श्री कृष्ण ने भी की थी शिव उपासना

कृष्ण वन्दे जगद्गुरु-जिसका अर्थ है कि कृष्ण सभी वैभव, सुख व संपदा प्रदान करने में सक्षम हैं, जिन्हें पूरे विश्व का गुरु कहा गया है।
विष्णु का अवतार कहलाने वाले व धर्म के संस्थापक के रूप में माने जाने वाले श्री कृष्ण  खुद एक शिव-भक्त थे। जब भी कोई मुश्किल आती तो वह शिव की शरण में ही जाना पसंद करते थे। उन्हें शिवोपासना से जो पुत्र प्राप्त हुआ, उसका नाम जाम्ब था। रानी जाम्बवती के कहने पर जब श्री कृष्ण दोबारा उपमन्यु मुनि के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की तो उपमन्यु मुनि ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। कृष्ण ने अपने भक्त अर्जुन को भी शिव आराधना करने की शिक्षा दी और उनके विभिन्न स्वरूपों से अर्जुन को परिचित करवाया। श्री कृष्ण का मानना था कि शिव की उपासना में ही हर बाधा का तोड़ है।
इस भक्ति का उल्लेख व्यास मुनि ने भी किया है जिसमें उन्होंने श्री कृष्ण को शिवभक्त बताया है। व्यास जी के अनुसार श्री कृष्ण ने हिमालय में बिना कुछ खाए-पिए, भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों रुद्र, ऋषभ, जटाधर, ईशान आदि की उपासना की थी। श्री कृष्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि हे नारायण! तुम सभी देवताओं, गंधर्वों व मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ और बेहद बलवान कहलाओगे। महाशिव पुराण की ‘ज्ञान संहिता’ में भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि श्री कृष्ण ने शिव अराधना की थी और उस दौरान भगवान शिव के शिवलिंग पर रोज 108 बेल पत्र अर्पित किए थे। इस कारण उस शिवलिंग का नाम ‘बिल्वेश्वर शिवलिंग’ पेड़ गया। आराधना से प्रसन्न होकर शिव जी ने भी उन्हें अनेक आशीर्वाद एवं वरदान दिए। वे महाभारत के अनुशासनिक पर्व में दिए गए हैं। 
सभी दिए गए वरदान इस प्रकार हैं-
धर्म में दृढ़ता बनी रहे, विश्व में मान, पद-प्रतिष्ठा यश व कीर्ति प्राप्त हो, शिव का स्नेह हमेशा प्राप्त हो, श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति हो, युद्ध में विजय, प्रत्येक काम में दक्षता प्राप्त हो। स्कंद पुराण में श्री कृष्ण ने शिव का महत्व बताते हुए कहा है कि जो कोई मेरी भक्ति करेगा, श्रेष्ठ भक्त कहलाएगा परंतु मुक्ति प्रदान करने का काम शिव का है, अत: उसे मुक्ति शिव के नाम से ही मिलेगी। इसलिए भगवान कृष्ण ही शिव हैं और शिव ही श्री कृष्ण हैं। (युवराज)
-उमेश कुमार साहू