दीपा करमाकरपहले किस्मत ने ठगा, अब चोट से लाचार 

 प्रोडूनोवा में लैंडिंग के समय जिमनास्ट को वोल्ट से दूसरी तरफ मुंह करना होता है। हैंडस्प्रिंग 540 प्रोडूनोवा जितना खतरनाक तो नहीं है, लेकिन दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी के अनुसार यह खतरे व कठिनाई के मामले में प्रोडूनोवा के बाद दूसरे स्थान पर है।
हैंडस्प्रिंग 540 में भी प्रैक्टिस से प्रतियोगिता तक 100 प्रतिशत एकाग्रता की आवश्यकता होती है । एक जिमनास्ट को बच्चे जैसा मनोविज्ञान चाहिए कि इस तरह परफॉर्म करे जैसे उसे कोई देख ही न रहा हो। जरा भी मन भटकना नहीं चाहिए। क्या 24 वर्ष की आयु में दीपा के लिए ऐसा करना संभव है?  नंदी का कहना है, ‘कठिन वोल्ट करने के लिए दीपा के पास जीत की मानसिकता है। उसमें लग्न और आग है। महत्वपूर्ण यह है कि इस ऊर्जा को उसकी प्रैक्टिस में लाया जाये। प्रोडूनोवा उसके लिए कठिन नहीं है। जब भी वह करती है उसकी लैंडिंग परफेक्ट आती है। आज पॉवर जिम्नास्टिक का दौर है। पहले जिमनास्ट हल्के हुआ करते थे...42-45 किलो। अब अधिकतर का वजन 50 किलो से अधिक है। आयु भी कोई समस्या नहीं है, ज्यादातर जिमनास्ट 25 साल से अधिक के हैं। कठिनता का स्तर बढ़ गया है, प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है, लेकिन ऐसी कोई वजह नहीं है कि दीपा 24 की आयु में जीत नहीं सकती।’ कुछ अन्य बातें भी दीपा के पक्ष में जाती हैं। सबसे पहली बात यह कि चोट ने उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित नहीं किया है। दूसरा यह कि उन्हें कठिन चुनौतियां पसंद हैं, खासकर इसलिए कि जिम्नास्टिक में यही अधिक अंक प्रदान करता है। पहले वह सुकाहरा 720 (डबल ट्विस्ट) व सुकाहरा 900 (ढाई ट्विस्ट) किया करती थीं। अंतिम यह कि जहां अधिकतर उच्चस्तरीय एथलिट दिन में औसतन छह घंटे प्रैक्टिस करते हैं, वहीं दीपा की प्रैक्टिस आठ घंटे तक चली जाती है। अपने फन में दक्ष होना दीपा के लिए मुश्किल नहीं है और इसके लिए वह कठिन परिश्रम भी कर रही है। लेकिन एक राष्ट्र की उम्मीदों का प्रबंधन करना आसान नहीं है, खासकर जब वह दीपा के रिओ में शानदार प्रदर्शन से अभी तक न उभरा हो। राष्ट्रकुल खेलों (ग्लासगो, 2014) व एशियाई चैंपियनशिप (हिरोशिमा, 2015) में कांस्य पदक प्राप्त करने वाली दीपा रिओ 2016 में सैकेंड के 100 वें हिस्से से पदक चूक गई थीं और विश्व चैंपियनशिप (ग्लासगो, 2015) में वह पांचवें स्थान पर थीं।बाहरी दुनिया के लिए जिम्नास्टिक एक भव्य शो से अधिक कुछ नहीं है, जिसमें जिमनास्ट का कठिन रूटीन भी सामान्य प्रतीत होता है, जैसे कुछ खास बात न हो। दर्शकों को इसका अंदाजा नहीं होता कि इस खेल में शुरू से अंत तक खतरा ही खतरा है, सैकेंड भर की देरी और जिमनास्ट का करियर (शायद जीवन भी) समाप्त। लेकिन इसके बावजूद उसे अपना परफॉरमेंस मुस्कान के साथ खत्म करना होता है। चुनौती सिर्फ  खेल मैदान की ही नहीं है। चर्चित प्रोडूनोवा वोल्ट पर परफॉर्म करने वाली दीपा जिमनास्टिक के इतिहास में दूसरी जिमनास्ट हैं। वह भारत की पहली जिमनास्ट हैं जिन्होंने न केवल रिओ ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया बल्कि फाइनल में अपनी छाप भी छोड़ी। रिओ में वह बहुत ही मामूली अंतर से ओलम्पिक पदक से चूक गयीं, लेकिन लाखों लोगों का उन्होंने दिल जीत लिया। हर तरफ  से तारीफ  मिली व इनाम की घोषणाएं हुईं। लेकिन इस सबके बीच दीपा को केवल एक ही टिप्पणी याद है और वह तारीफ  नहीं है। दीपा के अनुसार, ‘फेसबुक पोस्ट पर जब हर कोई मुझे मुबारकबाद दे रहा था तो एक व्यक्ति ने कहा कि दीपा को ऐसी कास्ट्यूम पहनने के लिए शर्म आनी चाहिए। हालांकि इसके जवाब में किसी ने कहा कि वह बुर्का पहनकर तो मुकाबले में हिस्सा नहीं ले सकती, लेकिन मुझे फिर भी बहुत बुरा लगा। मैंने पदक लगभग जीत ही लिया था, फिर भी किसी को वह पोशाक बुरी लगी जो मैंने पहन रखी थी।’ भारत में जिम्नास्टिक्स पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। दीपा के प्रदर्शन से अब भारतीय भी इसमें भावनात्मक रूप से जुड़ गये हैं। इसलिए उन्हें बेसब्री से प्रतीक्षा है कि गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया में अप्रैल में होने जा रहे राष्ट्रकुल खेलों में उनका प्रदर्शन कैसा रहता है। वह बताती हैं, ‘मैंने यह नहीं कहा कि मैं निश्चित ऑस्ट्रेलिया जाऊंगी। मैंने अभी ट्रेनिंग शुरू की है और इसका फैसला सर (नंदी) करेंगे। मैं वहां पर्यटक के रूप में नहीं जाना चाहती, अच्छा प्रदर्शन करने के लिए जाना चाहती हूं।’