जानिए प्रार्थना का फलसफा

पुराणों में एक कथा आती है । एक पपीहा पेड़ पर बैठा था । उसे बैठे देख एक शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया । आकाश से एक बाज भी उस पपीहे को ताक रहा था । पपीहा बेचारा क्या करता ? कोई और चारा न देख पपीहे ने प्रभ से प्रार्थना की- ‘‘हे प्रभु ! तू सर्वशक्तिमान है । अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है। अब तू ही मेरा रखवाला है।’’  फिर पपीहा प्रार्थना में लीन हो गया । उस वक्त वृक्ष के पास से एक साँप निकला । उसने शिकारी को डस लिया । शिकारी का निशाना चूका । उसका तीर आकाश में उड़ रहे बाज को जा लगा । शिकारी नीचे गिरा, ऊपर से बाज भी गिर गया । पपीहा अपनी प्रार्थना से बच गया । अत: यह कहना कि इस सृष्टि का कोई मालिक नहीं, लगभग गलत है । यह सृष्टि किसी सामर्थ्यवान संचालक की आज्ञा तथा निर्देश से चलती है और पवित्र मन से की गई प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती । प्रार्थना का मस्तिष्क से गहरा संबंध है । हमें कई तरह की प्रार्थनाएँ सीखनी चाहिएं । इससे शरीर में जागृति, चेतना एवं स्फूर्ति आती है । मन मस्तिष्क को दूषित विचारों से मुक्त रखने के लिए तथा हमारे विचारों की सोच सकारात्मक बनाने के लिए भी यह जरूरी है । 
एक बार एक गाँव में एक कुम्हार ने देखा कि एक चिड़िया ने ईंटों के ढेर के बीच घोंसला बना लिया है तथा उसमें अंडे भी दिये हैं । उसने सोचा, ईंटों को पकाने से पूर्व इसका ध्यान रख लूँगा, पर वह भूल गया । उसने ईंटों में आग लगा दी । फिर उसे ध्यान आया कि उसमें चिड़िया और अंडे भी हैं । अब क्या होगा ? वह भगवान से प्रार्थना करने लगा । लोगों ने कहा, ‘पागल हो गया है? अब चिड़िया तथा अंडों का बच पाना मुश्किल है।’ पर कुम्हार ने उम्मीद नहीं छोड़ी । ईंटों की आग जब बुझी तो उसने देखा, नीचे आग पहुँची ही नहीं थी। उसने चिड़िया और अंडों को सकुशल देखा तो वह कह उठा- ‘देखा, मैंने भगवान से प्रार्थना की थी। उसी कारण ये बच गए।’ इस तरह सकारात्मक सोच को बढ़ावा देती है प्रार्थना ।
ध्यान करने के पहले भी प्रार्थना की जाती है । ये प्रार्थनाएं हमारे संतों, ऋषियों ने इस तरह लिपिबद्ध की हैं कि वे एक निश्चित परिप्रेक्ष्य में हमारे शरीर पर सही ढंग से काम कर सकें । आज बाजार में ध्यान, योग, तनाव मुक्ति, स्वस्थ कैसे रहें आदि विषयों पर ढेरों पुस्तकें मिल जाती हैं, लेकिन 400 साल पहले संत रामदास द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है । उसके मुकाबले आज तक की कोई पुस्तक बाजार में नहीं आई । उन्होंने इस पुस्तक में यह भी कहा है कि एक घंटे तक निर्विकार होकर बैठना इतना सहज-सरल भी नहीं होता, पर यदि आप प्रार्थना या कोई मंत्रोच्चार करें तो यह कार्य सुविधाजनक हो सकता है ।
वैसे तो हर व्यक्ति की नींद की जरूरत अलग-अलग होती है । दिन के 24 घंटों में से कई घंटे तो काम की व्यस्तता में गुजर जाते हैं, लेकिन भरपूर नींद के लिए आपको समय निकालना जरूरी है । ध्यान अपने आप में घनी नींद की तरह है और इससे नींद अत्यंत तीव्रता के साथ आती है । हम एक घंटा ध्यान करके मस्तिष्क की तरंगों को व्यवस्थित कर सकते हैं जबकि नींद के माध्यम से ऐसा करने में चार घंटे का समय लगता है । अगर आप नियमित रूप से ध्यान एवं प्रार्थना करें तो आपको चार-पाँच घंटे की गहरी नींद पूरी ताजगी दे सकती है।
हाल में हुए वैज्ञानिक अध्ययन से भी इस बात की पुष्टि होती है कि प्रार्थना से रोगियों को ठीक करने में मदद मिलती है। मिडा अमरीका हार्ट इंस्टीट्यूट में हाल में भर्ती हुए कोरोनरी यूनिट के 1000 से अधिक हृदय रोगियों पर अध्ययन किया गया । इनमें से 484 रोगियों को प्रार्थना करने वाले दल को सौंपा गया और 529 को सामान्य देखभाल करने वाले दल को । प्रार्थना वाले दल को रोगियों का केवल नाम बताया गया था, जाति नाम नहीं । वे चार सप्ताह तक उनके लिए प्रार्थना करने वाले थे । प्रार्थना करने वाले व्यक्तियों को ईश्वर के अस्तित्व में उनके दृढ़ विश्वास के आधार पर चुना गया था । इस अध्ययन से प्रार्थना वाले दल के रोगियों को कम समस्याओं का सामना करना पड़ा ।
इसी तरह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (दिल्ली) में शल्यक्त्रिया के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. अनुराग श्रीवास्तव कहते हैं कि हर बार ऑपरेशन के पहले मैं प्रार्थना करता हूँ कि सब ठीक हो । निदान चिकित्सा की विशेषज्ञा डॉ. अंजलि मिश्रा भी अपने अनुभवों के आधार पर कहती हैं कि यदि प्रार्थना पूरे मन से की जाए  तो उसके  सकारात्मक  प्रभाव जरूर पड़ते हैं । उनका कहना है कि यदि प्रार्थना  में  ऊर्जा  लगाएँ और ध्यान केंद्रित करें तो फल जरूर मिलता है । दिल्ली के चिन्मयानंद मिशन के प्रमुख स्वामी ज्योतिर्मयानंदजी का भी कुछ ऐसा ही मत है । वह कहते हैं कि आपकी आस्था प्रार्थना में तीव्र है तो परिणाम भी अनुकूल ही मिलता है ।
दरअसल, प्रार्थना हमें ईश्वर से जोड़ती है और जब वह जोड़ती है तो ईश्वर हमारे साथ हर पल हो जाते हैं और जिसके साथ भगवान होगा, दुनिया का कोई भी सत्य उससे छुपा नहीं रह सकेगा । जीवन सत्य को जानने का ही एक और नाम है ।  सत्य तक पहुँचने के कई रास्ते हो सकते हैं, और प्रार्थना भी उनमें से एक है ।
- रेणु जैन