लाहौर की नई पीढ़ी के लिए बाबे की मढ़ी बनी बुझारत

अमृतसर, 22 जनवरी (सुरिन्द्र कोछड़) : शेरे-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के शासन के समय मेला बसंत पंचमी लाहौर में शालीमार बाग के पास करवाया जाता था, उस दिन हिन्दू-सिख बाग के पास मौजा कोट खोजा सैय्यद में उपस्थित वीर हकीकत राय की समाधि, जिसको ‘बावे की मढ़ी’ भी कहा जाता था, पर माथा टेकते तो मुसलमान वहां उपस्थित माधो लाल हुसैन की मज़ार पर सजदा करते और बाद में इकट्ठे बैठ कर मेले का आनंद उठाते थे। लाहौर की मौजूदा पीढ़ी बसंत मेले से सम्बन्धित न तो उक्त इतिहास से अवगत है और न ही लाहौर के ज्यादातर साहित्य प्रेमियों को समाधि के अस्तित्व के बारे में ही कोई जानकारी है। मौजूदा समय लाहौरियों के लिए मेला बसंत का अर्थ केवल पतंग उड़ाना रह गया है। जिसपर भी पाकिस्तान सरकार ने पाबंदी लगाई हुई है। इतिहासकारों के अनुसार लाहौर में मेला बसंत के मौके पर महाराजा रणजीत सिंह स्वयं हाथी पर बैठ कर मेले में आया करते थे और दिल खोल कर लोगों पर सिक्कों की वर्षा करते थे। समारोह में महाराजा सहित उनके वज़ीर, जरनैल, फौज और आम लोग पीले (बसंत) रंग के कपड़े पहन कर मेले में शिकरत करते थे। यह भी वर्णनीय है कि हकीकत राय जिसको उसकी बहादरी के कारण ‘वीर’ शब्द से सम्बोधित किया जाता है, की सियालकोट में इसलामिया मदरसे के जमाती मुस्लमान लड़कों ने हजरत मोहम्मद साहिब की पुत्री बीबी फातिमा के बारे में एतराज़योग्य शब्द प्रयोग करने का आरोप लगा कर शिकायत मौलवी से की। मामला शहर के प्रबंधक काज़ी अमीर बेग सामने पहुंचने पर उसने बिना सच्चाई जाने हकीकत राय को फांसी लगाने की सज़ा सुना दी। काज़ी के फैसले के बाद हकीकत राय को पंजाब के गवर्नर खान बहादर नवाब ज़करीया खान की अदालत में लाहौर में पेश किया गया। जिस पर उसने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि हकीकत राय अपनी गलती स्वीकार करने के बाद इस्लाम कबूल करके मुस्लमान बन जाता है तो इसकी मौत की सज़ा माफ कर दी जाएगी। हकीकत राय ने इस्लाम कबूल करने से इन्कार कर दिया। जिस पर बसंत पंचमी वाले दिन जल्लाद ने तलवार से उसका सर धड़ से अलग कर दिया। लाहौर में वीर हकीकत राय का संसकार करके वहीं उसकी समाधि बना दी गई। यह समाधि मौजूदा समय में अटारी सीमा से लाहौर की तरफ साढ़े तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर मौज़ा कोट खोज़ा सैयद (खोजे शाही) आबादी में है। इस क्षेत्र को शाह बहलोल भी कहते हैं। कालू राम नामक एक श्रद्धालु ने समाधि के स्थान पर मेला बसंत पंचमी करवाने की शुरुआत आज से करीब 250 वर्ष पहले की। देश के विभाजन के बाद इस मेले पर पाबंदी लगा दी गई। इस समाधि के पास ही हकीकत राय को फंदा लगाने वाले जकरीया खान की मां बेगमखान, पत्नी बाहू बेगम, पुत्र जाहीया खान और स्वयं जकरीया खान का मकबरा बना हुआ है।