लाहौर में रानी मोरां की मज़ार का पुनर्निर्माण


अमृतसर, 9 जनवरी (सुरिन्द्र कोछड़) : भारतीय पंजाब में जहां लम्बे समय से शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की रानी मोरां को ‘मोरां कंजरी’ और उसके द्वारा अमृतसर के गांव धनोये कलां की नहर पर बनाए पुल को ‘पुल कंजरी’ नाम से संबोधित किया जा रहा है। वहीं सीमा पार लाहौर के शाह आलम बाज़ार की पापड़ मंडी में शेर-ए-पंजाब द्वारा रानी मोरां के नाम पर बनाई मस्जिद जिसको देश के बंटवारे से पहले मस्जिद-ए-तवाइफां कहकर संबोधित किया जाता था, को मौजूदा समय में पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा माई मोरां की मस्जिद कहकर संबोधित किया जा रहा है। लाहौर से इस बार जानकारी साझी करते हुए बाबर जालन्धरी ने बताया कि लाहौर की पापड़ मंडी में मस्जिद माईमोरां के दरवाज़े पर अरबी भाषा में दर्ज इबारत के अनुसार यह मस्जिद महाराजा रणजीत सिंह ने रानी मोरां की फरमाइश पर सन् 1809 में बनवाई। उन्होंने बताया कि इलाके के दुकानदारों द्वारा अपने खर्चे पर मस्जिद के बाहरी ढांचे पर तबदीली करते हुए अंदर पुराने हिस्से को नया बनाकर प्रार्थना के लिए एक बड़ा कमरा और उसके साथ लगते कमरों में एक लाइब्रेरी और मुफ्त कम्प्यूटर सैंटर शुरू किया गया है। हैरानीजनक बात है कि जहां भारतीय पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह की रानी को ‘मोरां कंजरी’ संबोधित करने को ही विरासत माना जा रहा है। वहीं लाहौर की पापड़ मंडी में रानी मोरां द्वारा बनवाई मस्जिद को माई मोरां की मस्जिद कहने में इलाका निवासी गर्व महसूस कर रहे हैं।
बाबर के अनुसार मस्जिद के साथ लगते बाज़ार के दुकानदारों का कहना है कि माई मोरां एक नेक दिल महिला थी और उसने लाहौर में नेकी के कई काम करवाए, जिसके बाद उसको ‘मां’ (माई) कह कर संबोधित किया जाना ही उचित है। वर्णनीय है कि मोरां के अमृतसर के सीमावर्ती गांव मक्खनपुर की रहने वाली कश्मीरी मुसलमान नर्तकी थी, जिसके साथ महाराजा ने सन् 1802 में पूरे रीति रिवाज़ों के साथ विवाह किया। मोरां से विवाह करने के बाद उसको लाहौर ले गए व वहां बाकी रानियों के साथ शाही किले में नहीं रही, बल्कि महाराजा ने उसके लिए लाहौर में पापड़ मंडी इलाके में एक खूबसूरत हवेली बनवाई।
मोरां ने महाराजा को कहकर अपनी हवेली के सामने उक्त मस्जिद के साथ-साथ लाहौर शाही किले में एक शिवालय, लाहौर में दो मदरसे और माधो लाल हुसैन की मज़ार के पास एक और मस्जिद बनवाई।
बताते हैं कि मोरां अपनी हवेली में बकायदा दरबार लगाया करती थी और लोगों की शिकायतें सुनकर तुरंत उनका हल करवाती थीं। रानी मोरां की यह हवेली सन् 1971-72 तक तो कायम रही, बाद में उसको गिराकर उसकी जगह पर दुकानें बनवा दी गईं।