पठानकोट से पुलवामा हमले तक : नाकामियों की लम्बी सूची

बीता साल जाते-जाते हमें नए जख्म दे गया है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के लेथपोरा क्षेत्र में साल के अंतिम दिन आतंकियों ने बड़े हमले को अंजाम दे दिया। 14 घंटे चली लंबी मुठभेड़ में हालांकि सुरक्षा बलों ने आतंकियों पर काबू पाते हुए तीनों आतंकवादियों को मार गिराया है। लेकिन फिर भी इस फि दायीन हमले में सीआरपीएफ  के एक निरीक्षक समेत पांच जवान शहीद और तीन अन्य घायल हो गए हैं। 
पठानकोट एयरबेस पर हमले की तर्ज पर सीआरपीएफ  कैंप पर किए गए इस हमले की पाकिस्तान आधारित कुख्यात आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ ने जिम्मेदारी ली है। हमला ऐसे समय में हुआ है, जब भारत और पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के 26 दिसंबर को थाइलैंड में मिलने की रिपोर्ट सामने आई है। यानी एक तरफ  दोनों देशों के बीच बातचीत से आपसी संबंध सुधारने की ‘कोशिश’ हो रही है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो। लिहाजा जैसे ही इस तरह की कोई कोशिश होती है, भारत में आतंकी हमले और सीमा पर सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं बढ़ जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ  के जन्मदिन पर बधाई देने लाहौर पहुंचने के आठवें दिन बाद ही पठानकोट में आतंकी हमला हुआ, तो रूस के ऊफ ा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ  के बीच मुलाकात में जैसे ही दोनों देशों के दरम्यिन बातचीत जारी रखने पर रजामंदी बनी, तो उसी महीने पंजाब के गुरदासपुर में आतंकी हमला हो गया। इन हमलों से मोदी सरकार कुछ सबक लेती, इसके उलट एक बार फिर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत हुई। बातचीत का नतीजा सीआरपीएफ  कैंप पर कायराना हमला निकला। जिसमें हमारे और बहादुर जवान शहीद हो गए।  सीआरपीएफ की पुलावामा स्थित कैंप में 185वीं बटालियन तैनात है। यहां पर आतंकवादरोधी कार्रवाई के लिए जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कैंप के पास ही जम्मू-कश्मीर पुलिस का प्रशिक्षण केंद्र है। जाहिर है कि यह काफी संवेदनशील स्थल है। रात को अचानक पहले इन आतंकवादियों ने सीआरपीएफ  शिविर के मेन गेट के पास तैनात जवानों पर ग्रेनेड  फेंके और ऑटोमैटिक हथियारों से अंधाधुंध गोलीबारी की। इसके बाद आतंकवादी कैम्प में घुस गए। जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय जवानों ने इन आतंकियों को मार गिराया। जम्मू-कश्मीर में इस साल अब तक सुरक्षाबलों और पुलिस ने ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ के तहत करीब 210 आतंकवादियों को मार गिराया है। आतंकवादी इसी से बौखलाए हुए हैं और अब सुरक्षा कैंपों को अपना निशाना बना रहे हैं। जैसे ही सुरक्षा में कहीं थोड़ी सी भी ढील होती है, आतंकी हमला हो जाता है। यह पहली मर्तबा नहीं है, जब सेना के प्रमुख ठिकानों पर कोई आतंकी हमला हुआ हो, बल्कि इससे पहले साल 2016 की शुरुआत में भी ‘जैश-ए-मोहम्मद’ ने पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर ऐसा ही एक हमला किया था। तब इस हमले में सात सैनिक शहीद हुए थे। इसके बाद इसी साल सितंबर में जम्मू-कश्मीर के उड़ी में ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर हमला हुआ, जिसमें हमारी सेना के उन्नीस जवान शहीद हो गए थे। एक तरफ  देश के अंदर ये आतंकी हमले जारी हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना सीमा पर लगातार सीजफ ायर का उल्लंघन कर रही है। आतंकी हमले के दौरान ही पाकिस्तानी सेना ने राजौरी और पुंछ में सीजफायर का उल्लंघन किया, जिससे राजौरी के नौशेरा सेक्टर में एक भारतीय जवान शहीद हो गया।पुलवामा आतंकवादी हमले से एक बार फिर यह सवाल उठा है कि आंतरिक सुरक्षा के मामले में हमारी तैयारियां कितनी चाक-चौबंद हैं ? क्या हमारी सुरक्षा एवं खुफि या एजेंसियां, पुलिस और सेना इन अचानक हुए हमलों को रोकने में पूरी तरह से सक्षम है ? या फिर हमें और भी बेहतर तैयारी करने की जरूरत है। सवालों के कटघरे में मोदी सरकार की विदेश नीति भी है। आतंकवाद पर शून्य सहनशीलता के बड़े-बड़े दावे करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साढ़े तीन साल के कार्यकाल के दौरान न तो सीमा पर तनाव में कोई कमी आई है और न ही देश के आंतरिक हालात अच्छे हैं। केन्द्र की मोदी सरकार, आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था और विदेश नीति दोनों ही मोर्चों पर पूरी तरह से नाकाम रही है। देश की सीमाओं का उल्लंघन, पाकिस्तान और चीन की सेनाओं के लिए रोज की बात हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अपनी सरकार को देश के अब तक की सबसे मजबूत सरकार कहते नहीं अघाते। सरकार के बड़े-बड़े मंत्री डींगें हांकते हैं कि नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगा दी और घुसपैठियों की कमर टूट गई है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं। मजबूत सरकार के इस गर्वीले दौर में ही पाकिस्तानी सीमा पर साल 2015 में 152 बार, साल 2016 में 228 और साल 2017 में 820 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन हुआ है। वहीं साल 2015 में 33, साल 2016 में 63 और साल 2017 में 61 जवानों ने पाकिस्तानी सेना या आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई है।  मोदी हुकूमत में देश की बाहरी सीमाएं तो असुरक्षित हैं ही, आंतरिक हालात भी अच्छे नहीं हैं। इस दौरान साम्प्रदायिक तनाव समेत विभिन्न प्रकार की हिंसा की वारदात में और भी ज्यादा इजाफ ा हुआ है। पंजाब के गुरदासपुर और पठानकोट, जम्मू-कश्मीर के उड़ी, अखनूर सेक्टर के जीआरईएफ  कैंप, शोपियां के मुलू चित्रगाम, अनंतनाग जिले के अचबल आदि में हुए आतंकवादी हमले से पहले अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ कोई छोटी घटना नहीं है। विपक्ष में रहते हुए भाजपा हर आतंकवादी घटना को सरकार की घोर नाकामी साबित करने में जुट जाती थी। पर अब वैसा ही दूसरी पार्टियां उनके साथ कर रही हैं, तो यह बात उसे नागवार गुजर रही हैं। सरकार अपनी विदेश नीति का आत्मावलोकन करे, उलटे वह विपक्ष पर ही हमलावर होने की कोशिश करती है।  केन्द्र के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर सरकार के अंदर भी बीजेपी, पीडीपी के साथ सत्ता में साझीदार है। लिहाज़ा वह अपनी ज़िम्मेदारियों और जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकती। केन्द्र और कश्मीर की सत्ता में भाजपा के आने के बाद राज्य में हालात और भी ज्यादा बदतर हुए हैं। ऐसा कोई सा भी दिन नहीं जाता, जब सेना और आतंकियों के बीच संघर्ष न हो और उसमें सेना का कोई जवान शहीद न होता हो। बावजूद इसके सरकार यह बात मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं कि यह सब उसकी गलत नीतियों का सबब है।  

—महल कालोनी, शिवपुरी म.प्र.
मो. 94254-89944