अफशां आशिक हाथ का पत्थर कैसे बना फुटबॉल..!

पिछले साल अप्रैल में एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें लम्बे कद की एक बीए की छात्रा कमर में बस्ता लटकाये, चेहरे पर नकाब बांधे, श्रीनगर की सड़कों पर जम्मू-कश्मीर पुलिस पर पथराव कर रही थी। यह अफशां आशिक थी- जम्मू-कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की मौजूदा कप्तान और गोलकीपर। इस घटना का राष्ट्रीय सुर्खियों में आना स्वाभाविक था। इस पर खूब चर्चा हुई। लेकिन आज अफशां आशिक को इस घटना पर बेहद अफसोस है और अब जीवन में उनका केवल एक ही सपना है कि वह फुटबॉल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करें। इसमें कोई शक नहीं है कि वह प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं और इसलिए राज्य व केंद्र सरकारें उनको सहयोग कर रही हैं। अफशां आशिक फिलहाल मुंबई में प्रैक्टिस कर रही हैं। इस मकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने जो अपनी छोटी सी जिंदगी में संघर्ष किये हैं, वह किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं हैं। शायद इसलिए उनकी बायोपिक भी बन रही है ।अफशां आशिक पर ‘होप सोलो’ नामक फिल्म बना रहे निर्देशक मनीष हरिशंकर का कहना है, ‘अफशां आशिक द्वारा पत्थर फेंकने की तस्वीरें मैंने भी देखी थीं, लेकिन बाद में जब मैंने पढ़ा कि वह जम्मू-कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान भी हैं तो मैंने उन पर फिल्म बनाना तय किया। जब मैंने जून में उनसे मुलाकात की और उनकी कहानी सुनी कि वह भारत के लिए खेलना चाहती हैं, तो मुझे महसूस हुआ कि उनपर फिल्म बनाने का मेरा फैसला सही है। मुझे इस बात पर गर्व होता है कि वह जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए पोस्टर गर्ल बन गई हैं और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती व केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह उनका समर्थन कर रहे हैं कि भारत के लिए खेलने का उनका सपना साकार हो जाये।’
अफशां आशिक का रुझान बचपन से ही खेलों की तरफ था और इसी सफर में वह फुटबॉल को अधिक पसंद करने लगीं, जिसे अब वह पिछले पांच वर्ष से नियमित खेल रही हैं। उनके लम्बे कद की वजह से उनके कोच ने उन्हें गोलकीपर बनने का सुझाव दिया। वह बताती हैं, ‘मेरा मानना है कि गोलकीपर टीम की रीढ़ की हड्डी होता है। फिर मैं अमेरिकी टीम की कप्तान व गोलकीपर होप सोलो से बहुत अधिक प्रभावित हूं, इसलिए भी गोलकीपर हूं। कभी कभी जब मुझे लगता है कि विपक्षी टीम हावी हो रही है तो मैं आगे बढ़कर फॉरवर्ड भी खेलती हूं। साथ ही मैं गोलपोस्ट की रक्षा की जिम्मेदारी किसी और पर भी नहीं छोड़ सकती।’अफशां आशिक की प्रेरणा को ध्यान में रखते हुए निर्माता संजय ग्रोवर (पुत्र गुलशन ग्रोवर) ने उनकी बायोपिक का नाम ‘होप सोलो’ रखा है। इसे ‘नीरजा’ व ‘मैरी कोम’ के लेखक साईंवन कुंदरस लिख रहे हैं। यह फिल्म हिंदी व अंग्रेजी में बनाई जा रही है। 21वीं सदी में भी अधिकतर भारतीय परिवार इस पक्ष में नहीं हैं कि उनकी लडकियां स्पोर्ट्स में करियर बनाएं। फिर अगर आप मुस्लिम परिवार से संबंधित लड़की हैं और जम्मू-कश्मीर जैसे अशांत, पिछड़े राज्य से ताल्लुक रखती हैं तो यह नीम पर करेला चढ़े जैसी स्थिति हो जाती है। इसलिए शुरुआत में अफशां आशिक के परिवार ने भी उनके करियर चयन का विरोध किया। वह बताती हैं, ‘मैं बहुत जिद्दी हूं। मेरे डैड मुझे बहुत प्यार करते हैं, थोड़ा समझाने पर, थोड़ी नाराजगी दिखाने पर वह आखिरकार मान ही गये। सपने साकार करने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है।’पेरेंट्स द्वारा विरोध की बड़ी वजह यह थी कि अफशां आशिक को दूसरे राज्यों व शहरों में यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन इतनी दूर आने के बाद वह वापस मुड़ना नहीं चाहती थीं। पेरेंट्स आखिर समझ गये कि विकास व अवसरों के लिए अफशां आशिक को अपने राज्य से बाहर निकलना ही पड़ेगा। वह बताती हैं, ‘ड्रीम तो पूरा करना ही है। लेकिन जम्मू-कश्मीर से बाहर निकलने का मुख्य कारण यह है कि हमारे यहां सुविधाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। जब से मैं मुंबई आयी हूं, लोगों ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया है और हमेशा ही मेरा सम्मान किया है।’फुटबॉल के लिए लोग पश्चिम बंगाल व गोआ जैसे राज्यों को अधिक प्राथमिकता देते हैं, तो फिर अफशां आशिक ने मुंबई को ही क्यों चुना? इस बारे में वह बताती हैं, ‘मुझे ट्रायल्स की प्रक्त्रिया नहीं मालूम थी। आज औरों की तरह मैं भी सोशल मीडिया का अधिक प्रयोग करती हूं यह जानने के लिए कि प्रोफेशनल फुटबॉल में कैसे विकास किया जा सकता है। फिर मुझे एक क्लब प्रतिनिधि से सन्देश मिला कि वह एक गोलकीपर की तलाश में हैं। मुझे लगा कि यह अच्छा मौका है और इसे ले लिया।’ सोशल मीडिया की बात आने पर अफशां आशिक के वायरल हुए फोटो का उल्लेख लाजमी था, जिसमें वह पुलिस पर पथराव कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘मैं उस घटना से इंकार नहीं करती हूं। वह मेरे जीवन का हिस्सा है। आज जब मैं उसपर सोचती हूं तो मुझे खेद होता है और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। मुझे अपने सीनियर्स व अधिकारियों से पहले बात करनी चाहिए थी। शायद, वह मेरी गलती थी। आज मैं आगे देखना चाहती हूं फुटबॉल में भविष्य की तरफ।बात करने वाले बात करेंगे। मुझे अपने परिवार, जीवन व भविष्य के बारे में सोचना है। मुझे अपने सपने पर फोकस करना है, गलत रास्ते पर चलकर अपना जीवन बर्बाद नहीं करना है।’ जम्मू-कश्मीर राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य है। लेकिन अफशां आशिक निडर होकर बहुत बेबाकी से श्रीनगर में भी भारतीय जर्सी पहनती हैं। वह कहती हैं, ‘मेरी राष्ट्रीयता भारतीय है। अगर कुछ लोग इससे सहमत नहीं हैं तो यह उनकी समस्या है। अगर मैं कश्मीर में भारतीय जर्सी पहनती हूं तो कोई मुझे क्यों रोके। यह मेरा फैसला है, मेरी मर्जी है।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर