बढ़ रहा भारत-इज़रायल संबंधों का महत्व

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेत्नयाहू भारत के दौरे पर हैं। इस यात्रा की बड़ी चर्चा हो रही है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गत वर्ष जुलाई महीने में इज़रायल के दौरे पर गए थे। उसकी भी बड़े स्तर पर चर्चा हुई थी। इज़रायल मध्य-पूर्व का एक छोटा सा देश है, जिसके पड़ोसी लेबनान, सीरिया, जॉर्डन तथा मिस्र आदि देश हैं। 20वीं सदी में इन अधिकतर क्षेत्रों पर बस्तीवादियों के कब्ज़े थे। अंग्रेज़ों ने 1948 में फिलीस्तीन के बहुत सारे हिस्से में एक नया देश इज़रायल बना दिया था, जिसमें दो बड़े युद्धों से पहले यहूदी नस्ल के लोग आकर बसते रहे थे। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सदियों पूर्व यहूदियों के इस क्षेत्र में स्थापित हुए लोगों को यहां से निकाल दिया गया था और यह यूरोप के अन्य देशों में जा बसे थे। फिलीस्तीनी और अरब देशों द्वारा इस नये देश का विरोध किया गया था। अब तक इन देशों के इज़रायल के साथ युद्ध भी हो चुके हैं, जिनमें इज़रायल ने अपने साथ लगते पश्चिमी बैंक, गोलान हाइट्स और गाजा पट्टी पर कब्ज़े कर लिए थे। आज तक भी उसके इन क्षेत्रों पर कब्ज़े कायम है, परन्तु सदियों से यहूदी लोगों को इज़रायल में बहुसंख्या में बसने का अवसर मिल गया। क्षेत्रफल के पक्ष से यह क्षेत्र काफी छोटा है, जो पंजाब के लगभग 50,000 किलोमीटर रकबे से आधे से भी कम है। लगातार दुनिया भर से यहूदी नस्ल के लोगों द्वारा यहां बसने से इसकी आबादी अब एक करोड़ के लगभग पहुंच चुकी है, जिसमें 75 प्रतिशत के लगभग यहूदी तथा 20 प्रतिशत के लगभग अरबी लोग बस रहे हैं। अधिकतर अरब देशों के साथ भारत के हमेशा ही अच्छे संबंध रहे होने के कारण इज़रायल को मान्यता देने में भारत हमेशा हिचकिचाता रहा है, जबकि इज़रायल तथा अरब देशों के लगातार युद्धों के बाद इसके मिस्र तथा जॉर्डन के साथ शान्ति समझौते भी हुए हैं। परन्तु अभी भी अधिकतर अरब देश इज़रायल के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रख रहे हैं। लगभग 25 वर्ष पूर्व भारत ने इज़रायल को मान्यता दी थी। उस समय के बाद इस मध्यपूर्वी देश के साथ भारत के संबंध लगातार बढ़ते गए, जिनको आज शिखर पर पहुंचा देखा जा सकता है। अपने पड़ोसियों के साथ लगातार युद्धों के बावजूद इज़रायल ने पश्चिमी देशों के साथ-साथ अमरीका की सहायता से जहां अपनी आर्थिकता को बेहद मज़बूत किया है, वहीं यहां के लोगों ने एक मिशन की भावना से अपने इस छोटे से देश को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। आज यह तकनीक और कृषि के क्षेत्र में स्वयं में बड़ी क्षमता प्राप्त कर चुका है। इज़रायल ने अपने देश में पानी की कमी को बहुत ही बेहतर ढंग से दूर करने का प्रयास ही नहीं किया अपितु इसका समझबूझ से इस्तेमाल करके स्वयं को बेहद हरा-भरा भी बना लिया है। आज दुनिया के विकास कर चुके देशों में इसका शुमार होने लगा है। भारत के लिए इज़रायल के साथ संबंध बढ़ाना इसलिए बेहद नाजुक बात है क्योंकि इसका अरब देशों के साथ हमेशा हर तरह का व्यापारिक सहयोग तथा मित्रता बनी रही है। इसीलिए ही भारत ने पहले फिलीस्तीनियों के स्वतंत्रता के संघर्ष में उनके साथ खड़े होने को प्राथमिकता दी थी। मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति कर्नल नासिर फिलीस्तीन के लिए लम्बे समय तक संघर्ष करते रहे और यासिर अराफात के साथ भारत के संबंध बेहद अच्छे बने रहे थे। इज़रायल के साथ लगातार भारत के बढ़ते संबंधों ने दुनिया के अधिकतर देशों में हैरानी अवश्य पैदा की है। 15 वर्ष के बाद किसी भी इज़रायली प्रधानमंत्री का यहां आना और उसका इस स्तर पर स्वागत किया जाना हैरानीजनक अवश्य कहा जा सकता है। भारत और इज़रायल के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में 9 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। खासतौर पर भारत कृषि तकनीक, सुरक्षा, तेल और गैस के क्षेत्र में सहयोग से दोनों के संबंध और गहरे होने की आशा की जा सकती है। अब बने अच्छे संबंधों के बाद भारत को इस बात के लिए भी प्रयासरत होने की आवश्यकता होगी कि वह इज़रायल और पड़ोसी अरब देशों के बीच आपसी शान्ति और सद्भावना को बढ़ाने में सहायक हो और फिलीस्तीनियों की समस्या का हल संतोषजनक ढंग से निकलवाने की कोशिश करे। नि:संदेह ऐसे दृष्टिकोण से भारत के दोनों गुटों से संबंध भविष्य में एक सेतु का कार्य करने में सक्षम हो सकते हैं।

बरजिन्दर सिंह हमदर्द