महिलाओं के गुनाहगारों को मिले कड़ी सज़ा

भारतीय समाज बदलाव के दौर से गुजर रहा है । सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक हर क्षेत्र में पाश्चात्य देशों की स्पष्ट छाप दिखायी दे रही है। परदे में रहने वाली महिलाएं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। बावजूद इसके महिलाओं को लेकर पुरुषों की मानसिकता में बदलाव नहीं आ रहा है। पुरुष आज भी महिला को भोग की वस्तु ही समझता है । किसी भी तरह उसके शरीर पर अपना नियंत्रण चाहता है।भोपाल की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म, विशाखापट्टनम के फु टपाथ का मामला हो, 33 वर्ष के पड़ोसी का 18 महीने की बच्ची के साथ दुष्कर्म, स्कूल की बच्ची के साथ कुकर्म,  कभी मामा,कभी चाचा तो कभी सौतेला पिता। इन सब खबरों में एक ही बात सामान्य है कि हर दुष्कर्म में महिला का जानकार ही होता है । दुष्कर्म आज की हकीकत बन गए हैं। सुबह अखबार की खबरों में यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म यही सब खबरें पढ़ने को मिलती हैं।राष्ट्रीय अपराध बयूरो के 2015 के आंकड़ों के अनुसार देश भर में 34 हज़ार 500 दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 33 हज़ार 098 मामलों में अपराधी अपने परिचित ही निकले। इससे यह स्पष्ट है कि दुष्कर्म के अधिकतर मामलों में अपने परिचित और नाते-रिश्तेदार ही शामिल होते हैं। छोटे मासूम बच्चों के साथ यौन दुष्कर्म बहुत ज्यादा होते हैं, इसमें सिर्फ  लड़कियां ही पीड़ित नहीं होतीं वरन कई मामलों में लड़कों को भी यौन उत्पीड़न का  शिकार होना पड़ा है। इन मामलों में पता होते हुए भी कई बार माता-पिता सिर्फ  बदनामी के डर से मौन धारण कर लेते हैं तो कभी बच्चे डर के मारे अपने बड़ों के सामने अपना मुंह नहीं खोल पाते, जिसका परिणाम दुष्कर्म करने वाले को और ज्यादा आज़ादी मिल जाती है। हमारा समाज सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे रहता है। वास्तव में हम दोहरी जिंदगी जीते हैं, घर में कुछ, बाहर कुछ। हमारे राजनेता तो न जाने कितनी जिंदगी जीते हैं। वे भाषणों में कुछ तो निजी जीवन में अलग होते हैं। कई बार हमारे माननीय दुष्कर्म जैसे मामलों में ऐसे बयान दे जाते हैं कि दोषी आरोपी न होकर पीड़ित महिला बन जाती है। कपड़ों, रात को आने-जाने को लेकर कई बार बड़े-बड़े मंचों से खूब बयानबाजी हुई है, जिससे ऐसे हैवानों को और हौसला मिल जाता है। और यह भी उतना ही सच है कि जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी तब तक अपराधों को कम करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे देश में इस अपराध को लेकर कड़े कानून तो हैं पर कई बार उन कानूनों को अमल में न लाना भी अपराध को बढ़ावा देता है। आंकड़ों की बात करें तो कई राज्यों में मध्य प्रदेश में दुष्कर्म के  4,391 मामले दर्ज हुए जो देश भर में सबसे ज्यादा हैं ,जबकि केंद्र शाषित राज्यों में देश की राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा मामले । उत्तर प्रदेश 3025, महाराष्ट्र में 4144, उड़ीसा 2251, असम 2733 जबकि छत्तीसगढ़ में 1560 मामले दर्ज किये गए । ये आंकड़े 2015 के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के हैं । ये आंकड़ें हैं जो दर्ज हुए हैं परंतु ऐसे कई मामले हैं जो पुलिस स्टेशन तक जाने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। कुछ बदनामी के डर से कुछ रसूख के आगे बेबस हो जाते हैं । ये कुंठित मानसिकता वाले लोग जरूर मानसिक रूप से बीमार होते हैं ।हमारे समाज की सबसे बड़ी बिडम्बना यही है कि हम दुष्कर्म करने वाले का बहिष्कार नहीं करते बल्कि उस पीड़ित लड़की का सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं जिसका कोई दोष ही नहीं होता। इसके लिए समाज को भी आगे आना ही पड़ेगा और स्थानीय और पंचायती  व्यवस्था को भी इसमें शामिल होना चाहिए ताकि  छेड़छाड़, पीछा करना जैसी घटनाओं को बड़ी घटना में तबदील होने से पहले ही रोक दिया जाये। हमारे समाज में बहू-बेटियों पर पूरे परिवार की इज्जत का भार डाल दिया जाता है जिसके बोझ तले उनका दम घुट जाता है, क्योंकि कई बार घर की इज्जत बचाने की खातिर भी बच्चियां चुप रह जाती हैं। इसलिए स्कूलों में छोटी कक्षाओं से ही इस विषय में बच्चों को जागरूक बनाए जाने की जरूरत है। बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में ज़रूर बताना होगा और उनको इतना विश्वास दिलाना पड़ेगा कि हम उनके साथ हैं ताकि वो बिना डरे व सहमे माता-पिता को अपना दर्द बता सकें। नए कानून लाने के बदले जो कानून है उसे ही सही तरीके से और ईमानदारी के साथ अमलीजामा पहनाया जाये तो यकीनन ऐसे अपराधों में कमी आयेगी। समाज को बदलने से पहले हम सबको पहले खुद को बदलना होगा। लड़कियों को समझने से पहले लड़कों को सिखाने की जरूरत है कि वो लड़की की इज्जत करें, छेड़छाड़ और यौन शोषण जघन्य अपराध हैं, आरोपी का सामाजिक बहिष्कार करना बेहद ज़रूरी है न कि पीड़िता को अलग-थलग करने की, दुष्कर्म से पीड़ित महिला को भावनात्मक लगाव की ज़रूरत होती है और सबसे और बेहद ज़रूरी यही कि बिना राजनीतिक और ताकतवर के दबाव के ऐसे मामलों में तीव्र गति से ईमानदारी से न्याय हो और देश में मौजूद कानूनों का पालन करते हुए कड़ी से कड़ी सज़ा गुनाहगार को मिले।

आरती लोहनी