केजरीवाल सरकार को धक्का

चुने हुए विधायकों को लाभ वाला पद देने के मामले में दिल्ली की केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को नि:संदेह एक बड़ा झटका लगा है। यह सरकार लगभग गत तीन वर्षों से सत्ता में है, परन्तु इस समय के दौरान यह बार-बार छोटे-बड़े विवादों में घिरती रही है। दिल्ली अन्य राज्यों की तरह आम राज्य नहीं, अपितु एक केन्द्र शासित प्रदेश है। इसलिए यहां की सरकार के अधिकार अन्य राज्य सरकारों जैसे नहीं हैं, परन्तु केजरीवाल को पहले दिन से ही यह बात रास नहीं आई। इसलिए उन्होंने संवैधानिक दायरों के भीतर प्रशासन नहीं चलाया, अपितु अपने ढंग-तरीके से इनको तोड़ने का प्रयास किया है। इस केन्द्र शासित प्रदेश में उप-राज्यपाल तथा दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्रों का बंटवारा किया गया है, परन्तु ऐसा संवैधानिक बंटवारा केजरीवाल को मंजूर नहीं है। इसी कारण उनके उप-राज्यपालों से संबंध तनावपूर्ण बने रहे हैं। पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग बहुत सुलझे हुए प्रशासक थे, परन्तु उनका अक्सर मुख्यमंत्री तथा उनके साथियों के साथ तनाव बना रहता था। अंतत: ऐसी स्थिति में उनके लिए कार्य करना मुश्किल हो गया और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यही हाल नये उप-राज्यपाल अनिल बेजल के साथ हुआ, जिनके अक्सर दिल्ली सरकार के साथ टकराव के समाचार प्रकाशित होते रहे हैं। यहां तक कि सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली सरकार को झटका देते हुए कहा था कि सरकार को अपने संवैधानिक दायरे में रहकर कार्य करना चाहिए। शुरू से ही आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा इस बात को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा। फरवरी, 2015 में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी को 70 सीटों में से 67 सीटें मिली थीं। इतनी बड़ी जीत की शायद इस पार्टी को स्वयं भी उम्मीद नहीं थी। इस बड़ी जीत ने केजरीवाल के पांव निश्चय ही ज़मीन से उठा दिये। सरकार बनने के कुछ समय बाद ही उन्होंने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिवों का दर्जा दिला दिया, जो संविधान के अनुकूल नहीं था। इसको लाभ वाला पद माना जाता है, परन्तु केजरीवाल ने इस संवैधानिक व्यवस्था की परवाह नहीं की और इस संबंधी विधानसभा में बहुमत से कानून बना दिया। परन्तु तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। इस संबंधी सरकार द्वारा उप-राज्यपाल के साथ भी कोई मशिवरा नहीं किया गया था। इस संबंधी अदालत में कुछ याचिकाएं दायर हुईं, जिनके फैसले सरकार के इस कदम के खिलाफ आये। इस आधार पर ही चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति को दिल्ली के 20 विधायकों को फारिग करने का प्रस्ताव भेजा गया है। गत समय के दौरान भी बार-बार आम आदमी पार्टी के विधायकों के ‘कारनामों’ के चर्चे होते रहे हैं। उनमें से कईयों पर मारपीट और छेड़छाड़ के पर्चे दर्ज होते रहे। यहां तक कि उन पर अपने पदों का दुरुपयोग करने तथा भ्रष्टाचार करने के दोष भी लगते रहे हैं। सरकार के प्रशासनिक कार्यों की आलोचना भी आज शिखर पर पहुंच चुकी है। तकनीकी तौर पर चाहे इन 20 विधायकों की सीटें खाली होने के बाद भी 45 विधायक बचे रहेंगे और सरकार भी चलती रहेगी परन्तु नैतिक तौर पर लगातार विवादों में घिरे रहने के कारण इस सरकार की साख कमज़ोर पड़ती जा रही है और पार्टी का प्रभाव बेहद कम हो चुका है। नि:संदेह दिल्ली वासियों ने इस नई बनी आम आदमी पार्टी पर जो उम्मीदें लगाई थीं, वह निराशा में बदलती दिखाई देती हैं, जिससे इस पार्टी का भविष्य और भी धुंधला प्रतीत होने लगा है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द