फिर आकाश की ओर महंगाई

देश में महंगाई एक बार फिर बड़ी तेज़ी से ऊपर की ओर चढ़ी है। यह भी कि सरकार ने पहली बार स्वीकार किया है कि थोक और परचून दोनों धरातल पर महंगाई की दर में वृद्धि हुई है। बाज़ार में घरेलू उपभोग की प्राय: प्रत्येक वस्तु पर महंगाई की मार का असर देखा जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार परचून धरातल पर महंगाई के स्तर में वृद्धि ने विगत 16 महीने के उच्चतम रिकार्ड को तोड़ा है। प्राय: होता यह है कि थोक बाज़ार में मूल्यों अथवा दामों में होने वाली वृद्धि का असर परचून में अपने आप दिखाई देने लगता है। तथापि, कई बार थोक में हुई मूल्य-वृद्धि का असर परचून में कई गुणा बढ़ कर दिखाई देने लगता है। ऐसा ही इस बार हुआ है। मौजूदा मूल्य-वृद्धि का असर सीधे पर घरेलू उपभोग की वस्तुओं पर परचून में अधिक तेज़ हुआ दिखाई दिया है। इससे मुद्रा स्फीति की दर भी 5.21 प्रतिशत तक पहुंच गई है। मुद्रा स्फीति बढ़ेगी तो बहुत स्वाभाविक है कि मूल्य भी बढ़ेंगे। नि:संदेह मूल्य-वृद्धि और महंगाई की दर में वृद्धि का सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा। इससे भी अधिक, महिलाओं का घरेलू बजट भी प्रभावित हुआ है। परचून महंगाई का सीधा असर घरेलू धरातल पर इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं पर भी दिखाई दिया है। सब्ज़ियों, दालों के दाम बढ़े हैं। बाज़ार में आटा और गेहूं की कीमतें भी अनियोजित तरीके से बढ़ी हैं। सरकार की ओर से सबसिडी पर दी जाने वाली गैस के दामों में पिछले दिनों हुई भारी वृद्धि ने भी महंगाई के पायदान को ऊंचा किया है। खुदरा मूल्यों के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष नवम्बर में परचून महंगाई दर 4.88 प्रतिशत थी। वहीं इससे पिछले वर्ष अर्थात् 2016 में यह दर 3.63 प्रतिशत थी। इसका सीधा-सा अभिप्राय: यह भी निकलता है कि देश में महंगाई एवं मूल्यों में वृद्धि का यह सिलसिला पिछले वर्ष से ही जारी है। तथापि, ़गनीमत यह भी है कि यह मूल्य-वृद्धि वर्ष 2016 के अगस्त मास से कम है जब महंगाई की दर 5.05 तक पहुंच गई थी। इस संबंध में एक त्रासद पक्ष यह भी है कि महंगाई और मूल्य-वृद्धि की यह दर देश में घरेलू उत्पादन में वृद्धि के बावजूद दर्ज की गई है। इसके बावजूद यदि परचून बाज़ार में मूल्य-वृद्धि थम नहीं रही तो पता चल जाता है कि देश के आर्थिक मोर्चे पर हवा बाव़फा तो कदापि नहीं है। वित्त विशेषज्ञों के अनुसार घरेलू उत्पादन में वृद्धि के बावजूद मूल्य वृद्धि के न थमने के पीछे कहीं न कहीं जी.एस.टी. और पुरानी करंसी के विमुद्रीकरण का असर तो है ही। मूल्य-वृद्धि से होने वाले असर को इस प्रकार भी आंका जा सकता है कि स्वयं रिज़र्व बैंक ने भी इस स्थिति को चिन्ताजनक करार दिया है।हम समझते हैं कि नि:संदेह यह स्थिति किसी भी सूरत में सुखकर नहीं है। खासतौर पर फरवरी में पेश होने वाले बजट से पहले मूल्य-वृद्धि का यह आंकड़ा सरकार के लिए एक झटके जैसा सिद्ध हो सकता है। यहां यह भी एक अनुमान है कि परचून धरातल पर मूल्य-वृद्धि और महंगाई थोक आंकड़ों से भी अधिक हो सकती है। यह भी कि थोक में होने वाली मूल्य-वृद्धि का असर परचून में तो बहुत जल्दी पड़ता है, परन्तु थोक बाज़ार में हुए उतार का असर परचून में वैसा कभी नहीं दिखता। परचून में मूल्य वृद्धि के बढ़ते स्तर का एक यह भी बड़ा कारण माना जाता है। ऐसा भी नहीं कि सरकार ने इस स्थिति की रफ्तार को रोकने के लिए कोई कवायद नहीं की हो। सब्ज़ियों के धरातल पर सरकार ने कई जगह निजी तौर पर खरीद-बिक्री को नियंत्रित करने का फैसला किया, परन्तु कोई तत्काल हल उपलब्ध नहीं हो सका। नि:संदेह मूल्य-वृद्धि विकास के साथ जुड़ी कवायद होती है, परन्तु जब इस मूल्य-वृद्धि का प्रभाव आम और गरीब आदमी की रोटी पर होने लगता है, तो समस्या का मुंह विकराल होता चला जाता है। परचून और खास तौर पर सब्ज़ियों के बाज़ार में मूल्य-वृद्धि के लिए स्टोरिये भी ज़िम्मेदार माने जाते हैं। नि:संदेह वे कुछ वस्तुओं का भंडारण कर लेते हैं और फिर उन्हें अपनी मर्ज़ी से तय दामों पर बेचते हैं। नि:संदेह हम समझते हैं कि आगामी बजट से पूर्व महंगाई और मूल्य-वृद्धि का असर सरकारी नीतियों पर पड़ेगा। बजट के बाद तो इस मूल्य-वृद्धि का असर अधिक गम्भीर होने की सम्भावना है। बेशक सरकार को इस स्थिति पर काबू पाने के लिए अतिरिक्त उपाय करने पड़ेंगे। सरकारें कोई भी हों, आम आदमी की उनसे अपेक्षा आम राहत हासिल करने तक की होती है। जो सरकार आम आदमी और गरीब की आशाओं के अनुकूल खरा नहीं उतरती वह उसकी आंखों से उतरने लगती है। हम समझते हैं कि समय रहते सरकार को अनियंत्रित होती इस महंगाई और मूल्य-वृद्धि पर यथाशीघ्र अंकुश लगाना होगा।