गांव की खेल ग्राऊंड पर खेल कर भारत की कलांग टीम के कप्तान बने 

दिनेश कुमार सैन चाहे विकलांग हैं लेकिन उनमें हौसला इतना विशाल है कि एक छोटे से गांव की ग्राऊंड से अपना सफर शुरू करके अपनी मेहनत और लगन द्वारा आज वे भारत की विकलांग क्रिकेट टीम के कप्तान हैं, यह है दिनेश के हौसले की बड़ी उड़ान। हरियाणा प्रांत के ज़िला सोनीपत के गांव वली कुतुबपुर निवासी दिनेश कुमार सैन का जन्म 31 जुलाई, 1985 को पिता इंदर सैन पंवार के घर माता विद्या देवी की कोख से हुआ। दिनेश बचपन से ही एक टांग से पोलियोग्रस्त होने के कारण पैर से विकलांग हैं और लंगड़ा कर चलते हैं लेकिन बचपन से ही क्रिकेट बेहद जुनून के आगे दिनेश की विकलांगता भी बाधा न बनी। पिता इंदरसैन ने बेटे में क्रिकेट खेलने की बेहद भावना देखी तो पिता के प्रोत्साहन ने भी दिनेश के अंदर हौसले की एक और रोशनी को जगा दिया।यहीं बस नहीं, ताया ईश्वर सैन ने भी दिनेश को और प्रोत्साहन दिया और आज क्रिकेट के खेल में दिनेश जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, वह परिवार की ओर से मिले सहयोग के द्वारा ही सम्भव हो सका है। यह बात खुद दिनेश मानते हैं। चाहे अधिक गर्मी हो या सर्दी लेकिन दिनेश खेल के मैदान में कड़ी मेहनत करते गये। दिनेश ने वर्ष 2003 में एक क्रिकेट खिलाड़ी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। शुरुआती दौर में वह हरियाणा की विकलांग क्रिकेट टीम में खेलने लगे और बिहार में हुए इंटर स्टेट क्रिकेट मुकाबलों में दिनेश ने अपना शानदार प्रदर्शन किया। लगातार ही दिनेश की ओर से किए जाते शानदार प्रदर्शन के कारण आखिरकार हरियाणा की क्रिकेट टीम की कप्तानी का ताज भी दिनेश के सिर आ सजा। दिनेश के लिए खुशी उस समय दोगुनी हो गई, जब उनका चुनाव भारत की विकलांग क्रिकेट टीम में हो गया और दिनेश आज भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान हैं। दिनेश ने तेज गेंदबाज़ के तौर पर खेलते हुए बतौर कप्तान अपनी टीम को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में अनेक जीतें हासिल करवाईं। दिनेश कुमार सैन अपनी टीम सहित बंगलादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और इंग्लैंड की टीमों के साथ अनेक मैच खेल चुके हैं और अब उनकी नज़रें 2019 में इंग्लैंड में होने वाले विश्व कप पर टिकी हुई हैं और वर्ल्ड कप पर अपना कब्ज़ा जमाने के लिए कड़ी मेहनत से तैयारी में लगे हुए हैं। इतना खेलने के बावजूद भी दिनेश अफसोस से कहते हैं कि केन्द्र सरकार खिलाड़ियों को अच्छी सुविधाएं देने के जो दावे करती है, उसकी हकीकत यह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर और सरकार विकलांग खिलाड़ियों के लिए कुछ नहीं कर रही और अगर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पास जाकर अपना हक मांगते हैं तो वह केन्द्र सरकार के पास भेजते हैं और हम विकलांग खिलाड़ी उन दोनों के बीच पिसते आ रहे हैं, जबकि हम भी देश के दूसरे खिलाड़ियों की तरह देश के लिए खेल कर देश का नाम रौशन कर रहे हैं। दिनेश कुमार हमेशा ऋणी रहते हैं अपने गुरु संजय भारद्वाज, कोच लाल बहादुर शास्त्री क्लब दिल्ली के जिनके योग्य नेतृत्व के कारण ही वह क्रिकेट की दुनिया में मंज़िलों तक पहुंच सके हैं।