हैं।
सूचना व जागरूकता की कमी भी भ्रष्टाचार को रोकने में एक बाधा है। जब जनता को अपने अधिकारों, योजनाओं और प्रक्रियाओं की सही जानकारी नहीं होती, तब भी भ्रष्टाचार  पनपता है। कठोर दंड का अभाव और समयबद्ध दंड न मिलना इस समस्या को और विकराल बनाता है। ये तो केवल कुछ ही कारण हैं। भ्रष्टाचार बढ़ने के पीछे अनेक ऐसे कारण भी हैं जिन पर नज़र जाना भी मुश्किल है क्योंकि भ्रष्टाचार  में लिप्त शासक, प्रशासक एवं कर्मचारी तथा बिचौलिए ऐसी तरकीबें ढूंढ लेते हैं कि उन्हें पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो जाता है। 
पारदर्शिता लोकतंत्र की आधारशिला है और भ्रष्टाचार  पर अंकुश तभी लगेगा जब नागरिक शिकायत करने में भयमुक्त हों, अधिकारी पूर्णतया जवाबदेह हों और तंत्र निष्पक्ष होकर कार्य करे। सरकारी तंत्र में सुधार के साथ-साथ नागरिक, समाज, मीडिया, स्कूल-कॉलेज और निजी क्षेत्र भी अपनी ज़िम्मेदारी को समझें और ईमानदारी के नैतिक-मूल्यों को बढ़ावा दें तो भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।  इसके लिए ज़रूरी है कि ई-गवर्नेंस का विस्तार हो। सरकारी कामकाज को पूरी तरह डिजिटल करने से मानवीय हस्तक्षेप कम होगा और रिश्वत व अनियमितता पर नियंत्रण होगा। ऑनलाइन फाइल ट्रैकिंग, डिजिटल भुगतान और रियल-टाइम मॉनिटरिंग को तेज़ी से लागू करने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वालों को कानूनी और प्रशासनिक सुरक्षा प्रदान करना सबसे महत्वपूर्ण है यदि लोग निर्भय होकर आवाज़ उठाएंगे तो भ्रष्टाचार पर स्वत: अंकुश लगेगा।  स्वतंत्र और सक्षम जांच प्रणाली भी भ्रष्टाचार  की कमर तोड़ने में सहायक सिद्ध होगी। भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच तेज़, तकनीक-आधारित और राजनीतिक दबाव से मुक्त हो। समयबद्ध जांच और समयबद्ध फैसला भ्रष्टाचार को कम करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। इससे भी ज़रूरी है कि शिक्षा में नैतिक-मूल्यों का समावेश किया जाए। भविष्य की पीढ़ी यदि ईमानदारी और पारदर्शिता को मूल्य के रूप में अपनाएगी तो समाज स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार -मुक्त दिशा में आगे बढ़ेगा।  जनता की सहभागिता एवं सक्रियता के बगैर भ्रष्टाचार  को किसी भी हाल में नहीं हटाया जा सकता है। इसलिए जनता को शिकायत प्रबंधन पोर्टल, सूचना का अधिकार, तथा सामाजिक ऑडिट जैसे उपकरणों का उपयोग सीखना बहुत ज़रूरी है और इन सबसे बढ़ कर ज़रूरी है धरातल पर राजनीतिक सुधार।
भ्रष्टाचार केवल कानून का उल्लंघन मात्र नहीं, राष्ट्र की आत्मा को चोट पहुंचाने वाली प्रवृत्ति है। जब तक जनता, सरकार, प्रशासन, मीडिया और नागरिक इससे लड़ने का सामूहिक संकल्प नहीं लेते, तब तक किसी सुधार की पूर्ण सफलता संभव नहीं। भविष्य का भारत तभी मज़बूत बनेगा जब हर स्तर पर पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी सर्वोच्च मूल्य बन जाएं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई केवल अभियानों या कागज़ों में नहीं, अपितु वास्तव में लड़ी जाए तभी भारत भ्रष्टाचार-मुक्त और सशक्त बन सकेगा। (युवराज)

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