धर्म की खातिर शहीदी जाम पी गए  वीर ह़क़ीकत राय

वीर ह़क़ीकत राय का जन्म 22 जनवरी सन् 1716 ई. दिन शनिवार, पिता श्री भागमल के घर, माता कौरां की कोख से हुआ। उनके दादा का नाम श्री नंद लाल तथा पिता का नाम श्री भागमल था। वह कसूर के रहने वाले थे तथा पठानों के ज़ुल्म से परेशान होकर स्यालकोट आ गए। एक दिन अचानक कुछ मुसलमान लड़के बाल ह़क़ीकत राय से झगड़ा कर बैठे। बच्चों की लड़ाई गाली-गलौच तक जा पहुंची। इस दौरान एक मुफ्ती वहां से जा रहा था। उसने झगड़े का कारण पूछा। मुसलमान लड़कों ने कहा, इसने बीबी फातिमा का नाम लेकर गाली दी है।’
‘क्यों बालक, तुम ने बीबी फातिमा को गाली दी है?’ मुफ्ती ने पूछा। बाल ह़क़ीकत राय ने कहा, ‘पहले इन लड़कों ने दुर्गा भवानी को गाली दी थी।’ मुफ्ती ने ज़ोर देकर कहा, ‘मैं केवल यह पूछ रहा हूं कि तू ने गाली दी? मैंने यह नहीं पूछा, कि तू ने पहले या बाद में गाली दी।’
वीर हकीकत राय ने उसी प्रकार निर्मकिता के साथ उत्तर दिया मैंने वैसे ही कहा, जैसे इन लड़कों ने मां भवानी के बारे में कहा था।’ 
सो, यह तुम्हारा इकबाल-ए-जुर्म है, और इसकी सज़ा केवल एक ही है- कबूल-ए-इस्लाम। अगर मुल्ज़िम इन्कारी है तो गर्दन काट दी जाएगी। 
यह बात सारे क्षेत्र में जंगल की आग की तरह फैल गई। चारों ओर हाहाकार मच गई। ह़क़ीकत राय को पकड़ लिया गया। उसकी माता कौरां अपने पुत्र की जान बचाने के लिए तरलो-मच्छी होने लगी। स्यालकोट की भरी कचहरी में माता कौरां झोली फैलाकर कह रही थी कि मेरी सारी दौलत, मेरा मकान, मेरी जायदाद, सब कुछ ले लो परन्तु मेरी आंखों के नूर, मेरे लाडले की जान बख्श दो। अगर यह कसूरवार है तो मैं मुआफी मंगती हूं। मेरा यह एक ही पुत्र है। मुझे आंखों से अंधी मत करो, मुफ्ती साहिब, आप भी बाल-बच्चेदार हैं। मगर कौन सुनता पिंजरे में तोते की आवाज। किसी ने भी बांह न पकड़ी। मुफ्ती ने कड़कती आवाज़ में फिर कहा, ‘क्यों छोकरे, तुझे इस्लाम कबूल है?’
 ‘मज़हब बदला नहीं जाता इसलिए मैं मज़हब बदलने के लिए तैयार नहीं।’ हकीकत राय ने गर्जदार आवाज़ में कहा।  तब मुफ्ती ने कहा, इसकी ज़ुबान से साज़िश की बू आती है। यह हकूमत के लिए किसी समय भी खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए इस की सज़ा बहाल रखी जाए। भागमल तथा उसके रिश्तेदारों ने मुफ्ती के पास सिफारिशें कीं, मिन्नतें भी कीं परंतु वह टस से मस न हुआ।
अगले दिन कत्लगाह में फिर ह़क़ीकत राय से पूछा गया। कई लालच दिए गए। खूबसूरत लड़की, चार गांव जागीर, उच्च पद और पांच हज़ार मोहरें सरकार की ओर से देने की घोषणा करते हुए मुफ्ती ने कहा- बरखुरदार, इस्लाम कबूल कर लो। तुम्हारी मां का दु:ख हमसे देखा नहीं जाता। मान जाओ लड़के, मान जाओ, मुफ्ती अब तरस खा कर कह रहा था। वीर ह़क़ीकत राय ने अपने बुलंद हौसले के साथ कहा,‘क्या इस्लाम कबूल कर लेने से मौत नहीं आएगी? मौत ने तो आना ही है एक दिन।’ वीर ह़कीकत राय ने अब अपनी मां से मुखातिब होते हुए कहा-अब तो घोड़ी लेकर आओ, बारात चढ़ने दो (मां), इस से अच्छा मौका फिर नहीं आना। तुम समझ लेना मेरी मां, बेटा  धर्म के लिए कुर्बान हो गया। ह़क़ीकत धर्म नहीं छोड़ सकता, जान दे सकता है मां! माताएं तो बच्चों को सेहरे बांध कर विदा करती आई हैं। क्षत्राणियां गाने बांध कर विदा करती हैं जंग के लिए अपने बेटों को। मां तेरी आंखों में आंसू हैं, साफ कर दो। पोंछ दो आंसू। मेरा रास्ता मत रोको। मंज़िल बहुत ़खूबसूरत है, मुझे आज झूल लेने दो। यह घड़ी फिर नहीं आएगी मां, मेरी अगर कोई भाभी होती, तो मेहंदी भरे हाथों से काजल डालती। मां, मेरी कोई बहन होती तो मेरी घोड़ी की वागें गूंथती। पिता जी को कहो, मोहरों की  करें, पुत्र घोड़ी चढ़ा है। ज़िंदगी में इससे खूबसूरत दिन कभी नहीं आना। अपनी बहू को कहना, फिर मिलेंगे। मैं फिर आऊंगा। ह़क़ीकत राय मुस्कुरा रहा था। उसके चेहरे पर एक लौ थी, एक दिव्य शक्ति का-नूर। दूसरे दिन मुफ्ती के कहने पर वीर ह़क़ीकत को लाहौर लाया गया। बंसत पंचमी वाले दिन जल्लादों के आगे पेश किया गया। ह़क़ीकत राय ने खुश होकर कहा, ‘मैं खुद ही चलता हूं ़कत्लगाह तक। मौत का दिन ही तो सबसे खूबसूरत दिन होता है।’ इस बालक को देखकर जल्लादों का हृदय भी कांप गया, ‘खुदाया रहम कर। हम एक बेकसूर, बेगुनाह मासूम बालक की गर्दन काटने लगे हैं।’ ह़क़ीकत राय ने स्वयं अपनी गर्दन पेश कर दी। जल्लादों ने एक ही झटके से शरीर से गर्दन अलग कर दी।
ह़क़ीकत राय शहीदी का जाम पी गया परंतु उस का मुबारक नाम ़कयामत तक जिं़दा रहेगा। धर्म की खातिर शहीद होने वाले वीर ह़क़ीकत राय का नाम भारत के धर्म-इतिहास में ध्रुव तारे की भांति चमकता रहेगा। उसकी कुर्बानी भारत के नवयुवकों के लिए पथ-प्रदर्शक का काम करती रहेगी।
बसंत प्रत्येक वर्ष आएगी और ह़क़ीकत राय की समाधि पर प्रत्येक वर्ष श्रद्धा के फूल खिलते रहेंगे। माताएं मन्नतें पूरी करने के लिए आया करेंगी कि उनकी भी कोख से ह़क़ीकत राय जैसा बेटा पैदा हो। पंजाब व भारत को गर्व है ऐसे शहीदों पर। शहीदों का खून धर्म का बीज होता है। प्रार्थना सभा, सरस्वती मंदिर, किला मंडी, बटाला, ज़िला गुरदासपुर की ओर से प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के उत्सव पर वीर ह़क़ीकत राय का शहीदी दिवस भारी मेले के रूप में धूमधाम एवं श्रद्धा से मनाया जाता है। सारा दिन देसी घी का लंगर चलता है।
-बलविन्द्र ‘बालम’