सोनजूही की तलाश में भटकता एक लघुकथा-संग्रह

समीक्षा हेतु पुस्तक : दलित जीवन की लघुकथाएं (लघुकथा संग्रह), लेखक का पता : सादुलपुर (राजगढ़), ज़िला चुरू, राजस्थान—331023, प्रकाशक : गौतम बुक सैंटर, 1/4446 राम नगर एक्सटेंशन, गली नं. 4, डा. अम्बेदकर गेट, मंडोली रोड, शाहदरा, दिल्ली—110032, मूल्य : 100 रुपए। डा. रामकुमार घोटड़ लघुकथा के धरातल पर बेहद सशक्त हस्ताक्षर हैं, यानि रामकुमार घोटड़ के बिना लघुकथा के किसी भी स़फर का पूर्ण हो पाना सम्भव प्रतीत नहीं होता। खासतौर पर दलित अस्मिता पर तो उनकी कलम लघुकथा के कैनवास पर लघुकथाएं निरन्तर घड़ती चली जाती है। साहित्य को आप किसी जाति-प्रेम के सांचे में न बांधें तो तय है कि डा. रामकुमार घोटड़ की लघुकथाएं पाठक के दिल-दिमाग, दोनों को छूते हुए, सरशार करती हुई आगे बढ़ती हैं। यह भी कि डा. राम कुमार घोटड़ की लघु-कथाओं में जैसा भी सत्य/कथ्य/तथ्य वर्णित होता है, वह तमाम देखा, भोगा और भाला हुआ प्रतीत होता है। डा. घोटड़ की लघुकथाएं अंतिम चरण पर जब पहुंचती हैं तो पहाड़ी नदिया की भांति बहुत कुछ साथ लिये चलते हैं, जबकि मैदानी नदी की भांति वे बहुत कुछ अपने पीछे छोड़ते हुए भी आगे बढ़ती जाती हैं। इस बात को इस एक लघुकथा के उदाहरण से समझा जा सकता है। यहां पानी में बहुत कुछ पीछे वाला है और अब बहुत कुछ आगे वाला भी दिखाई देने लगा है (पृष्ठ 62 ‘फीस माफी’)। संग्रह में कुल 98 लेखकों की सवा सौ से अधिक लघुकथाएं 120 पृष्ठों में सिमटी हैं। बहुत छोटी-छोटी  लघुकथाएं सतसैया की दोहरों जैसी... यानि पढ़ने के साथ ही फटाक से अपना असर दिखा जाती हैं। लघु कथाओं को प्रस्तुत करने का अन्दाज़ भी अति सुन्दर बन पड़ा है। संग्रह के प्रारम्भ में लघुकथा के महत्व को दर्शाते भागीरथ का लेख और घोटड़ जी का अपना सम्पादकीय सोने पर सुहागे जैसा बने हैं। कुल मिला कर गुलाबी रंग की फूल-पत्तियों वाला यह संग्रह सलेटी रंग की पीड़ाओं का एहसास देता सोनजूही की तलाश करते हुए प्रतीत होता है।
—सिमर सदोष