दान की महिमा

अपने गुरु से आशीर्वाद लेने के लिए जब एक शिष्य गुरु के आश्रम पहुंचा तो जिज्ञासावश उसने मालूम किया, ‘आपके आंगन में 30 शानदार अरबी घोड़े किस लिए खड़े हैं?’
‘ये तुम्हारे लिए खड़े हैं’, गुरु ने फौरन जवाब दिया।
यह सुनकर शिष्य को प्रसन्नता हुई कि घोड़े वहां उसके लिए मौजूद थे। फिर भी उसने कहा, ‘मैं इनका कुछ दाम अवश्य दूंगा।’ ‘दाम तो तुम अदा नहीं कर पाओगे। लेकिन फिर भी यदि तुम देना ही चाहो, तो शर्त यह है कि तुम किसी को यह नहीं बताओगे कि घोड़े मैंने तुम्हें दिए हैं। मैं इस पृथ्वी ग्रह पर इसलिए नहीं हूं कि इस किस्म के कामों के लिए लोगों में ‘अच्छा’ माना जाऊं। लोग आमतौर से यह सोचते हैं कि कोई व्यक्ति ‘अच्छा’ उस कार्य की वजह से होता है जिसका स्रोत व नतीजा वे समझ नहीं पाते।’
‘आपने घोड़ों का जो दाम बताया है, उससे बढ़कर कोई चीज नहीं है,’ शिष्य ने कहा। वह घोड़ों को खुशी के साथ ले जाने लगा और उसने अपने आपसे कहा, ‘मेरे गुरु ने वास्तव में मुझे बहुत लाभ पहुंचाया है। यह आंतरिक करुणा का बाहरी प्रदर्शन है।’ जल्द ही शाम हो गई और शिष्य सरकार की तरफ से रात में चौकीदारी करने वालों के चंगुल में फंस गया। सरकारी चौकीदारों ने आपस में कहा, ‘आओ, इस व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध में फंसा देते हैं जिसे कोई भी हल न कर पाए। हम इस पर आरोप लगाते हैं कि यह चोरी के पैसों से घोड़े खरीदकर लाया है। यह निश्चित रूप से किसी चीज का तो दोषी है। इसका लालन-पालन भी सभ्य नहीं लग रहा है। यह मैले कुचैले कपड़े पहने हुए है। हममें से कुछ ने इसे पहले भी देखा है और हमें विश्वास है कि इसका मिलना संदिग्ध चरित्र के लोगों से है।’
चौकीदार उसे पकड़कर अगले दिन अदालत में ले गए। अपने वायदे के अनुसार शिष्य ने यह बताने से इन्कार कर दिया कि वह घोड़े कहां से लाया है। न्यायाधीश ने उसे कारावास में डाल दिया। 
इसी बीच गुरु को अपने अन्य शिष्यों से उस शिष्य के बारे में जानकारी मिलती रही जिसे उन्होंने घोड़े दिए थे। शिष्य समय-समय पर आकर गुरु को बताते रहे- ‘उसने कुछ भी बोलने से इन्कार कर दिया है। वह कमज़ोर पड़ रहा है। वे उसे यातनाएं दे रहे हैं।’
आखिरकार गुरु ने अदालत का रुख किया और गवाही दी कि उन्होंने ही अपने शिष्य को इस शर्त पर घोड़े दिए थे कि वह उनके स्रोत को किसी को नहीं बताएगा। इस गवाही पर शिष्य को रिहा कर दिया गया। इसके बाद गुरु ने अदालत, अपने शिष्यों और जनता को संबोधित करते हुए कहा, ‘दान या उदारता के तीन दोष होते हैं। एक, जो दानी के रूप में ख्याति अर्जित कर लेता है, उसके घमंडी होने का खतरा बना रहता है। दो, जो व्यक्ति दानी का प्रशंसक होता है और उसकी नकल अज्ञानतावश करता है, उसको नुक्सान पहुंच सकता है। अंतिम, अगर व्यक्ति दानी को जानता है तो वह उसके सामने हमेशा शर्मिंदा रहेगा। दान लेने या देने में कभी एहसान की भावना नहीं आनी चाहिए। इसलिए दानी के लिए आवश्यक है कि वह दान इस राज़ के साथ या गुप्त रहकर दे कि दाएं हाथ की बात बाएं को मालूम न हो सके। दरअसल, साधारण व्यक्ति जिसे उच्चतम दान या उदारता का रूप मानता है, वह वास्तव में न्यूनतम प्रकार का दान या उदारता है। धर्म ने दान रूपी संस्था की स्थापना इसलिए की थी ताकि मनुष्य उदार बन जाए; लेकिन लेकिन आज यह श्राप बन गया है। एक ऐसी मूर्ति जिसकी पूजा वैध नहीं है।’
दरअसल, दान देते समय इस बात का भी ख्याल रखना आवश्यक है कि जो पैसा दान में दिया जा रहा है, वह मेहनत और हलाल कमाई का हो क्योंकि बिना मेहनत के अवैध रूप से पैसा कमाया गया होता है, वह धर्म की दृष्टि से दान योग्य नहीं होता।
इसमें शक नहीं है कि दान करना भी ईश्वर की आज्ञा का पालन करना और इबादत करना ही है। लेकिन दान किस तरह करना चाहिए, यह भी जानना ज़रूरी होता है। जो दान देश, काल और पात्र का विचार किए बिना तिरस्कारपूर्वक दिया जाता है, वह दान तामसी कहलाता है।  दान देते समय इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी किस्म की बुराई आपके मन में न हो और आप दूसरे व्यक्ति को तुच्छ न समझें। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर
- रौशन सांस्कृत्यायन