समय और संघर्ष के आईने में जयराम ठाकुर



व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके परिवार, संस्कार, संस्कृति और समाज से बनता है, जिसमें जितना बड़ा हाथ उसका स्वयं का होता है, उतना अन्य किसी का नहीं होता। हिमाचल प्रदेश के नव-नियुक्त हुए मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर इस दृष्टि से अपनी जीवन यात्रा के सफ ल यायावर रहे हैं। 26 वर्ष की आयु में इस यात्री ने अपना पहला चुनाव लड़ा। परिवार नहीं चाहता था कि वह राजनीति में जाएं। इसका मुख्य कारण था परिवार का कृषि से जुड़े होना। मंडी ज़िला के सिराज विधानसभा क्षेत्र को प्रकृति ने अपने बेशकीमती सौंदर्य की आभा से महिमा-मंडित किया है।
ग्राम पंचायत मूरहाग के तांदी गांव में 6 जनवरी, 1965 को जन्मे जयराम ठाकुर ने आज राजनीति की उस उच्चता को स्पर्श किया है, जो अतुलनीय है। पिता श्री जेठूराम और श्रीमती माता बिक्रमो देवी ने जिस लगन से परिवार की परवरिश की, उसकी छाप जयराम ठाकुर पर साफ-साफ महसूस की जा सकती है। परिवार कृषि से संबंध रखता है, इसलिए बचपन से ही इन्हाेंने गरीबी को नज़दीक से देखा है। पिता खेतीबाड़ी और मज़दूरी करके अपने परिवार का लालन-पालन करते थे। जयराम ठाकुर तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं, इसलिए इनकी पढ़ाई-लिखाई में परिवार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जयराम ठाकुर ने कुराणी स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद बगस्याड़ विद्यालय से 10वीं की शिक्षा प्राप्त की। स्नातक की उपाधि वल्लभ राजकीय महाविद्यालय मंडी से एवं स्नातकोत्तर (एम.ए.) उपाधि पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से ग्रहण की।
जयराम ठाकुर के अध्यापक रहे श्री लालूराम बताते हैं कि बचपन से ही इनका नज़रिया तीक्ष्ण रहा है। तथापि, यह पता नहीं था कि प्रकृति के बीच पला-बढ़ा यह बालक प्रदेश की राजनीति में एक चमकता हुआ सितारा बनकर उभरेगा। जयराम ठाकुर मंडी महाविद्यालय से बी.ए. की पढ़ाई के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। यह वह पड़ाव था जहां से इनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के साथ-साथ उन्होंने संघ से भी अपनी निरन्तरता बनाए रखी। संघ के निर्देश पर जयराम ठाकुर ने जम्मू-कश्मीर जाकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का निष्ठा से प्रचार किया। 1992 में पुन: घर लौटे। वर्ष 1993 में भारतीय जनता पार्टी ने तत्कालीन चच्योट विधानसभा क्षेत्र से टिकट देकर इन्हें चुनावी मैदान में उतार दिया। परन्तु पूर्व प्रधान अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता ‘हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा’ की तर्ज पर जयराम ठाकुर ने अपने दम पर राजनीति के क्षेत्र में डटे रहने का निर्णय लिया। इससे पहले चुनाव में इन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। उस समय इनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी। वर्ष 1998 में भाजपा ने फि र से जयराम ठाकुर को चुनावी रण में उतारा। इस बार उन्होंने विजय प्राप्त की, और तब से लेकर अब तक इनका राजनीतिक रण-क्षेत्र विजय का जयघोष ही करता आ रहा है। अपनी जीवन यात्रा में सादगी-पसंद जयराम ठाकुर ने विधायक होने के उपरान्त भी उस पुश्तैनी कमरे को नहीं छोड़ा, जहां इन्होंने अपने जीवन का कठिन समय गुज़ारा था। सन् 1995 में जयपुर से सम्बन्ध रखने वाली डॉ. साधना सिंह से विवाह किया। डॉ. साधना सिंह कहती हैं कि जयराम ठाकुर संघर्ष का दूसरा नाम है। वह कभी भी अपनी चिंताओं और समस्याओं का जिक्र परिवार में नहीं करते। बांसुरी बजाने और तबला बजाने में उनकी रुचि हमेशा से रही है। पुराने गीतों के साथ-साथ नुसरत फ तेह अली खां व गुलाम अली की ़गज़लें सुनना भी इन्हें पसंद है। अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित रहे हैं। जयराम ठाकुर सराज मंडल भाजपा अध्यक्ष, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष, खाद्य आपूर्ति बोर्ड के उपाध्यक्ष और ग्रामीण विकास व पंचायती राज्य मंत्री के रूप में अपनी कार्य शैली का परिचय दे चुके हैं। श्री जयराम ठाकुर के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष काल में भाजपा प्रंचड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी।
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