पाण्डवों की तपोस्थली रही है भीमभड़क

पश्चिमी राजस्थान में दूर-दूर तक फैली अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच अनक धार्मिक स्थल स्थित हैं। एक ऐसा ही ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल भीमभड़क है जो जोधपुर से 9 किलोमीटर दूर जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। यह स्थल कायलाना झील की ऊपरी पहाड़ियों में एक शांत व निर्जन स्थान पर है। इस स्थल का नाम भीमभड़क इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां की एक विशाल पहाड़ी अधर में झूलती दिखलाई पड़ती है। इस शिलाखंड का एक भाग धरती के ऊपर उठा हुआ है। साथ ही इससे जुड़ा एक ऐतिहासिक प्रसंग भी है। किंवदन्ती है कि जब महाभारत काल में पांडव कौरवों से द्यूत-क्रीड़ा में हार गए और उनका सब कुछ छिन गया, तब कौरवों ने उन्हें 12 वर्ष के बनवास व एक वर्ष के अज्ञातवास का दंड सुनाया था। इसी दंड को भुगतते हुए पांडव जंगलों व पहाड़ों में भटकते फिरे थे। इसी यात्रा के दौरान वे पश्चिमी राजस्थान से भी गुजरे थे।चलते-चलते एक दिन पांचों भाई यहां की पहाड़ियों में विश्राम करने के लिए रुके। एक खाली जगह को देख, उसके नीचे ठहरने का उन्होंने मन बनाया। बलशाली भीम ने यहां की पहाड़ी को अपने हाथों से ऊपर उठा दिया और पहाड़ी के नीचे एक खोह में स्थित 150 फुट लम्बी एक गुफा में ठहर गए। कहा जाता है कि पाण्डवों ने पांच रोज इस पहाड़ी के नीचे तपस्या की थी। तब से यह अधर झूला पहाड़ी ज्यों की त्यों है, जो आज भी कौतूहल का विषय है।इस पहाड़ी के नीचे बनी अंधेरी गुफा में वैष्णव माता की प्रतिमा है, जिसे भीम ने प्रतिष्ठापित किया था। बाद में शनै: शनै: यह स्थल जनआस्था का केन्द्र बन गया। यह स्थल शुरू से ही तपोभूमि होने के कारण साधु-संतों की स्थली तो रहा ही है। वहीं मारवाड़ के तत्कालीन महाराजा मानसिंह ने भी अपनी मानसिक अशांति के वक्त इसी भीम भड़क पहाड़ी के नीचे लम्बे समय तक उस समय तपस्या की थी, जब उनके गुरु आयस देवनाथ की धोखे से मेहरानगढ़ दुर्ग में हत्या कर दी गई थी।यह ऐतिहासिक स्थल अब पूरी तरह से धार्मिक आस्था स्थल के रूप में पहचान बना चुका है तथा भीमभड़क अब एक आश्रम का रूप ले चुका है। हंस निर्वाण सम्प्रदाय का मठ बन जाने से यहां नियमित रूप से साधु संत आते रहते हैं तथा इस शांत पहाड़ी के नीचे धूणा रमाकर कई महीनों तक साधना में लीन रहते हैं। मठ के स्वामी स्वरूपानंद ने चालीस वर्ष तक यहां कठोर साधना की थी। वह उसी गद्दी पर बैठे जहां महाराजा मानसिंह ने ध्यानमग्न होकर तपस्या की थी। इस स्थल पर केवल तपस्वी साधु ही रह पाते हैं।भीमभड़क को अब श्रद्धालुओं ने अपनी दानवीरता से ऐसा रमणीय स्थल बना दिया है कि यह पूरी तरह से बाहरी तौर पर मठ सरीखा दिखाई देता है। पहाड़ी के नीचे चार समाधियां हैं, जिनमें से तीन नाथ सम्प्रदाय के साधुओं की हैं। इन साधुओं ने यहां तपस्या करके निर्वाण प्राप्त किया था। भीमभड़क गुफा में एक प्रवेश द्वार व सीढ़ियां हैं जिनसे होकर गुफा के भीतर माता के दर्शन किए जा सकते हैं। गुफा के भीतर अखंड ज्योति जलती रहती है। भीमभड़क की पवित्र तपोभूमि वाली पहाड़ी के बाईं ओर एक विशाल महादेव मंदिर है। यहां प्रति वर्ष आषाढ़ मासा गुरु पूर्णिमा को भारी मेला लगता है, जिसमें राज्य के दूरदराज क्षेत्रों से लोग दर्शनों हेतु आते हैं।शहर से दूर व हरे भरे पेड़ों से आच्छादित यह धार्मिक स्थल जहां एक ओर साधु-संतों की तपोभूमि बन चुका है, वहीं यह पर्यटक स्थल भी बन गया है। ग्रीष्म ऋतु में शहरी लोग इस ठंडे स्थल पर प्राय: पिकनिक मनाने भी आते हैं व यहीं दाल- बाटी चूरमा बनाकर खाते हैं। वर्षा के दिनों में तो इस निर्जन स्थल की रौनक देखते ही बनती है।
—चेतन चौहान
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