पंडित नेहरू की आलोचना
बंगाल के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चटर्जी ने ब्रिटिश शासन के समय वर्ष 1870 में ‘वंदे मातरम्’ नामक एक गीत लिखा था और बाद में उन्होंने बंगाली में लिखे इस गीत को अपने प्रसिद्ध नावल ‘आनंद मठ’ में वर्ष 1882 में शामिल किया था। 1857 के ़गदर के बाद भारतीयों के मन में अंग्रेज़ों के प्रति बेहद रोष था। भारतीय इसका इज़हार किसी न किसी तरह करते रहते थे। वंदे मातरम् में भारत को माता के रूप में चित्रण करके इसकी स्वतंत्रता की बात आरम्भ की गई थी। आज़ादी के प्रति बढ़ती जागरूकता के प्रति यह गीत लोगों में बेहद लोकप्रिय हुआ। कांग्रेस उस समय चेतन रूप में संगठित हो रही थी। इसलिए यह गीत भी उसके सम्मेलनों में गाया जाने लगा था। आनंद मठ उपन्यास में एक भावुक मां को समर्पित साधुओं के संगठन ने गुप्त रूप में लोगों में आज़ादी के लिए चेतना पैदा करने के लिए उन्हें संगठित किया था और वे वंदे मातरम् को लोगों में विचरण करते हुए पूरी धुन में गाया करते थे। इस तरह भारत की आज़ादी के संघर्ष में यह गीत बेहद लोकप्रिय हो चुका था। महाकवि रविन्द्र नाथ टैगोर ने भी वर्ष 1896 के कलकत्ता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में यह गीत गाया था।
देश की आज़ादी के बाद जहां टैगोर का लिखा हुआ लम्बा गीत ‘जन गण मन’ संक्षिप्त रूप में सम्पादित करके इसे राष्ट्र-गान का स्थान दिया गया, वहीं महात्मा गांधी ने वंदे मातरम् गीत के पहले दो पैराग्राफ को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिलाने का समर्थन किया। इसके साथ ही पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, डा. बी.आर. अम्बेदकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि नेताओं ने भी इन पहले दो पैराग्राफ को ही राष्ट्रीय गीत बनाने का समर्थन किया। देश की आज़ादी के बाद वर्ष 1950 में डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान निर्माण असैम्बली द्वारा इस गीत को राष्ट्रीय गीत का दर्जा देने की घोषणा की। आज जबकि इस गीत को लिखे 150 वर्ष हो गए हैं और सरकार द्वारा इस वर्षगांठ को देश भर में मनाया जा रहा है, तो उस समय भारतीय जनता पार्टी द्वारा इसे और रंगत देकर प्रचार करने के यत्न से इस गीत की गरिमा ज़रूर आहत हुई है। वंदे मातरम् गीत की 150वीं वर्षगांठ संबंधी संसद के चल रहे अधिवेशन में भी बहस करवाने का प्रबन्ध किया गया।
इस संबंध में लोकसभा में बहस शुरू करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस गीत के ऐतिहासिक महत्त्व की बात की। उस समय लोगों पर इसके प्रभाव को भी उजागर किया परन्तु इसके साथ ही श्री मोदी की ओर से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सार्वजनिक रूप में यह कह कर आलोचना की गई कि उन्होंने इस गीत के पिछले भाग को काट दिया था। ऐसा उन्होंने आज़ादी के चल रहे संघर्ष के दौरान किया, जिसके बाद मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग को और भी उत्साह मिला, जिस कारण देश का विभाजन हुआ। इस तरह से श्री मोदी ने इस गीत को काटने और देश के विभाजन का ठीकरा पंडित जवाहर लाल नेहरू पर फोड़ा। जहां तक जवाहर लाल नेहरू का संबंध है, वह देश के ऐसे महान नेता थे, जिन्होंने देश को आज़ाद करवाने के संघर्ष में अपना अहम योगदान डाला था। इसलिए वह लम्बी अवधि तक भिन्न-भिन्न समयों में जेलों में भी रहे थे। आज़ादी के बाद संविधान निर्माण सभा में भी पंडित जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में वह देश को आधुनिक मार्ग पर चलाने में सहायक हुए थे और लम्बी अवधि तक उन्होंने देश का शासन भी चलाया था। देश को सही अर्थों में लोकतांत्रिक मार्ग पर चलाने के लिए उनका बड़ा योगदान रहा है।
हम महसूस करते हैं कि उन्होंने और उनके साथियों ने संविधान के अनुसरणीय होकर देश को एक मज़बूती दी थी। यदि आज भी इस क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले में भारत एक शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश बना हुआ है, तो इसके लिए पंडित जी के योगदान भुलाया नहीं जा सकता। लम्बी अवधि सरकार चलाते हुए कई कमियां ज़रूर रह जाती हैं परन्तु उनकी नीयत पर कभी भी संदेह प्रकट नहीं किया गया। वह स्वयं धार्मिक व्यक्ति नहीं थे परन्तु सभी धर्मों के लोगों के प्रति उनका सम्मान एक समान था। उन्होंने कभी साम्प्रदायिक भावनाओं को उत्साहित नहीं किया था। यह भी कि यदि वंदे मातरम् गीत को इस रूप में राष्ट्रीय गीत माना गया है तो यह अकेले पंडित जी का काम नहीं था। इसमें उस समय के सभी प्रसिद्ध नेताओं की सहमति शामिल थी। जहां तक देश के विभाजन की बात है, उसके संबंध में अब तक अनेक तरह के विस्तार सामने आ चुके हैं। अंग्रेज़ों की इसमें क्या चाल थी तथा जिन्ना और मुस्लिम लीग का उनके साथ क्या संबंध था, इस संबंधी इतिहासकार आने वाले समय में भी जवाब ढूंढने के यत्न जारी रख सकते हैं, परन्तु उस समय के प्रत्येग वर्ग और धर्म के राष्ट्रीय नेताओं ने इस विभाजन को रोकने का पूरा यत्न किया था। हमें उस समय के अनुसार इन नेताओं की सीमाओं का भी एहसास है। आज विभाजन के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू को दोषी ठहराना उस राष्ट्रीय नेता के साथ बड़ा अन्याय है। पंडित जी की कोई और कमज़ोरियां हो सकती हैं परन्तु उन्होंने देश को साम्प्रदायिक मार्ग पर बांटने का हमेशा विरोध किया था। नि:संदेह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आज देश में एक बड़ी शक्ति बन कर उभरा है परन्तु इस संगठन का देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में क्या योगदान है, यह प्रत्येक जन जानता है। इसके मुकाबले महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इस संघर्ष में अपना कितना योगदान डाला, यह बात भी किसी से छुपी नहीं।
हम यह समझते हैं कि आज देश को किसी भी तरह के साम्प्रदायिक मार्ग पर चलाने का यत्न बड़ा नुक्सानदायक सिद्ध हो सकता है। यदि देश ने प्रत्येक क्षेत्र में विकास करना है और आगे बढ़ना है तो इसके लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करके ही आगे बढ़ाया जा सकता है। आज के शासकों और राजनीतिक पार्टियों से हम भिन्न-भिन्न भाईचारों के बीच साझ को मज़बूत करने की उम्मीद करते हैं। ऐसी धारणा ही एक बेहतर समाज को जन्म दे सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

