दक्षिण भारत की राजनीतिक पांत और रजनीकांत

हमारे देश में जब भी कहीं चुनाव की सुगबुगाहट सुनाई देती है, नई नवेली राजनीतिक पार्टियां जन्म ले लेती हैं। दक्षिण भारत में एक प्रथा कई दशकों से चली आ रही है कि वहां के अभिनेता, नेता बनने में आगे आ जाते हैं। तमिलनाडू में जब से वहां की लोकप्रिय मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता का देहावसान हुआ है, तब से उस खाली स्थान को भरने के लिए कई नेतागण पर तोलने लगे हैं। शशिकला कारावास में चली गई और अन्य नेता कई धड़ों में बंटे एक-दूसरे की टांग खींचने में जुट गए। राजनीकांत बहुत ही लोकप्रिय एवं सफल अभिनेता हैं और उन्होंने इसे एक सुनहरी अवसर समझा और एक नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। तमिलनाडू में इससे पूर्व शिवाजी गणेशन और विजयकांत जैसे नेताओं ने भी दल बनाए थे परन्तु उनका भाग्य एन.जी. रामचंद्रण की तरह चमक न सका। एम.जी. रामचंद्रन ने कई वर्षों तक तमिलनाडू की सत्ता की बागडोर संभाले रखी। बात को पैरीयार द्वारा हिन्दी भाषा के विरुद्ध किए गए आन्दोलन से जोड़ कर देखा जाए तो अन्नादुराई के जीवनकाल तक के. करूणानिधि और एन.जी. रामचंद्रण जैसी सिने जगत से जुड़ी हस्तियां हाशिये पर ही रहीं। अन्नादुराई के बाद सन् 1969 में जब उनका देहांत हुआ तो डी.एम.के. में दरार उभरने लगी। करूणानिधि जो फिल्मों के लिए पटकथा और डायलॉग लिखा करते थे, वह मुख्यमंत्री बने। एम.जी. रामचंद्रन ने उनसे अलग होकर ऑल इंडिया द्राविड़ मुनेतरा काज़ागम (ए.आई.डी.एम.के.) नामक पार्टी बना ली और चुनाव में बहुमत ले गए। जे. जयललिता फिल्मों में एम.जी. रामचंद्रन की हीरोईन रही, वह भी राजनीति के मैदान में उतर आई। तमिलनाडू में जयललिता के बड़े-बड़े कट-आऊट लगाए गए। यह कोई अजीब बात नहीं थी क्योंकि दक्षिण भारत में सिने जगत से जुड़े अभिनेताओं को बहुत स्नेह मिलता है। आंध्रा में एन.टी. रामाराव ने तेलगू देशम पार्टी बनाकर रिकार्ड-तोड़ सफलता पाई वहीं चिरंजीवी जैसे एक्टर भी राजनीति में उतरे। यूं तो पूरे भारत में दक्षिण भारत की तरह अभिनेताओं को राजनीति में उतारा जा रहा है। वैजयन्ती माला, हेमामालिनी, धर्मेन्द्र, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, परेश रावल, गोविन्दा, रूपा गांगुली, बाबुल सुप्रियो, किरण खेर, स्मृति ईरानी, अमिताभ बच्चन, जय भादुड़ी, भप्पी लहरी, मनोज तिवारी इत्यादि सभी राजनीति में सक्रिय नज़र आत हैं। इनकी सफलता के पीछे फिल्मों से इनका जुड़ाव भी मुख्य कारण है।
रजनीकांत ने तमिलनाडू में जो दल बनाया और अपने ऐप रजनी मन्त्रा को आरम्भ कर दिया, उनका कहना है कि वह सभी नए लोगों को राजनीति में आने का अवसर देंगे। वह सत्ता में आए तो तीन साल तक यदि अपने वायदे पूरे न कर सके तो त्यागपत्र दे देंगे। हमें ऐसे वायदे सुनने की आदत सी पड़ चुकी है। कुर्सी की लत ऐसी बुरी है जो छोड़े न बने। रजनीकांत ने हिन्दी सिनेमा में भी काम किया है, इसलिए उन्हें उत्तर भारत के लोग भी खूब जानते हैं। उन्होंने अपना जीवन एक बस कंडक्टर से आरम्भ किया और लोकप्रियता के आकाश को छू लिया। जन्म से वह मराठी थे, यह भी तमिलनाडू के लोग पूरी तरह जानते हैं, उनका असली नाम शिवाजी राय गायकवाड़ है। उन्हें भारत सरकार की ओर से पदमविभूषण से भी सम्मानित किया गया है। सन् 1975 में उन्हें पहली फिल्म में काम करने का अवसर मिला और यहीं से उन्हें राजनीकांत नाम मिला। गत एक दशक से रजनीकांत को राजनीति में उतारने का प्रयास होता रहा। अब जब देश की बहुत-सी पार्टियां बुढ़ाती जा रही हैं और जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी ने एक युवा नेता को अपनी बागडोर सौंप दी। राहुल गांधी नई सोच लेकर राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। डी.एम.के. नेता करूणानिधि ने भी स्टालिन के हाथ पार्टी की बागडोर सौंप दी है। भाजपा ने भी बूढ़े नेताओं को मार्गदर्शक बना कर एक ओर खिसका दिया है। ऐसे में रजनीकांत को युवा वर्ग के साथ आगे बढ़ने के लिए कठिन मेहनत करनी पड़ेगी। हालांकि वह कहते हैं कि वह फिलहाल अपने बूते ही चुनाव में उतरेंगे। कई अन्य दलों पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगे हैं, इसका लाभ भी रजनीकांत को प्राप्त हो सकता है। रजनीकात को यह भी पता होगा कि आज का मीडिया मिज़ाज भाप लेता है लिफाफा देखकर। ऐसी-ऐेसी खबरें लोगों में उछाली जायेंगी कि कई बार सोचना पड़ जायेगा कि राजनीति में आना सबसे बड़ी भूल हो गई। लोग हर कदम पर ‘टोह’ लेंगे। ऐसे में रजनीकांत का भावुक होना ठीक नहीं होगा। एक अभिनेता ‘इमोशनल’ हो तो लोगों की उसके साथ हमदर्दी होती है परन्तु जब एक राजनेता भावुक होकर कुछ कहे तो लोग उसे नाटक मानेंगे। आज कई दल अपना वजूद लगभग खत्म कर चुके हैं, जिनमें साम्य दलों की बात करना ज़रूरी है, जिसने कभी पश्चिमी बंगाल पर एक छत्र राज किया। आज नगरपालिका में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। ऐसे में रजनीकांत को कई ऐसे नेता भी मिलेंगे जो अपनी जंग हार चुके हैं और इन्हें जीतने के गुर समझायेंगे, फिर भी हम दक्षिण भारत की राजनीति की पांत में रजनीकांत के आने का स्वागत करते हैं, उन्हें एक बात याद रखनी होगी कि फूलों के नीचे कांटे भी होते हैं और उन्हें दामन बचा-बचा कर चलना होगा। किसी शायर ने कहा है —
‘आज ़गम दे दिया, 
कल खुशी बख्श दी
इन सहारों का कोई भरोसा नहीं
आप दामन बचा कर गुज़र जाईए
वर्ना खाटों का कोई भरोसा नहीं’